स्मार्ट सिटी पर धामी का एक्शन, त्रिवेंद्र और गामा का साझा रिएक्शन, चल क्या रहा है?

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उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में स्मार्ट सिटी के काम पहले तो सिर्फ आम जनता के लिए जी का जंजाल बना हुआ था लेकिन अब लगता है कि ये प्रोजेक्ट राजनीतिज्ञों के लिए आरोप प्रत्यारोप का भी मुद्दा बन गया है। जनता की दिक्कतें देखकर सीएम धामी ने स्मार्ट सिटी के कामों को लेकर आंखें क्या तरेरी कि उनके पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री नाराज होने लगे।

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दरअसल सीएम धामी ने स्मार्ट सिटी के कामों को लेकर सख्ती बरतनी शुरु कर दी है। सीएम धामी ने साफ कर दिया है कि पिछले कई सालों से देहरादून को स्मार्ट बनाने के नाम पर जनता और सरकार की आंखों में जो धूल झोंकी जा रही थी अब वो काम नहीं हो पाएगा। सीएम ने ठेकेदारों से काम वापस लेने के साथ ही उन्हे ब्लैक लिस्ट करना भी शुरु कर दिया है। इसके साथ ही जिम्मेदार अफसरों की भी क्लास लेनी शुरु कर दी है। सीएम ने सख्त रवैया अपनाया है और हर हफ्ते रिपोर्ट तलब कर रहें हैं।


ऐसे में अब स्मार्ट सिटी के काम को लेकर पिछले पांच सालों से चल रही घपलेबाजी की कलई भी खुलने लगी है। साफ दिख रहा है कि पिछली सरकारों ने न सिर्फ अफसरों पर मेहरबानी रखी बल्कि ठेकेदारों पर भी कृपा बनाए रखी। ऐसे में जनता दिक्कतें उठाती रही और अपना ही पैसा बर्बाद होते देखती रही।


अब जब बात पिछली सरकारों तक पहुंची है तो धामी के पूर्ववर्ती मुख्यमंत्रियों में से एक अपने बचाव में उतर आए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने दावा किया है कि उनके कार्यकाल में स्मार्ट सिटी का काम बहुत बेहतर तरीके से हो रहा था। त्रिवेंद्र का दावा है कि उनके कार्यकाल में स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में देहरादून ने लंबी छलांग लगाई और अपने ग्रुप में सबसे ऊपर आ गया।


त्रिवेंद्र सिंह रावत ने हैरतअंगेज तरीके से सीएम धामी के दो फैसलों पर उंगली उठाई है। हालांकि उन्होंने नाम नहीं लिया लेकिन कहा है कि स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के सीईओ को बार बार बदलना ठीक नहीं है। इसके साथ ही ठेकेदारों को ब्लैक लिस्ट करने से भी त्रिवेंद्र परेशान दिख रहें हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अंडर पर्फाम करने वाले वाले अफसरों को ढोते रहना चाहिए या फिर तय समय में काम न करने वाले ठेकेदारों के खिलाफ कार्रवाई गलत है।


वैसे दिलचस्प ये भी है कि हाल ही में त्रिवेंद्र के बेहद खासमखास देहरादून के मेयर सुनील उनियाल गामा ने बाकायदा एक चिट्ठी सीएम धामी को लिखी। इस चिट्ठी में उन्होंने लिखा कि स्मार्ट सिटी के काम बेहतर तरीके से नहीं हो रहें हैं। मेयर ने कई सवाल उठाए।
इस चिट्ठी को लिखे जाने के कुछ ही दिनों बाद अब त्रिवेंद्र भी कुछ ऐसा ही बयान दे रहें हैं। ऐसे में क्या मान लिया जाए कि मेयर की चिट्ठी और त्रिवेंद्र का बयान एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। ऐसा इसलिए भी कहा जा रहा है क्योंकि पूरे साढ़े चार साल यानी त्रिवेंद्र के कार्यकाल में मेयर ने इस तरह की एक भी आपत्ति नहीं दर्ज कराई लेकिन त्रिवेंद्र के हटते ही उन्हे प्रोजेक्ट के कामों में कमी नजर आने लगी।


फिलहाल उत्तराखंड में धीरे धीरे बढ़ती धामी की धमक ने उनकी ही पार्टी के कुछ नेताओं को परेशान तो जरूर किया होगा। ऐसे में स्मार्ट सिटी परियोजना के बहाने ही सही, कम से कम मौका गिले शिकवों का मिल ही रहा है।