कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष ने चंपावत उपचुनाव को लेकर लगाए ये आरोप, जांच की कही बात

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उत्तराखंड में उपचुनाव का रिजल्ट आने के बाद से जहां भाजपा के खेमे में खुशी का ठिकाना नहीं था वहीं कांग्रेस के खेमे में दिग्गज नेताओं के द्वारा बड़े-बड़े बयान सामने आने शुरू हो गए थे वही बात करें कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष करण महारा ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने हाई कोर्ट के किसी रिटायर्ड जज से पूरे चुनाव की जांच कराने की मांग कर डाली है। करण महारा का आरोप है कि दोपहर बाद चुनाव में परसेंटेज बढ़ता है, लेकिन जिन बूथों पर कोई मतदाता ही नहीं था, वहां पर क्या भूत-पिशाच ने आकर वोट डाले, यहां तक कि कई मतदान केंद्रों पर बत्ती गुल हुई और सीसीटीवी भी बंद हो गए। उन्होंने मांग उठाई है कि इसकी जांच की जाए, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि प्रदेश में अपना अस्तित्व खोती जा रही कांग्रेस खुद ही इसकी जिम्मेदार है।

चुनाव की घोषणा की साथ ही प्रत्याशी चयन और प्रचार भर में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत, यशपाल आर्य और प्रीतम सिंह की बेरुखी साफ देखी जा सकती है। यहां तक की प्रेस वार्ता कर आरोप लगाने वाले करण महारा का चुनाव में योगदान भी किसी से छुपा नहीं है। खुद पार्टी की प्रत्याशी बनाई गई निर्मला गहतोड़ी ने इन नेताओं पर सवाल उठाएं हैं। मीडिया को दिए अपने इंटरव्यू में निर्मला गहतोड़ी ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस के नाम पर उनके पास सिर्फ सिंबल था। किसी नेता ने उनके पक्ष में माहौल बनाने की कोई कोशिश ही नहीं की।

निर्मला गहतोड़ी के इस बयान को सच मानें तो क्या पहले ही भाजपा और कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के बीच सेटिंग – गेटिंग का खेल हो गया था ? मुख्यमंत्री को वाकओवर देने की तैयारी पहले ही कर ली गई थी ? निर्मला गहतोड़ी को बलि का बकरा बनाया गया ? क्यों नहीं हेमेश खर्कवाल को मनाने की कोशिश हुई ? ऐसे में जबकि कांग्रेस जानती थी कि गुजरे चुनाव में हेमेश खर्कवाल सिर्फ 5000 वोटों के अंतर से मुख्यमंत्री के लिए कुर्सी छोड़ने वाले कैलाश गहतोड़ी से चुनाव हारे थे, क्यों नहीं कांग्रेस ने खर्कवाल को प्रत्याशी बनाया गया ?

क्यों निर्मला गहतोड़ी के गले में घंटी बांध दी गई ? और फिर पूरे चुनाव में निर्मला चीख-चीखकर कहती रहीं कि उनके झंडे नहीं लगने दिए जा रहे, कार्यालय नहीं खुलने दिए जा रहे हैं, यहां तक कि पोलिंग बूथों पर एजेंट तक की नो एंट्री कर दी गई, तब कांग्रेस के बड़े नेता क्या कर रहे थे। क्यों नहीं उन्होंने इस मुद्दे को उठाया ? क्यों नहीं उन्होंने निर्वाचन आयोग के सामने सवाल खड़ा किया ? और फिर प्रचार में यह नेता कहां गायब थे ? यह तमाम सवाल ऐसे हैं जो खुद कांग्रेस की हार की वजह बने हैं। साफ हो जाता है कि कांग्रेस ने चुनाव से पहले ही हार स्वीकार कर ली थी।

हरीश रावत, प्रीतम सिंह, यशपाल आर्य या फिर खुद प्रदेश अध्यक्ष करण महारा इसके लिए सीधे तौर पर दोषी हैं। अब हम यह मान भी लेते हैं कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की जीत पक्की थी, लेकिन जिस तरह कांग्रेस चंपावत में धड़ाम हुई, वह शर्मनाक है। खैर जमानत जब्त होने के बाद मुंह छुपाने वाले कांग्रेसी नेताओं का एक बार फिर रोना शुरू हो गया है। पार्टी प्रदेश अध्यक्ष करण मेहरा की प्रेस वार्ता से तो ऐसा ही प्रतीत होता है।