साल दर साल खाक हो रही उत्तराखंड की वन संपदा, बीते साल 477 जगह धधके जंगल, पढ़ें खास रिपोर्ट
प्रदेश में लगातार जंगलों में आग की खबरें सामने आ रही हैं। बीते मंगलवार की बात करें तो उत्तराखंड में मंगलवार के दिन 46 जगहों से वनाग्नि की खबरें सामने आई जिनमें से 20 खबरें गढ़वाल और 24 कुमाऊं की थी। लगातार जल रहे जंगलों के कारण हर साल उत्तराखंड की वन संपदा जलकर खाक हो रही है।
बीते एक साल में 477 जगह धधके जंगल
बीते एक साल में उत्तराखंड में 477 वनाग्नि की घटनाएं सामने आई। ये आधिकारिक आंकड़ें इनके अलावा भी कई वन क्षेत्रों में आग लगती है लेकिन ये आंकड़ें कई बार गिने ही नहीं जाते। आप ये जानकर चौंक जाएंगे की उत्तराखंड में साल 2010 में 1.15 मिलियन हेक्टेयर प्राकृतिक वन थे। जो इसके क्षेत्र के 32% से ज्यादा तक फैले हुए थे। वहीं साल 2023 में उत्तराखंड ने अपने 971 हेक्टेयर प्राकृतिक जंगल खो दिए।
ये रिपोर्ट Global Forest Watch ने अपनी वेबसाइट पर पब्लिश की है। आपको बता दें की प्रदेश में एक नवंबर 2023 से लेकर 23 अप्रैल 2024 तक वनाग्नि की कुल 477 घटनाएं सामने आईं। जिनमें 570.07 हेक्टेयर जंगल खाक हो गए हैं।
जंगलों में ये आग क्यों लगती है ?
हर साल जिस जंगल की आग में उत्तराखंड की करोड़ों की संपदा जलकर नष्ट हो रही है वो लगती क्यों है ? क्या कारण है कि उत्तराखंड के जंगल के जंगल हर साल धधक रहे हैं। आपको बता दें कि आग को जलने के लिए तीन चीजों की जरुरत होती है पहला ईंधन, दूसरा ऑक्सीजन और तीसरा हीट।
ऑक्सीजन की बात की जाए तो जंगलों में ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं होती। इसके अलावा यहां पेड़ों के सूखे पत्ते और टहनियां ईंधन का सबसे सोर्स होती हैं। पहाड़ों पर चीड़ और देवदार के पेड़ बहुतायत में हैं। चीड़ की पत्तियां आग लगने के सबसे बड़े कारणों में से एक है। हीट की बात करें तो वो गर्मी के मौसम में पैदा हो ही जाती है। लेकिन अगर आप सोच रहे हैं की गर्मी का मौसम ही जंगल में आग लगने का कारण है तो रूकिए और सिर्फ गर्मी का मौसम ही नहीं जंगलों की आग का कारण कुछ और भी हैं।
ये कारक हैं वनाग्नि के लिए जिम्मेदार
जंगलों में आग लगने के लिए एक छोटी सी चिंगारी भी काफी है। ये चिंगारी सिर्फ पेड़ों की टहनियों के आपस में रगड़ खाने और सूरज की तेज़ किरणों के अलावा भी कई और तरीकों से लगती है। ज्यादातर आग की घटनाओं के पीछे सबसे बड़ा हाथ इंसानों का होता है। फिर चाहे वो लोगों द्वारा शहद निकालने या साल के बीज जैसे उत्पादों को इकट्ठा करने के लिए जानबूझकर लगाई गई चिंगारी हो या फिर किसी जलती चीज़ का जंगल में रह जाना हो। जैसे बीड़ी और सिगरेट पीकर फेंक देना।
आस-पास के गांव के लोगों द्वारा दुर्भावना से आग लगाना हो, मवेशियों के लिये चारा उपलब्ध कराने के लिए आग लगाना हो या बिजली के तारों का जंगलों से होकर गुजरना। फिर यही छोटी सी चिंगारी प्रचंड अग्नि का रुप लेकर सारे जंगल को खाक कर देती है। इसके साथ ही जंगल में रहने वाले जीवों को इस से काफी नुकसान होता है।
वनाग्नि से जैव विविधता को होता है नुकसान
जंगल की आग से प्रदूषण तो होता ही है लेकिन साथ ही में जैव विविधता को काफी नुकसान भी होता है। वनाग्नि से मिट्टी की उर्वरता में भी काफी कमी आती है। इससे जंगल में पेड़ तो जलते ही हैं वहीं नए पेड़ भी नहीं उग पाते। Global forest watch की एक रिपोर्ट के मुताबिक उत्तराखंड में पिछले 4 हफ्तों में चंपावत 11 फायर अलर्ट के साथ सबसे ज्याद सेंसटीव ऐरिया रहा। बात की जाए पिछले तीन सालों की तो 26 अप्रैल 2021 से 22 अप्रैल 2024 के बीच उत्तराखंड में कुल 1,125 वनाग्नि के अलर्ट आए।
इस हफ्ते की बात करें तो हमें बीते 7 दिनों में 2,411 आग अलर्ट की सूचना मिली। जिनमें से 1.7% high confidence alerts थे।
आज उत्तराखंड वनाग्नि से सबसे ज्यादा जंगल खो रहा है। अगर जंगलों में इसी रेट से वनाग्नि लगते रही तो वो दिन दूर नहीं जब सारे जंगल जल के खाक हो जाएंगे और हमारा जैव विविधता भरा पहाड़ी राज्य एक रेगिस्तान में तब्दील होने की कगार पर खड़ा होगा।
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