उत्तराखंड-यहां कब हटेगा नदियों के किनारे से अतिक्रमण?
शासन की सुस्ती और भ्रष्ट प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत ने राजधानी में नदियों, नालों और वन भूमि तक को भूमाफिया के हाथ में दे दिया है।
हाईकोर्ट में गया मामला
देहरादून और आसपास के इलाकों में नदियों के किनारे हुए अतिक्रमण को लेकर उर्मिला थापा के जरिए हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका भी दायर की गई। इस याचिका में बताया गया कि देहरादून में लगभग 100 एकड़, विकासनगर में 140 एकड़, ऋषिकेश में 15 एकड़, डोईवाला में 15 एकड़ के आसपास नदियों की भूमि पर अतिक्रमण किया गया है। एक तरह से देखें तो ये 203 फुटबॉल ग्राउंड के बराबर की भूमि है।
राजनीति की दुकान हैं मलिन बस्तियां
भले ही नदियों के किनारे अतिक्रमण कर मलिन बस्तियां बसा ली गईं लेकिन ये बस्तियां अतिक्रमण कम और जब राजनीति की दुकान अधिक हो जाए तो इन्हे हटाना मुश्किल हो जाता है। देहरादून में भी कुछ ऐसा ही हुआ। देहरादून में बड़े पैमाने पर नदियों के किनारे की जमीन पर मलिन बस्तियां बसाईं गईं या यूं कहें कि बसवाई गईं। बेतरतीब बसी इन बस्तियों में राजनीतिक दुकाने अपनी अपनी सहूलियत से चलती रहीं हैं। इन इलाकों से चुनकर आने वाले जनप्रतिनिधि इन बस्तियों के वोट बैंक को बनाए रखने के लिए हर संभव कोशिश करते हैं। उन्हें इस बात से सरोकार नहीं होता कि ये बस्तियां नदियों के सीने पर एक जख्म के समान हैं।
हाईकोर्ट ने क्या कहा?
देहरादून में नदियों के किनारे किए गए अतिक्रमण को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए नैनीताल हाईकोर्ट ने बेहद सख्त टिप्पणी की। तीन सितंबर 2022 को प्रकाशित LiveLaw.in की एक रिपोर्ट बता रही है कि हाईकोर्ट ने क्या टिप्पणी की। चीफ जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस रमेश चंद्र खुल्बे की खंडपीठ कहती है कि, “हम वन भूमि, जलमार्ग और सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण के संबंध में राज्य में प्रचलित वर्तमान स्थिति को देखकर निराश हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि यह सभी के लिए नि: शुल्क है और कोई भी भूमि के किसी भी हिस्से पर अतिक्रमण कर सकता है।”
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