बढ़ता प्रदूषण छीन रहा है आपकी हंसी, यकीन नहीं तो पढ़िए ये रिपोर्ट

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क्या आपने कभी सोचा है कि बढ़ता हुआ प्रदूषण (Air Pollution) सिर्फ आपके फेफड़ों को ही नहीं बल्कि आपकी हंसी भी छीन सकता है। ये प्रदूषण आपके अवसाद की वजह बन सकता है। जी हां, ये सच है। आज हम आपको इस आर्टिकल में बताने जा रहे हैं वो आपके रोंगटे खड़े कर देगा।

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बढ़ता प्रदूषण छीन रहा है आपकी हंसी

वायु प्रदूषण(Air Pollution) ना सिर्फ हमारे फेफड़ों बल्कि ये हमारी भावनाओं पर भी गहरा असर डाल रहा है। दरअसल हाल ही में जर्नल एनवायर्नमेंटल साइंस एंड इकोटेक्नोलॉजी में प्रकाशित एक नए अध्ययन से पता चला है कि वायु प्रदूषण फेफड़ों और दूसरे अंगों के साथ साथ हमारी भावनाओं पर भी गहरा असर डाल रहा है। प्रदूषित हवा में सांस लेने से अवसाद में बढ़ोतरी हो सकती है। जिससे साफ है की लम्बे वक्त तक दूषित हवा वाले इलाकों में रहने वाले लोगों के दुखी या निराश महसूस करने के चांसेज ज्यादा होते हैं।

बढ़ते प्रदूषण से मानसिक तनाव

डिप्रेशन (Depression) दुनिया के लिए चुनौती बनता जा रहा है। World Health Organization (WHO) and UNICEF ने अपनी नई रिपोर्ट में खुलासा किया है कि दुनिया में 10 से 19 साल का हर सातवां बच्चा मानसिक समस्याओं से जूझ रहा है। इन समस्याओं में डिप्रेशन, बेचैनी और व्यवहार से जुड़ी समस्याएं शामिल हैं।

क्या कहते है आंकड़े?

बता दें की ये दर भारतीय बच्चों और किशोरों में बढ़ता जा रहा है। चंडीगढ़ के PGIMER और स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के एक अध्ययन से पता चलाता है कि स्कूल जाने वाले 13 से 18 साल के ज्यादातर किशोर डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं।
इसके अलावा नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंस ने साल 2016 में भारत के 12 राज्यों पर एक सर्वे किया।

जिससे पता चला कि देश में करीब 2.7 फीसदी लोग डिप्रेशन जैसे कॉमन मेंटल डिसऑर्डर से पीड़ित है। ये सिर्फ एक आंकड़ा नहीं है, बल्कि बढ़ते प्रदूषण की कड़वी सच्चाई है। प्रदुषण का ये खतरा हमारे फेफड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि हमारे दिमाग, हमारी भावनाओं और आने वाली पीढ़ियों के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डाल रहा है