देवभूमि उत्तराखंड से ही क्यों हुई UCC की शुरुआत, क्या लोकसभा चुनावों पर भी पड़ेगा असर ?

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उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल को पास कर दिया गया है। राज्यपाल और राष्ट्रपति से मंजूरी मिलते ही इसे लागू कर दिया जाएगा। यूसीसी बिल के पास होने के बाद से प्रदेश के साथ ही पूरे देश में इसकी चर्चा हो रही है। इसके साथ ही इस बात को लेकर भी चर्चा हो रही है कि क्यों उत्तराखंड से ही यूसीसी की शुरूआत की गई। जिसको लेकर राजनीतिक जानकारों का मानना है कि लोकसभा चुनावों के मद्देनजर बीजेपी ने एक सधी हुई चाल चली है। इसका फायदा आगामी लोकसभा चुनावों में बीजेपी को होगा।

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देवभूमि उत्तराखंड से ही क्यों हुई UCC की शुरूआत ?
यूसीसी लागू करने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य बनने जा रहा है। लेकिन यहां पर सवाल ये उठता है कि समान नागरिक संहिता की शुरुआत उत्तराखंड से ही क्यों हो रही है। इसके पीछे की क्या कोई खास वजह है। आपको बता दें कि यूसीसी को विपक्ष लोकसभा चुनाव के मद्देनजर इसे हिंदू वोटरों को साधने की चाल बता रहा है। लेकिन बीजेपी काफी समय पहले से ही अपने घोषणा पत्र में समान नागरिक संहिता का उल्लेख करती रही है।

यूसीसी को लेकर देशभर में चर्चाएं हो रही हैं। इसी बीच एख सवाल उठ रहा है कि उत्तराखंड से ही क्यों इसकी शुरूआत की गई। तो इसका एक जवाब ये हो सकता है कि बीजेपी पूरे देश में लागू ना कर इसे पहले एक राज्य में लागू कर जनता की प्रतिक्रिया देखना चाहती है। बीजेपी छ राज्यों में इसे लागू कर इसका मूल्यांकन कर रही है। अगर इसके बेहतर सकारात्मक परिणाम सामने आते हैं तो बीजेपी इसे पूरे देश में लागू करेगी।

इन वजहों से उत्तराखंड में सबसे पहले लागू किया जा रहा UCC
उत्तराखंड में यूसीसी को लागू करने की कोई एक वजह नहीं है। इसके पीछे कई कारण हैं। जिसमें से सबसे अहम कारण ये है कि उत्तराखंड एक हिंदू बाहुल्य राज्य है। यहं पर कम मुस्लिम आबादी है। इसके साथ ही यहां पर बीजेपी की सरकार है। इसलिए बीजेपी इसे यहां आसानी से लागू करा सकती है।

बीजेपी अगर यूसीसी को पूरे देश में एक साथ लाती है तो उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और अन्य राज्यों में इसे लेकर बड़े पैमाने पर विरोध देखने को मिल सकता है। जैसा कि एंटी सीएए प्रोटेस्ट के दौरान देखने को मिला था। इसलिए बीजेपी ने इसकी शुरूआत एक छोटे राज्य से की है। आसान भाषा में कहे तो बीजेपी ने उत्तराखंड में यूसीसी की शुरूआत एक प्रयोग के रूप में की है। जिसके परिणाम के आधार पर वो इसे पूरे देश में लागू करने पर विचार करेगी।

अल्पसंख्यकों की आशंकाओं को दूर करने की कोशिश
समान नागरिक संहिता को लेकर पूर्वोत्तर राज्यों भी विरोध है। पूर्वोत्तर राज्यों के लोग इस से उनकी जनजातीय पहचान खत्म होने का मुद्दा उठाकर विरोध कर रहे हैं। बीजेपी नहीं चाहती कि वो लोकसभा चुनाव के समय यूसीसी को पूर्वोत्तर के राज्यों में लागू कर पूर्वोत्तर में कोई बड़ा मुद्दा विपक्ष को दे।

इसके साथ ही उत्तराखंड में यूसीसी को आसानी से लागू करवाने के बाद बीजेपी वहां मुस्लिमों या अन्य अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर कोई फर्क न पड़ने की दलील देश के अन्य राज्यों में दे सकेगी। इससे बीजेपी को पूरे देश में अल्पसंख्यकों के मन में व्याप्त आशंकाओं को दूर करने में आसानी होगी।

अल्पसंख्यकों को नाराज करने का BJP नहीं लेना चाहती जोखिम
यूसीसी के जरिए बीजेपी अपने कोर वोटर को भी ये संदेश दे सकती है कि वो राम मंदिर और धारा 370 की तरह ही वो समान नागरिक संहिता के अपने एजेंडे पर कायम है। चुनावी घड़ी में बीजेपी कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है। वो नहीं चाहती है कि संशोधित नागरिकता कानून जैसा कोई बड़ा मुद्दा इस समय विपक्ष के हाथ लगे।

बीते दस सालों में तीन तलाक कानून और उज्जवला, मुद्रा योजना जैसी स्कीमों से अल्पसंख्यकों को लाभ हुआ है। इसका फायदा भी सीधे तौर पर बीजेपी को मिला है। इसके साथ ही इस वजह से मुस्लिम वोटर भी बीजेपी की ओर थोड़ा झुकाव दिखा रहा है। ऐसे में बीजेपी बिल्कुल भी उन्हें नाराज करने का जोखिम उठाने का नहीं सोचेगी।

लोकसभा चुनावों पर भी देखने को मिलेगा असर
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इसका लाभ बीजेपी को ना सिर्फ उत्तराखंड में बल्कि पूरे देश में मिल सकता है। कुल मिलाकर देखा जाए कि यूसीसी से बीजेपी अल्पसंख्यकों को भी अपने पाले में करने की कोशिश कर रही है। इसके साथ ही अपने चुनावी वादों को पूरा करना चाहती है।