ट्वीट रूपी बाण से जागेगा हाईकमान या किनारे कर दिये जायेंगे हरीश !
देहरादून एसकेटी डॉटकॉम
पूर्व मुख्यमंत्री उत्तराखंड कांग्रेस चुनाव संचालन समिति के चेयरमैन हरीश रावत के ट्वीट के बाद पूरे उत्तराखंड कांग्रेस मैं हलचल मची हुई है रावत ने ट्वीट कर हाईकमान को सतर्क कर दिया है की या तो उन्हें चुनाव संचालन करने की पूरी छूट दी जाए और टिकटों के वितरण में भी उन्हें फ्री हैंड दिया जाए। हाईकमान को दबाव में लेने के लिए जिस तरह उन्होंने अपने विश्राम करने की बात भी की है उससे निश्चित रूप से हाईकमान को फैसला लेना होगा।
केंद्रीय हाईकमान पर निशाना साधते हुए उन्होंने अपने ट्वीट में कहा कि उनके भेजे गए कुछ कुछ नुमाइंदे उन्हें खुलकर प्रदेश की जनता में कांग्रेस की पैठ बनाने से रोक रहे हैं और ऐसी नियुक्तियां की जा रही है जो जो उनके चुनावी कांग्रेस पार्टी को सत्ता में लाने के लिए सहयोग देने की बजाज उनसे दूरी बना कर मुंह फेर ले रहे हैं।
हाईकमान किए लिए किए गए ट्वीट से अब दो तरह की संभावनाएं सामने आती हैं कि या तो इस चुनावी मुहाने पर खड़ी पार्टी हरीश रावत को पार्टी का चेहरा बना देंगे और उन्हें पूरी तरह खुली तौर पर बैटिंग करने की छूट दे देंगे अथवा अगर ऐसा नहीं हुआ तो हरीश रावत कुछ और भी नया करने की सोच सकते हैं जिससे कि वह कांग्रेस पार्टी से ही किनारा कर सकते हैं।
कांग्रेस पार्टी इस समय ओवरहालिंग के दौर से गुजर रही है सत्ता में आए प्रदेशों में बार- बार-बार नेतृत्व परिवर्तन की मांग से जहां कांग्रेस लगातार कमजोर हुई है वही सत्ता विभिन्न प्रदेशों में नेतृत्व करने के लिए योग्य नेताओं एवं युवा पीढ़ी के नेताओं के बीच जो समन्वय की खाई बनती जा रही है उससे हाईकमान निश्चित रूप से कोई कड़ा कदम उठा सकता है।
मध्य प्रदेश राजस्थान पंजाब छत्तीसगढ़ और गोवा भी इस तरह की मामलों से ग्रसित रहा है जिससे मध्य प्रदेश की सरकार को भाजपा ने अपदस्थ कर दिया यही बात राजस्थान मैं भी दोहराते दोहराते रह गई जहां वरिष्ठ नेता एवं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सरकार को हाथों से फिसलने से रोक दिया गोवा में तो चुने गए विधायक विधायक ही भाजपा की झोली में जा बैठे यह लड़ाई उम्र दराज होते जा रहे नेताओं एवं युवा पीढ़ी के नेताओं की सत्ता की कुर्सी पर बैठने की ललक का नतीजा रहा हाईकमान भी इतना मजबूत नहीं रह पाया कि वह इन सारी चीजों को समन्वय कर सके पंजाब में तो जिस तरह से सत्ता की फुटबॉल कैप्टन अमरिंदर सिंह और सिद्धू के बीच खेली गई उससे कांग्रेस की सत्ता में वापसी की उम्मीद है धूमिल होती दिख रही हैं।
उत्तराखंड में भी हरीश रावत को मुख्यमंत्री का चेहरा न बनने देने के लिए यहां भेजे गए हाईकमान के नुमाइंदे ने उन लोगों को आगे बढ़ाने का काम किया जो हरीश की उत्तराखंडीयत को धरातल पर उतारने के आड़े आ रहे हैं हरीश रावत ने अपने ट्वीट में राहुल गांधी पर अपरोक्ष रूप से निशाना साधते हुए कहा कि आलाकमान द्वारा भेजे गए नुमाइंदे ही ऐसे लोगों की फौज को आगे बढ़ा रहे हैं जो कि अपने ही क्षेत्रों से बाहर नहीं निकल पा रहे है।
वही हरीश रावत के विरोधी खेमे के लोगों का कहना है कि अगर हरीश रावत का चेहरा इतना ही मजबूत है तो वह कैसे दो जगह से चुनाव हारे और वर्ष 2019 के लोकसभा सीट में भी उन्हें बुरी हार का सामना करना पड़ा। तो ऐसे में कैसे उन्हें फ्री हैंड दिया जाए। उन्हें फ्री हैंड देने के बारे में अपरोक्ष रूप से इन लोगों का कहना है कि अगर हरीश रावत को चेहरा बना दिया तो भाजपा एवं कांग्रेस मैं उनके विरोधी खेमे के लोग उन्हें चुन चुन कर सीटों पर हरवा देंगे। चुनाव कांग्रेस के हाईकमान सोनिया और राहुल के चेहरे पर लड़ा जाना चाहिए उसके बाद हाईकमान के निर्देश पर ही विधायकों की सहमति से मुख्यमंत्री तय किया जाना चाहिए।
वहीं दूसरी ओर देखा जाए तो हरीश रावत को मुख्यमंत्री के तौर पर प्रदेश की जनता सर्वाधिक रूप से पसंद करती है जबकि कांग्रेस का कोई अन्य चेहरा उनके आसपास भी नहीं ठहरता। रावत समर्थकों का कहना है कि जिस तरह से अपनी सरकार के दौरान उन्होंने उत्तराखंड के लिए योजनाएं चलाई और उन योजनाओं को लोगों ने पसंद किया जिससे पलायन रोकने की उम्मीद बची थी ऐसे निर्णयों के पीछे मुख्यमंत्री के तौर पर हरीश रावत को सबसे ज्यादा पसंद किया जा रहा है अगर इसी बात को लेकर लोगों ने कांग्रेस को वोट किया तो निश्चित रूप से कांग्रेस सत्ता में आ सकती है जिसकी संभावना भी कांग्रेस पार्टी में दिख रही है। हरीश रावत भले ही दोनों चुनाव हार गए हो लेकिन उनकी जनता के बीच स्वीकार्यता कांग्रेश के किसी भी नेता से अधिक है और यहां तक कि सत्ताधारी पार्टी का कोई भी मुख्यमंत्री उन्हें लोकप्रिय मुख्यमंत्री के रूप में किए गए सर्वे में पछाड़ तक नहीं पाया। जनता निश्चित रूप से हरीश रावत को मुख्यमंत्री के तौर पर देखना चाहती है इसीलिए वह हरीश के नाम पर कांग्रेस को भी वोट कर सकती है। कांग्रेस की समूची संभावनाओं को अपने कंधों पर लिए हरीश रावत अगर इस मुहाने पर कोई रोल बैक कर गए तो कांग्रेस की सत्ता में आने की संभावनाएं निश्चित रूप से धूमिल हो जाएंगी।
वही वही हाईकमान की ओर से भेजे गए राज्य प्रभारियों के साथ हरीश रावत की कभी भी पटरी नहीं बैठ पाई। राज्य प्रभारी अनुग्रह नारायण सिंह पर तो आरोप लगा कि वह इंदिरा हृदयेश और प्रीतम सिंह के इशारों के अनुसार ही फैसले लेते थे। वही वर्तमान के प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव भी रावत के साथ तालमेल नहीं बिठा पाए वह उन लोगों को ज्यादा वरीयता देते दिख रहे हैं जो रावत के विरोधी माने जाते हैं।
इसके अलावा वर्ष 2012 में भी जो प्रभारी यहां थे उन पर भी रावत के साथ समन्वय नहीं बनाने और यहां के प्रत्याशियों से टिकटों की एवज में भारी भरकम वसूली करने के आरोप लगे थे जिसके बाद वह खुद ही कांग्रेस से किनारा कर भाजपा के झंडे के नीचे खड़े होकर सत्ता की मलाई खाते रहे। पहले वह पहाड़ के लोगों से टिकट के नाम पर थैलियां भर के ले गए उसके बाद वर्ष वर्ष 2014 के बाद वह भाजपा में चले गए ऐसे ही कुछ लोगों का जमवाड़ा हरियाणा दिल्ली और राजस्थान से आए लोगों का लगा हुआ है जो रावत विरोधी लोगों को टिकट का सपना दिखाकर जेब भर कर वापस चले जाएंगे और दबाव में आधा दर्जन टिकट करवा कर सकता कांग्रेस की सत्ता वापसी को भी अंधेरे कुएं में धकेल देंगे।
अब सवाल यह उठता है कि हाईकमान सत्ता में आने की पटरी पर लौट रही कांग्रेस को किस तरह से संजीवनी देती है वह हरीश रावत को चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष के तौर पर फ्री हैंड देती है या ऐसा कुछ करती है कि जिससे रावत ही खुद किनारे लग जाएं यह तो आने वाले 1 सप्ताह में पता चल जाएगा इसीलिए रावत ने शायद नए वर्ष मैं उम्मीद की जुगनू का जिक्र अपने ट्वीट में किया है
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