शहीद वीरेंद्र सिंह की इस तरह से सैन्य सम्मान से की गई अंत्येष्टि

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नारायणबगड़ skt.com

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शाहिद वीरेंद्र सिंह को नारायणगढ़ में आज इंटर कॉलेज में सैन्य सम्मान के साथ श्रद्धांजलि दी गई यहां पर उनके पार्थिव शरीर पर लोगों में अपनी श्रद्धांजलि व्यक्त करते हुए पुष्प अर्पित किए

वीरेंद्र सिंह अपने पीछे पिता सुरेंद्र सिंह माता डुमरी देवी आईटीबीपी में कार्यरत 38 वर्षीय भाई, पत्नी तथा दो बच्चों 5 वर्षीय एवम 3 वर्षीय को छोड़ कर चले गए हैं।

उनकी शहादत पर गर्व करते हुए उनके पिता सुरेंद्र सिंह ने कहा कि उनका बेटा अभिमन्यु है वह दुश्मनों को चीरते हुए शहीद हुआ है इसलिए उसकी शहादत पर आंसू बहाना उसका अपमान होगा।

यूं तो उत्तराखंड के सैनिकों के अदम्य साहस,शौर्य और शहादत से भरी सैकडों गाथाएं है ,लेकिन इन सभी गाथाओं में सबसे महत्वपूर्ण सामानता यह है, की किसी भी शहीद ने पीठ पर गोली नही खाई ।

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शौर्य, शहादत और अलंकरण की परम्परा का अनवरत सिलसिला आज भी जारी है, आजादी के बाद देश की सीमाओं की रक्षा में और युद्ध में करीब 26हजार भारतीय सैनिक शहीद हुए, उनमें उत्तराखंड का योगदान 20% से अधिक है, जबकि भारत की आबादी में हमारा जनसंख्या अनुपात मात्र दशमलव 8 प्रतिशत है।
बीता कारगिल की महत्वपूर्ण लड़ाई में देश में शहीद हुए कुल 527 सैनिकों से, 111 वीर सैनिक उत्तराखंड की इस वीर भूमि से शहीद हुए. जो अपने जनसंख्या अनुपात का 30 गुना है ।

चमोली नारायण बगड़ के बमियाला गांव के 15वी गढवाल राईफल के पुंछ में शहीद हुए सैनिक नायक वीरेंद्र सिंह के घर की चढाई पैदल पार करते हुए ,पसीने -पसीने होकर सोच रहा था ,
की आंखिर इन दुर्गम पहाड़ों और जंगलों के बीच निवास करने वाले उत्तराखंडियो के भीतर राष्ट्र के लिए मर मिटने का यह जज्बा कहां से पैदा होता है ।
इस यक्ष प्रश्न का उत्तर मुझे सूझ नहीं रहा था.. देर रात शहीद के घर पहुंचा , वहां आग के चारों ओर ग्रामीण एकत्रित थे,वहां शोक और रूदन से अधिक गर्व की अनुभूति पसरी थी , ऐसे में जब वीरांगना हमें देखकर रोने लगी तो शाहीद के बहादुर पिता सुरेंद्र सिंह ने, वीरांगना को समझाते हुए कहा ,
“मेरा बेटा #अभिमन्यु है वह देश के लिए वीरगति को प्राप्त हुआ है ।यह हमारे लिए शोक का नहीं ,गर्व का विषय है. उसके बलिदान पर रुदन शहीद का अपमान है”।

इस दृढ और गंभीर आवाज को सुन में स्वयं कंपित हो गया आंखें नम हो गई , मुझे उत्तराखंड की अनुत्तरित बलिदानी परंपरा का एक ही क्षण में उत्तर मिल गया ।
मैं वीर शहीद वीरेंद्र सिंह और उनही के समान शहीद के पिता सुरेंद्र सिंह की दृढ़ता और राष्ट्र के प्रति समर्पण को नमन् करता हूं । वीरो के गांव बमियाला में 70 परिवारो में से 45 जवान आज भी भारतीय सेना में सेवारत हैं ।
जब तक ऐसी विरासत, ऐसी परवरिश हमारे पास है, देश की सीमाएं सुरक्षित सर्वथा सुरक्षित हैं ।
आज सुबह भी पूरा क्षेत्र शाहीद की अंतिम यात्रा में उमड़ पड़ा और एक मेला लग गया।सच है ,

शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा।