बड़ी खबर-उत्तराखंड की महिला शक्ति और स्वाभिमान की प्रतीक अंकिता के दुख में क्यों नहीं पहुंचे नेता?

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अंकिता के अंतिम संस्कार के बाद अब भी लोगों के जेहन में कई सवाल तैर रहे हैं। इन सवालों के जवाब बेहद जरूरी हैं। लोग जानना चाहते हैं कि क्या पुलकित के रिजार्ट में स्पेशल सर्विस के नाम पर हो रहा देह व्यापार का धंधा पुराना है? कहीं ऐसा तो नहीं कि उत्तराखंड की किसी और बेटी को इन दंरिदों ने दबाव डालकर इस काम के लिए मजबूर किया हो। ये वो तमाम सवाल हैं जिसके जवाब तलाशे जाने बहुत जरूरी हैं।

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अंकिता की मौत के बाद लोगों में गम और गुस्सा तो है ही…साथ ही सिस्टम को लेकर जो अविश्वास पैदा हुआ है उसे दूर करने के लिए अब सरकार को बड़ी कवायद करनी पड़ेगी। सरकार के मुखिया भले ही इस पूरे मामले में लोगों को विश्वास में लेने की कोशिश करते हुए दिखे हैं। मुख्यमंत्री की अपीलों का असर भी हुआ। श्रीनगर में स्थानीय लोगों ने सीएम की अपील के बाद ही अंकिता का शव अंतिम संस्कार के लिए ले जाने दिया लेकिन सच ये भी है कि स्थानीय विधायक, जनप्रतिनिधि इस पूरे घटनाक्रम में कहीं नहीं दिखे। चुनावों के समय भीड़ के लिए प्रयास करने वाले ये नेता अंकिता की मौत के बाद उमड़ी भीड़ के सामने जाने की हिम्मत नहीं दिखा पाए।



यहां तक न तो राज्य की महिला कल्याण मंत्री पहुंची और न ही कैबिनेट मंत्री और स्थानीय नेता धन सिंह रावत मौके पर जाने की हिम्मत जुटा पाए। सरकार का कोई भी मंत्री लोगों के दुख में सहभागी होने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। हालात ये रहे कि राज्य की महिला कल्याण मंत्री रेखा आर्या ने सोशल मीडिया पर दुख व्यक्त किया वो भी घटना के काफी बाद। अन्य नेता भी सोशल मीडिया पर वीडियो और टेक्स्ट मैसेज अपलोड करके ही जनता के प्रति अपने कर्तव्यों की इतिश्री करते नजर आए। हालांकि सवाल विपक्ष में बैठे नेताओं से भी पूछा जाएगा लेकिन जनता के प्रति अधिक जिम्मदारी उन्ही की है जिनपर भरोसा जताकर जनता ने सत्ता सौंपी है। संभवत माना जा सकता है कि अब उत्तराखंड में ऐसा कोई नेता नहीं बचा जो सर्वमान्य हो और जिसे लोग राजनीति से उपर उठकर अपने अभिभावक के तौर पर देख सकें।



अंकिता को न्याय दिलाने की जो छटपटाहट जनता के बीच दिख रही है वो सिस्टम महसूस करे ये जरूरी है। अंकिता से जुड़े ऐसे कई राज हैं जो अब भी सबके सामने आने बाकी है। अंकिता के साहस और पराक्रम अतुलनीय था। उसने पहाड़ की बेटी होकर पहाड़ सा पराक्रम दिखाया और दंरिदों के आगे झुकने से मना कर दिया। उसे इस पराक्रम की कीमत भले ही अपनी जान देकर चुकानी पड़ी हो लेकिन ये किसी बलिदान से कम नहीं आंका जा सकता। अंकिता एक उदाहरण के तौर पर न सिर्फ इस राज्य बल्कि समूचे राष्ट्र में पहचानी जाएगी। महिला शक्ति और स्वाभिभान की प्रतीक अंकिता को इस राज्य के सिस्टम से थोड़ा सा भरोसा और सहयोग मिला होता तो शायद आज वो हम सब के बीच होती।