हेराफेरी की बुनियाद पर चलाए जा रहे पीपीपी मोड़ हॉस्पिटल से कैसे बचेगी जान! जिसने टेंडर ही नहीं भरा उसे ही मिल गया हॉस्पिटल चलाने का जिम्मा

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रामनगर एसकेटी डॉट कॉम

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उत्तराखंड में हेराफेरी मामूली बात बन गई है धन की पिपाशा ने लोगों को इतना अंधा बना दिया है की ऐसे कारनामे अंजाम दिए जा रहे हैं जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है.

जिस कंपनी ने पीपीपी मोड में चलाए जा रहे रामनगर के रामदत्त जोशी हॉस्पिटल समेत भिकियासैन और बीरोंखाल का टेंडर भरा ही नहीं उसे यहां के नौकरशाहों ने हॉस्पिटल चलाने की जिम्मेदारी दे दी. माना यह जा रहा है कि एक बहुत बड़े सेटिंग के तहत यह कारगुजारी अंजाम में लाई गई

. और ऐसी कंपनी जो टेंडर के समय अस्तित्व में ही नहीं थी उसे लोगों की जिंदगी से खेलने का स्वास्थ्य ठेका दे दिया गया. इस संबंध में हमारे प्रतिनिधि ने जब रामनगर के हॉस्पिटल के पीपीपी संचालक के हॉस्पिटल हेड इस संबंध में जानकारी चाही तो उन्होंने राग अलापते हुए कहा कि लोगों द्वारा कही गई बातों पर विश्वास ना करके इस संबंध में इतना सूचना के अधिकार जानकारी दी ली सकती है.

टेंडर की तिथि रिवाइज 10 सितंबर

जानकारी जुटाने पर यह तथ्य सामने आया कि तीन कंपनियों ने करोड़ों रुपए की इस डील के लिए टेंडर भरा था उनमें शिवम सर्वम मेडिकल प्रोजेक्ट का नाम ही नहीं है. और यह कंपनी इसलिए भी इस टेंडर टेंडर के लिए अपनी पात्रता नहीं रखती थी क्योंकि यह टेंडर की तिथि 10 सितंबर 2019 तब भी अस्तित्व में नहीं आई थी.

रामनगर स्थित हॉस्पिटल की यूनिट हेड डॉक्टर प्रतीक सिंह ने मृतक नर्स पूजा ह्याँकि की स्थिति के बारे में इस तरह से भी जानकारी

इस टेंडर में प्राइमस हॉस्पिटल, आकाश हॉस्पिटल तथा इमर्जिंग प्रोजेक्ट प्राइवेट लिमिटेड में प्रतिभाग किया था और सबसे कम बोली के तौर पर जिस कंपनी ने टेंडर भरा मुरादाबाद की बताई जाती है लेकिन यह टेंडर शिवम सर्वम के साथ कैसे करार हो गया और उसके नाम से तीनों हॉस्पिटल का कलस्टर विभाग ने कैसे कर दिया यह समझ से परे है.. उत्तराखंड हेल्थ फैमिली वेलफेयर के द्वारा शिवम शिवम प्रोजेक्ट को स्टांप संख्या EF162968 के माध्यम से कैसे यह करार दे दिया गया. सूत्रों के अनुसार यह जानकारी भी मिली है कि बिडिंग में नंबर एक पर रहने वाली कंपनी ने जब यह टेंडर छोड़ दिया तो अधिकारियो ने हेराफेरी और मोटे लाभ को देखते हुए बिडिंग में दूसरे नंबर पर रहने वाली कंपनी को यह टेंडर देने के बजाय उस कंपनी को टेंडर दे दिया जो इसमें प्रतिभाग ही नहीं कर पाई थी.

उत्तराखंड में ऐसे झोलमाल होते आए हैं यह भी उसकी एक कड़ी है लेकिन जिस तरह से स्वास्थ्य सुविधाएं उत्तराखंड के क्षेत्रों में पंगु हों चुकी है उसे संभालने के बजाय ऐसी नौसिखिया कंपनी को टेंडर दे दिया गया जिसके पास इस क्षेत्र में काम करने का कोई बड़ा अनुभव नहीं है. ऐसा नहीं है कि प्रदेश में ऐसे हॉस्पिटल अथवा संस्थाए ही नहीं है कि जो इस काम को बखूबी से कर सके लेकिन करोड़ों के वारे न्यारे करने वाले नौकरशाहीने स्वास्थ्य विभाग में इसके लिए जिम्मेदार है उन्होंने प्रदेश के लोगों के साथ ऐसा खेल खेल लिया

कंपनी का गठन 11 दिसंबर

विगत दिनों बीरोंखाल के हॉस्पिटल में कार्यरत स्टाफ नर्स पूजा हयाकी की स्वास्थ्य शिविर से लौटते उपचार के दौरान बिजनौर के इस शिवम सर्वम के हॉस्पिटल मैं उपचार के दौरान मृत्यु हो गई थी बताया जा रहा है कि स्वास्थ्य शिविर से लौटते वक्त एंबुलेंस गिर गई थी जिसमें दो डॉक्टर चालक और एक नर्स सवार थे डॉक्टर और चालक उपचाराधीन है जबकि पूजा हयांकी की रामनगर में उपचार की पूरी व्यवस्था होने के बावजूद इसे बिजनौर भेजा गया. जोकि रामनगर से 127 किलोमीटर दूरी पर है और वही हल्द्वानी में जो कि मात्र 50 किलोमीटर की दूरी पर है उपचार के लिए नहीं भेजना कहीं ना कहीं बहुत बड़ी लापरवाही मानी जा सकती है हालांकि इस मामले में महानिदेशालय द्वारा जांच बिठाई गई है रामनगर के उप जिलाधिकारी के नेतृत्व में यह जांच विठाई गई है.स्वास्थ्य की समझ रखने वाले लोगों का कहना है कि जब मरीज इतना गंभीर था और उसे प्राइवेट हॉस्पिटल की जरूरत थी तो क्या हल्द्वानी काशीपुर और मुरादाबाद जोकि बिजनौर से काफी नजदीक है पर इसका उपचार क्यों नहीं किया गया. हल्द्वानी को स्वास्थ्य का हब माना जाता है और पूरे पर्वतीय क्षेत्रों के अलावा उत्तर प्रदेश के रामपुर और मुरादाबाद से सटे हुए लोग भी यहां उपचार के लिए आते हैं तो यहां की स्वास्थ्य सेवा में कार्य करने वाली नर्स को बिजनौर भेजा गया.

टेंडर में भागीदारी करने वाली तीन कंपनियां जिनमें शिवम सर्वम प्रोजेक्ट का नाम ही नहीं

रामनगर पीपीपी मोड के यूनिट हेड डॉ. प्रतीक सिंह ने कहा कि कागजी कार्रवाई में देर लगने की वजह से समय खराब होने की आशंका थी इसलिए उसे बिजनौर के अपने स्वयं के हॉस्पिटल में ले जाया गया. यह बात समझ में नहीं आती है जब डॉक्टर यह कह रहे हैं कि मरीज की इस तरह से पैकिंग की गई थी कि उसे 3 घंटे का सफर आसानी से किया जा सकता है तो एक घंटे के सफर में उसे हल्द्वानी क्यों नहीं पहुंचाया गया.

पूजा के परिजन अभी शोक में डूबे हुए हैं.माना जा रहा है निश्चित रूप से हॉस्पिटल की लापरवाही के खिलाफ वह मामला पंजीकृत कराएंगे. इसके अलावा कई बार रामनगर क्षेत्र जनप्रतिनिधियों ने भी हॉस्पिटल की कार्यप्रणाली के खिलाफ प्रदर्शन भी किया है. लेकिन इसके बावजूद सुधार नहीं देखा गया है. वही पहले यहां पर दो स्त्री रोग विशेषज्ञ कार्य थी लेकिन अब यहां पर सिर्फ एक ही स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं जिससे रात्रि के ग्रामीण क्षेत्रों से डिलीवरी करने वाली महिलाओं को उपचार नहीं मिलता है की वजह से मजबूर हूं उन्हें बड़े हर जिले निजी हॉस्पिटल शरण में जाना पड़ता है. सरकार द्वारा करोड़ों के पीपीपी मोड में खर्च करने के बाद भी जब लोगों को उपचार नहीं मिल रहा है तो इस संबंध में गंभीरता से विचार करना होगा.