ज‍िसे मां ने समझा था मनहूस वो बन गए लेजेंड, जाकिर हुसैन की अनसुनी दास्तान

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जैसा कि हम सब जानते हैं कि मशहूर तबला वादक और संगीत की दुनिया के सितारे जाकिर हुसैन अब इस दुनिया में नहीं है। 14 फरवरी को अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में 73 साल की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली। भले ही अब वो इस दुनिया में नहीं रहे। लेकिन उनकी ख्याति दूर दूर तक फैली है।

जाकिर के अचीवमेंट्स के बारे में तो आप सभी को पता ही होगा। लेकिन शायद ही किसी को पता हो कि उनका बचपन कितनी मुफ्लिसी में बीता है। उनकी जिंदगी में एक ऐसा वक्त भी था जब उनकी माँ उन्हें मनहूस समझती थी। इस वीडियो में हम आपको उनकी लाइफ से जुड़ा एक किस्सा बताने जा रहे है, जिससे शायद ही आप वाकिफ होंगे।

tabla maestro zakir hussain

साधारण से परिवार में जन्मे जाकिर हुसैन

एक साधारण से परिवार में तबला वादक ज़ाकिर हुसैन का जन्म हुआ। उनका बचपन संघर्षों से भरा था। उनके पिता उस्ताद अल्ला रक्खा खुद एक महान तबला वादक थे। लेकिन उन्हें अपने करीयर के लिए काफी परिश्रम करना पड़ा।

Zakirhussain and his father alla rakha

जाकिर हुसैन की संगीत जर्नी की बात करें तो काफी छोटी उम्र में ही उन्होंने तबला बजाना शुरू कर दिया था। बचपन से ही उन्हें संगीत से बेपनाह लगाव था। लेकिन उनकी जिंदगी में एक ऐसा दौर आया जहां उनकी अपनी मां ने उनके साथ सौतेले जैसा व्यवहार किया।

tabla maestro

मां ने समझा जाकिर को मनहूस

तबले की थाप से दुनिया भर में अपनी पहचान बनाने वाले महान जाकिर हुसैन को उनकी मां मनहूस समझा करती थी। जी हां, इस किस्से का जिक्र जाकिर ने अपनी किताब “ZAKIR HUSSAIN: A Life in Music” में किया है। जाकिर लिखते हैं कि उनके जन्म के वक्त उनके अब्बा की तबीयत इस कदर खराब थी कि उनकी मां उन्हें मनहूस समझने लगी।

childhood photo of Zakir hussain with his father alla rakha

इस किस्से को याद करते हुए जाकिर ने बताया कि उनके जन्म के समय उनके पिता को दिल की बीमारी थी। उस दौरान उनकी हालत इस कदर खराब हुई की उनके पिता के कई दोस्त उनसे मिलकर उनको अंतिम विदाई देने तक आए थे। जिसके बाद उनकी मां को किसी ने कहा कि तुम्हारा बेटा बदकिस्मत है क्योंकि इसके जन्म से ही परिवार का दुखद समय शुरू हुआ। जिसके बाद से उनकी मां उन्हें मनहूस समझने लगी।

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पास की महिला ने की देखभाल

यहां तक की जब नन्हे जाकिर को हॉस्पिटल से घर लाया गया तब उनकी मां ने उन्हें ब्रेस्टफीड तक नहीं कराया। बचपन में जाकिर की देखभाल पास की एक महिला ने की थी। अपनी किताब में जाकिर ने बताया कि उन्हें उस दयालु महिला का नाम तो याद नहीं है। लेकिन वो शुरुआती कुछ हफ्तों के लिए उनकी सरोगेट मां बन गई थी।

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संत बाबा ने दिया जाकिर हुसैन नाम

उन्होंने अपनी किताब में जिक्र किया कि कैसे एक ज्ञानी बाबा की वजह से वो बदकिस्मत से तकदीरवाले बन गए। उन्होंने बताया कि एक बाबा ने उनकी मां को बोला की तुम्हारा एक बेटा है, उसके लिए अगले चार साल काफी खतरनाक है, उसका अच्छे से ख्याल रखना, वो ही तुम्हारे पति को बचाएगा। साथ ही बाबा ने उनकी मां को बच्चे का नाम जाकिर हुसैन रखने को भी कहा।

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बता दें कि हुसैन, जाकिर का, पारिवारिक नाम नहीं है। जाकिर का उपनाम कुरैशी या अल्लारखा कुरैशी है। लेकिन बाबा के कहने पर उनका नाम जाकिर हुसैन पड़ा।

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बचपन के शुरुआती चार साल हुए बीमार

बाबा की बात मानते हुए उनकी मां ने उनका खूब ख्याल रखा। अपनी किताब में जाकिर ने बताया कि उनके जीवन के पहले चार सालों में वो खूब बीमार पड़े। कभी वो गलती से केरोसीन पी लेते, कभी बेवजाह उनके शरीर में फोड़े हो जाते, तो कभी उन्हें अचानक बुखार आ जाता था।

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दिलचस्प बात ये थी की जीतनी उनकी तबीयत खराब होती थी उतनी ही उनके अब्बा की हालत में सुधार होता। चार साल बाद उनके पिता एक दम सही हो गए। साथ ही जाकिर की सेहत भी अच्छी हो गई। जैसा की बाबा ने भविष्यवाणी की थी।

आसान नहीं था द ग्रेट जाकिर हुसैन बनना

संगीत की दुनिया में जाकिर से द ग्रेट जाकिर हुसैन बनना भी उनके लिए आसान नहीं था। तमाम प्रिविलेज होने के बावजूद अपने करियर के शुरूआती दिनों में उन्होंने काफी संघर्ष किया। एक वक्त था जब उन्होंने ट्रेन के जनरल कोच में भी यात्रा की कभी कभार तो सीट ना मिलने पर वो ट्रेन के कोच की जमीन पर अखबार बिछाकर भी सो जाया करते।

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सात साल की उम्र से उन्होंने तबला बजाना शुरू कर दिया था। 12-13 साल की उम्र में उन्होंने पहली बार देश से बाहर कॉन्सर्ट किया। मीडिया को दिए इंटरव्यू में उन्होंने बताया की उन्हें फर्श से अर्श तक पहुंचने में 25 से 30 साल लग गए।

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अपने तबले की थाप से दुनिया को नचाया

ज़ाकिर हुसैन की शुरुआत भले ही बहुत साधारण रही हो, लेकिन संगीत को अपना सबकुछ मान कर, घंटों मेहनत कर अपने तबले की थाप से उन्होंने दुनियाभर को नचा दिया। एक छोटे से मंच से शुरू कर ज़ाकिर हुसैन धीरे-धीरे संगीत की दुनिया के “मायेस्ट्रो” बन गए। उन्होंने देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में भारतीय संगीत का परचम लहराया