सोशल मीडिया व डिजिटल मीडिया पत्रकार अब ‘झोलाछाप’ नहीं कहे जाएंगे: सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने किया स्पष्ट



सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर कार्यरत पत्रकारों को अब ‘झोलाछाप’ कहकर खारिज नहीं किया जा सकेगा। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने स्पष्ट कर दिया है कि डिजिटल मीडिया और सोशल मीडिया पर कार्य कर रहे पत्रकार भी पत्रकार की ही श्रेणी में आते हैं और उनके लिए भी आचार संहिता एवं सरकारी तंत्र के अंतर्गत नियमन की व्यवस्था है। यह स्पष्टता उस समय सामने आई जब उत्तराखंड के सामाजिक कार्यकर्ता पीयूष जोशी ने प्रधानमंत्री कार्यालय के सार्वजनिक शिकायत पोर्टल (PMOPG) पर तीन शिकायतें दायर कर डिजिटल मीडिया पत्रकारों को पारंपरिक पत्रकारों के समान मान्यता, कल्याण योजनाओं और सरकारी विज्ञापन नीति में सम्मिलित किए जाने की माँग उठाई।
पीयूष जोशी की शिकायतों (PMOPG/E/2025/0032155, PMOPG/E/2025/0032151 और PMOPG/E/2025/0039909) में कहा गया था कि यूट्यूब चैनल, न्यूज़ ऐप्स और डिजिटल न्यूज़ पोर्टलों के माध्यम से समाचार प्रसारण करने वाले हजारों पत्रकार आज भी सरकारी मान्यता, CGHS स्वास्थ्य सुविधा, रेल किराया रियायत और सरकारी विज्ञापनों से वंचित हैं। उन्होंने अपनी शिकायत में यह भी उल्लेख किया कि ऐसे पत्रकारों को सामाजिक स्तर पर ‘झोलाछाप’ समझा जा रहा है जबकि वे निरंतर रिपोर्टिंग, ग्राउंड कवरेज और जनहित के मुद्दों पर कार्य कर रहे हैं।
इन शिकायतों पर प्रतिक्रिया देते हुए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने 9 अप्रैल 2025 को पत्रांक J-11013/36/2024-DM के तहत स्पष्ट किया कि डिजिटल मीडिया के अंतर्गत कार्यरत पत्रकारों को Information Technology (Intermediary Guidelines and Digital Media Ethics Code) Rules, 2021 के अंतर्गत आचार संहिता और त्रिस्तरीय शिकायत निवारण तंत्र के दायरे में रखा गया है। मंत्रालय के अनुसार, डिजिटल मीडिया के अंतर्गत आने वाले समाचार और करंट अफेयर्स के प्रकाशकों पर वही नैतिक जिम्मेदारियाँ लागू होती हैं जो पारंपरिक मीडिया पर हैं। इसके साथ ही मंत्रालय ने यह भी बताया कि श्रम संहिताओं (Labour Codes) 2020 में वर्किंग जर्नलिस्ट की परिभाषा में डिजिटल पत्रकारों को भी सम्मिलित किया गया है।
हालांकि, वर्तमान में CGHS, रेल किराया रियायत, बेरोज़गारी भत्ता जैसी कई पत्रकार कल्याण योजनाओं का लाभ केवल पारंपरिक और PIB मान्यता प्राप्त पत्रकारों को दिया जा रहा है। मंत्रालय ने स्वीकार किया कि इन योजनाओं में बदलाव की आवश्यकता है और डिजिटल मीडिया पत्रकारों को भी इन लाभों में शामिल करने की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी गई है। मंत्रालय ने यह भी कहा कि डिजिटल पत्रकारों की स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए नीति स्तर पर बदलाव प्राथमिकता से किया जा रहा है।
सरकारी विज्ञापन नीति की बात करें तो केंद्र सरकार के DAVP (Directorate of Advertising and Visual Publicity) द्वारा अब तक विज्ञापन केवल प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तक सीमित थे, लेकिन कर्नाटक सरकार ने 2024 में “डिजिटल विज्ञापन दिशानिर्देश” लागू कर ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टलों, मोबाइल ऐप्स और यूट्यूब चैनलों को भी विज्ञापन आवंटन के योग्य माना है। यह एक सकारात्मक संकेत है कि राज्य स्तर पर डिजिटल पत्रकारिता को मान्यता देने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, और केंद्र को भी इससे सबक लेकर नीति में परिवर्तन करना चाहिए।
डिजिटल और सोशल मीडिया पत्रकारों के बीच अंतर को स्पष्ट करते हुए मंत्रालय ने कहा कि डिजिटल मीडिया वे प्लेटफॉर्म हैं जो समाचार और करंट अफेयर्स की सामग्री प्रकाशित करते हैं तथा IT नियमों के तहत पंजीकृत होते हैं, जबकि सोशल मीडिया पत्रकार व्यक्तिगत खातों या यूट्यूब चैनलों के माध्यम से सामग्री प्रसारित करते हैं। हालांकि, दोनों ही पत्रकारिता के दायरे में आते हैं और उन्हें कानूनी संरचना में समावेश देने की आवश्यकता है।
विशेषज्ञों का भी मानना है कि अब वह समय आ गया है जब सरकार को पारंपरिक और डिजिटल पत्रकारों के बीच भेदभाव समाप्त कर सभी को एक समान अधिकार, सुरक्षा और लाभ देने चाहिए। Digipub News India Foundation की सह-संस्थापक डॉ. शशि मुखर्जी ने कहा कि डिजिटल मीडिया पत्रकारिता ने सूचना तंत्र को जमीनी स्तर तक पहुँचाया है, और सरकार को उन्हें नजरअंदाज करने के बजाय उन्हें सशक्त करना चाहिए। मीडिया विश्लेषक संदीप चतुर्वेदी ने भी माना कि जब निगरानी तंत्र एक समान है तो सुविधाएँ भी एक जैसी होनी चाहिए।
इस प्रकार, पीयूष जोशी की शिकायतों के माध्यम से उठाया गया यह मुद्दा न केवल डिजिटल पत्रकारों की सामाजिक और कानूनी मान्यता से जुड़ा है, बल्कि यह इस बात का संकेत भी है कि पत्रकारिता का स्वरूप बदल रहा है और नीतिगत परिवर्तन की आवश्यकता अब अपरिहार्य हो चुकी है। यदि केंद्र और राज्य सरकारें डिजिटल पत्रकारों को औपचारिक मान्यता, कल्याण योजनाओं और विज्ञापन नीति में समुचित स्थान देती हैं, तो यह भारत में मीडिया की आज़ादी और लोकतंत्र की मजबूती की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम होगा।
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