क्या है उत्तराखंडी टोपी का इतिहास ?, कैसे महाराष्ट्र से पहुंची पहाड़, जानें यहां

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उत्तराखंडी पहाड़ी टोपी का इतिहास

उत्तराखंड की पहाड़ी टोपी इन दिनों काफी ट्रेंड में है। पीएम मोदी द्वारा उत्तराखंडी टोपी को कई बार पहनने के बाद इसकी डिमांड काफी बढ़ गई है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि उत्तराखंडी टोपी का इतिहास क्या ? कब उत्तराखंड में इस टोपी को पहनने का चलन शुरू हुआ ?

क्या आप जानते हैं उत्तराखंडी टोपी का इतिहास ?

पुरातन काल में उत्तराखंड की अपनी कोई टोपी नहीं थी। यहां लोग पग्गड़ या डांटा पहना करते थे। या फिर टांका बांधा करते थे। उत्तराखंड में टोपी पहनने का प्रचलन चांदपुर गढ़ी के राजा भानुप्रताप के शासनकाल से शुरू हुआ। जब मृगछाला और ऊन से उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में टोपियां बनाई जाने लगी।

History of Pahadi topi
 पग्गड़ या डांटा

कैसे महाराष्ट्र से ये टोपी पहुंची पहाड़ ?

कहा जाता है कि उत्तराखंड में ये उत्तराखंडी पहाड़ी टोपी दक्षिण भारत से आई है। जब आदि गुरु शंकराचार्य उत्तराखंड आए तो उनके साथ कई मराठी पंडित भी यहां आए। जो अपने साथ मराठी टोपी भी लाए। तभी से पहाड़ों पर इस टोपी को पहनने का प्रचलन शुरू हुआ।

History of Pahadi topi
सफेद पहाड़ी टोपी

आपको बता दें कि इस पहाड़ी टोपी को गांधी टोपी भी कहा जाता है। गांधी टोपी कहलाने की कहानी कुछ यूं है कि जब सन् 1931 में महात्मा गांधी रामपुर मुहम्मद अली जौहर से मिलने आए तो उस समय बी अम्मा ने अपने हाथों से बनी सूती कपड़े की टोपी महात्मा गांधी को भेंट की। जो कि बाद में गांधी टोपी के नाम से जानी जाने लगी।

काली टोपियां ऐसे आईं चलन में

उत्तराखंड की पहाड़ी टोपी के रंग को लेकर एक किस्सा सुनाया जाता है। स्वतंत्रता आंदोलन के समय ये पहाड़ी टोपी सभी आंदोलनकारियों की शान बन गई थी। अगर हम कहें भारत की स्वतंत्रता में उत्तराखंड की तरफ से इस टोपी का भी काफी अहम योगदान रहा है तो ये कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।

History of Pahadi topi
उत्तराखंडी टोपी

आंदोलनकारियों के बीच पॉपुलर हुई ये पहाड़ी सफ़ेद टोपी टिहरी के राजा को पसंद नहीं थी। इसी वजह से टिहरी के राजा ने इन सफ़ेद पहाड़ी टोपियों पर प्रतिबन्ध लगा दिया। उसके बाद उत्तराखंड में ये काली टोपियां चलन में आईं। बदलते स्वरुप के साथ समीर शुक्‍ला ने जो मसूरी में सोहम हिमालयन सेंटर के संचालक हैं उन्होंने इस उत्तराखंडी पहाड़ी टोपी में एक पट्टी के साथ ब्रह्मकमल का प्रतीक चिह्न डिज़ाइन किया। जो मार्केट में आते ही काफी पॉपुलर हो गया।

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पीएम मोदी के पहनने के बाद और भी मशहूर हो गई उत्तराखंडी टोपी

एक ज़माने में इन उत्तराखंडी पहाड़ी टोपियों को औजी, बाजगी जाति के लोग बनाया करते थे। वही औजी लोग जो ढोल, दमाऊ बजाने के साथ-साथ सिलाई का काम भी किया करते थे।

History of Pahadi topi
उत्तराखंडी टोपी में पीएम मोदी

बीतते समय के साथ इन उत्तराखंडी टोपियों को लोग भूलने लगे थे। लेकिन जब 2022 के चुनाव के समय प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी ने इसे पहना तब से ये उत्तराखंडी टोपियां ट्रेंड में आ गई। आज एक बार फिर ये टोपियां हर तरफ उत्तराखंड की पहचान बन गई हैं