करणपुर में कैसे हार गए भजन सरकार के मंत्री टीटी, किन फैक्टर्स ने बिगाड़ा बीजेपी का गेम प्लान?
राजस्थान की 200 में से 199 विधानसभा सीटों के लिए 25 नवंबर को वोट डाले गए थे जिनके नतीजे 3 दिसंबर को आ गए थे. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को चुनाव नतीजों में पूर्ण बहुमत के साथ सरकार चलाने का जनादेश मिला. 15 दिसंबर को भजनलाल शर्मा के नेतृत्व में बीजेपी ने सरकार भी बना ली. नई सरकार के शपथ ग्रहण के महीनाभर भी नहीं हुआ कि पहली परीक्षा में पार्टी फेल हो गई है. बीजेपी को करणपुर विधानसभा सीट पर करारी हार मिली है.
करणपुर विधानसभा सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार रूपिंदर सिंह ने बीजेपी के उम्मीदवार सुरेंद्र पाल सिंह टीटी को 12 हजार वोट से अधिक के अंतर से हरा दिया है. करणपुर चुनाव में हार के साथ ही सुरेंद्र पाल सिंह टीटी की भजनलाल कैबिनेट से भी छुट्टी हो गई है. सुरेंद्र पाल सिंह टीटी ने मंत्री पद से अपना इस्तीफा भेज दिया है.
चुनावों के बीच में मंत्री बनाए गए टीटी सत्ताधारी दल का उम्मीदवार होने के बावजूद चुनावी बाजी कैसे हार गए? किन फैक्टर्स की वजह से करणपुर में बीजेपी के सारे सियासी दांव फेल साबित हुए? इसकी चर्चा से पहले यह जान लेना भी जरूरी है कि राजस्थान की इस एक सीट पर 199 सीटों के साथ चुनाव क्यों नहीं हुआ?
एक उम्मीदवार के निधन से स्थगित हो गया था चुनाव
श्रीगंगानगर जिले की करणपुर विधानसभा सीट से कांग्रेस ने गुरमीत सिंह कूनर को उम्मीदवार बनाया था. गुरमीत सिंह कूनर तब विधायक भी थे. बतौर सिटिंग विधायक चुनाव मैदान में उतरे गुरमीत का चुनाव प्रक्रिया के बीच निधन हो गया था. कांग्रेस उम्मीदवार के निधन के बाद इस सीट के लिए मतदान स्थगित कर दिया गया था. करणपुर सीट के लिए 5 जनवरी को मतदान हुआ था और नतीजे 8 जनवरी को हुई मतगणना के बाद आए.
बीजेपी को क्यों नहीं मिल पाया सत्ता में होने का लाभ
बीजेपी के सत्ता में आने के बाद करणपुर की लड़ाई रोचक हो गई थी. भजन सरकार के गठन से महीनेभर के भीतर हुए इस चुनाव को नई-नई सरकार की पहली परीक्षा के रूप में भी देखा जा रहा था. लेकिन जब नतीजे आए, बीजेपी को निराशा हाथ लगी. पार्टी का सत्ता में होना भी उसके उम्मीदवार को जीत नहीं दिला सका. बीजेपी की सत्ता पर गुरमीत के निधन से उपजी संवेदना भारी पड़ गई और विपक्षी कांग्रेस के उम्मीदवार रूपिंदर ने नई-नवेली सरकार के नए-नवेले मंत्री को करारी शिकस्त दे दी.
दरअसल, कांग्रेस ने इस सीट से गुरमीत सिंह कूनर के पुत्र रूपिंदर सिंह पर दांव लगाया था. गुरमीत के निधन की वजह से ही इस सीट पर 25 नवंबर को वोटिंग स्थगित हो गई थी. कूनर कांग्रेस के ही टिकट पर 2018 के चुनाव में करणपुर सीट से विधानसभा पहुंचे थे. पार्टी को इस चुनाव में संवेदना का भी लाभ मिला. संवेदना की लहर में कूनर के पुत्र रूपिंदर ने बीजेपी के सुरेंद्र पाल को 12 हजार वोट से अधिक के अंतर से हरा दिया.
काम न आया वोटिंग से पहले मंत्री बनाने का दांव
करणपुर सीट पर मतदान से ठीक 10 दिन पहले 25 दिसंबर को भजन सरकार का पहला मंत्रिमंडल विस्तार हुआ. इस मंत्रिमंडल विस्तार में सबसे अधिक चौंकानेवाला नाम सुरेंद्र पाल सिंह टीटी का ही था. जिस सीट पर अभी मतदान बाकी है, उस सीट से उम्मीदवार को मंत्री बना दिया गया. बीजेपी के इस दांव के पीछे रणनीति करणपुर के मतदाताओं को संदेश देने की मानी जा रही थी. लेकिन पार्टी का यह दांव भी करणपुर में कमल नहीं खिला सका. कांग्रेस ने इसे मतदाताओं को प्रभावित करने की रणनीति से से उठाया गया कदम बताते हुए मोर्चा खोल दिया. कांग्रेस करणपुर चुनाव में बीजेपी के मंत्री कार्ड को काउंटर करने में सफल रही.
करणपुर में जीत को लेकर अति आत्मविश्वास
सुरेंद्र पाल सिंह टीटी को जब भजन सरकार में मंत्री बना दिया गया, बीजेपी की जीत को लेकर नेता से लेकर कार्यकर्ता तक आत्मविश्वास से सराबोर हो गए. खुद सुरेंद्र पाल ने मंत्री बनाए जाने के बाद करणपुर सीट से जीत का दावा करते हुए यह कहा था कि मतदाता समझदार हैं. सुरेंद्र विधानसभा पहुंचे तो मंत्री होने के नाते करणपुर के विकास की रफ्तार तेज होगी, बीजेपी के नेताओं ने यह संदेश देने की कोशिश जरूर की. लेकिन यह कवायद भी उस स्तर पर नजर नहीं आई जिसके लिए बीजेपी पहचान रखती है.
कार्यकर्ता भी यह मान बैठे कि सुरेंद्र मंत्री बन गए हैं तो मतदाता खुद ही विपक्षी पार्टी के साथ जाने की जगह अगले पांच साल जिस दल की सरकार रहनी है, उसके साथ जाएंगे. अमूमन ऐसा होता भी है. कार्यकर्ताओं ने चुनाव प्रचार में उतनी सक्रियता नहीं दिखाई और नतीजा यह हुआ कि सुरेंद्र पाल सिंह टीटी, अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं के अति आत्मविश्वास का नतीजा बीजेपी को हार के रूप में मिला.
सबसे पहले ख़बरें पाने के लिए -
👉 सच की तोप व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ें