इस महिला IPS के डर से कांपते हैं अपराधी, दुष्कर्म के बाद बच्ची की हत्‍या करने वाले दरिंदे को दिलाई थी फांसी

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देहरादून एसपी क्राइम व यातायात डा. विशाखा अशोक भड़ाणे के डर से अपराधी कांपते हैं। उन्‍हें केंद्रीय गृह मंत्रालय का बेस्ट इंवेस्टिगेशन अवार्ड दिया गया है।

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रामतीरथ को फांसी दिलाने में अहम भूमिका
हरिद्वार के ऋषिकुल दुष्कर्म कांड में बच्ची से दरिंदगी करने वाले आरोपित रामतीरथ को फांसी दिलाने के लिए विवेचक एसपी क्राइम व यातायात डा. विशाखा अशोक भड़ाणे ने अधिक से अधिक साक्ष्य जुटाए।

रामतीरथ के गले का फंदा बने समय पर जुटाए साक्ष्य
शव बरामद होने के बाद पुलिस टीम ने बिना वक्त गवाए पीड़िता के कपड़े आधी रात में रानीपुर मोड़ पर एक कूड़ेदान से बरामद किए। जबकि, पीड़िता के मुंह पर लगाई गई टेप और हाथ-पांव बांधने में इस्तेमाल की गई रस्सी को भी बतौर साक्ष्य कोर्ट में पेश किया गया।

वहीं, पोस्टमार्टम के दौरान जुटाए गए डीएनए सैंपल भी आरोपित से मैच हो गए। समय पर जुटाए गए साक्ष्य और फारेंसिक रिपोर्ट रामतीरथ के गले का फंदा बन गए।

वर्तमान में देहरादून की एसपी क्राइम व यातायात डा. विशाखा अशोक भड़ाणे को केंद्रीय गृह मंत्रालय का बेस्ट इंवेस्टिगेशन अवार्ड दिया गया है। बतौर विवेचक डा. विशाखा अशोक भड़ाणे ने तकनीकी और मैन्युअल दोनों तरीके अपनाते हुए अभियुक्त को उसके अंजाम तक पहुंचाया।

अक्सर साक्ष्य जुटाने में पुलिस देर कर देती है, जिससे फारेंसिक रिपोर्ट से भी पुलिस को कोई मदद नहीं मिल पाती। लेकिन, इस केस में पुलिस ने पहले दिन से संवेदनशीलता और गंभीरता दिखाई।

आरोपित रामतीरथ ने पूछताछ में जैसे ही बताया कि उसने बच्ची के कपड़े रानीपुर मोड़ पर होटल मधुबन के पास कूड़ेदान में छिपाए हैं, पुलिस टीमें तुरंत मध्य हरिद्वार की तरफ दौड़ पड़ी।

आधी रात कूड़ेदान खंगालते हुए बच्ची के कपड़े बरामद किए गए। रामतीरथ के मुंह से सच उगलवाने में थोड़ी भी देर हो गई होती तो शायद उसे फांसी की सजा दिलाना पुलिस के लिए बहुत ज्यादा चुनौतीपूर्ण होता।

बकौल डा. विशाखा, उन्हें खुशी है कि मेहनत रंग लाई और दोषी को वही सजा मिली, जिसका वह हकदार था। केंद्रीय गृह मंत्रालय का अवार्ड मिलना गर्व की बात है।

ला एंड आर्डर बनाने को बहाया था पसीना
20 दिसंबर 2020 पूरे हरिद्वार के लिए गम, गुस्से और आक्रोश का दिन था। पुलिस की सूझबूझ और समझदारी से चंद घंटों में इस केस का पर्दाफाश हुआ।

बच्ची के लापता होने पर तत्कालीन मायापुर चौकी प्रभारी संजीत कंडारी ने फौरन हरकत में आकर खोजबीन शुरू की। हिरासत में लेकर पूछताछ करने पर रामतीरथ ने अपराध स्वीकार कर लिया।

तब पुलिस ने उसे साथ ले जाकर कमरे से हाथ-पांव बंधा बच्ची का शव बरामद किया। इसके बाद हुए बवाल को थामने के लिए तत्कालीन एसपी सिटी कमलेश उपाध्याय, तत्कालीन सीओ सिटी डा. विशाखा अशोक भड़ाणे, उस समय शहर कोतवाल रहे अमरजीत सिंह सहित आसपास के थानों की पुलिस को खासा पसीना बहाना पड़ा।

रामतीरथ के मामा राजीव के फरार होने पर लोग सड़कों पर उतर आए। एक लाख का इनाम घोषित होने पर तत्कालीन सीओ मंगलौर अभय प्रताप सिंह की अगुआई वाली टीम उसे सुल्तानपुर उत्तर प्रदेश से गिरफ्तार कर लाई थी।