@ Raksha Bandhan साल में सिर्फ रक्षाबंधन के मौके पर खुलता है ये मंदिर, पढ़िए इसकी रोचक कहानी

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क्या आपने कभी ऐसे मंदिर के बारे में सुना है जो साल में केवल एक दिन खुलता है। वो भी रक्षाबंधन के मौके पर…अगर नहीं सुना है तो आज हम आपको ऐसे ही एक मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं।

चमोली में स्थित है ये मंदिर
भारत में एक ऐसा मंदिर भी है जो साल में केवल एक दिन रक्षाबंधन के मौके पर ही खुलता है। इस दिन बहनें इस मंदिर में भगवान विष्णु को राखी बांधने जाती हैं। यह मंदिर देवभूमि उत्तराखंड के चमोली जिले की उर्गम घाटी में कल्पेश्वर महादेव मंदिर से लगभग 12 किलोमीटर और देवग्राम से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर समुद्र तल से लगभग 12 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है ।

chamoli
ग्रामीण करते है उत्सव का आयोजन
वंशी नारायण मंदिर भगवान कृष्ण को समर्पित 8वीं शताब्दी का मंदिर है। मंदिर उर्गम गांव के अंतिम गांव बंसा से 10 किमी आगे स्थित है। इसलिए मंदिर के आसपास कोई मानव बस्तियां नहीं हैं। कई लोग इस मंदिर को बंशी नारायण मंदिर के नाम से भी जानते हैं।

bhagwan vishnu
वंशीनारायण मंदिर में भगवान नारायण की चतुर्भुज मूर्ति स्थापित है। इस मंदिर में विष्णु भगवान की पूजा की जाती है। रक्षाबंधन के दिन किमाणा, डुमक, कलगोठ, जखोला, पल्ला और उर्गम घाटी के ग्रामीण यहां पर उत्सव का आयोजन करते हैं।

रक्षाबंधन के दिन ही खुलते हैं मंदिर के कपाट
वंशीनारायण मंदिर को लेकर कहा जाता है कि रक्षाबंधन के दिन सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक इस मंदिर के कपाट खुलते हैं। इसके बाद अगले एक साल के लिए फिर से मंदिर बंद हो जाता है। रक्षाबंधन के दिन मंदिर खुलते ही कुंवारी कन्या और विवाहित महिलाएं भगवान वंशीनारायण को राखी बांधने जाती है।

मंदिर से जुड़ी रोचक कहानी
पौराणिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि

रक्षाबंधन के दिन सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक इस मंदिर के कपाट खुलते हैं। इसके बाद अगले एक साल के लिए फिर से मंदिर बंद हो जाता है। रक्षाबंधन के दिन मंदिर खुलते ही कुंवारी कन्या और विवाहित महिलाएं भगवान वंशीनारायण को राखी बांधने जाती है।

मंदिर से जुड़ी रोचक कहानी
पौराणिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि देवताओं के आग्रह पर भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण कर दानवीर राजा बलि का घमंड चूर किया था। बलि का घमंड चूर होने के बाद उन्होंने पाताल लोक में जाकर भगवान विष्णु की कठोर तपस्या की थी। बलि की कठोर तपस्या से भगवान विष्णु प्रसन्न हुए थे। जिसके बाद राजा बलि ने भगवान नारायण से प्रार्थना की थी कि वह भी मेरे सामने ही रहे। ऐसे में भगवान विष्णु पाताल लोक में बलि के द्वारपाल बन गए थे

मां लक्ष्मी की प्रार्थना के बाद किया वचन से मुक्त
लंबे समय तक जब भगवान विष्णु वापस नहीं लौटे तो मां लक्ष्मी भी पाताल लोक आ गई। माता लक्ष्मी ने पाताल लोक में राजा बलि की कलाई पर रक्षा सूत्र बांध कर प्रार्थना की कि वो भगवान विष्णु को जाने दें। इसके बाद राजा बलि ने अपनी बहन की बात मान कर भगवान विष्णु को वचन से मुक्त कर दिया। मान्यता है कि पाताल लोक से भगवान विष्णु इसी क्षेत्र में प्रकट हुए थे।

एक ही दिन खुलते हैं मंदिर के कपाट
इस वजह से गांव कि विवाहित महिलाएं और कुंवारी कन्याएं भगवान विष्णु को अपना भाई मानती हैं और रक्षाबंधन के दिन मंदिर में जाकर भवन विष्णु को राखी बांधती हैं। यहां पर लोगों को सिर्फ एक दिन ही पूजा करने का अधिकार मिला हुआ है। वंशीनारायण मंदिर को केवल रक्षाबंधन के दिन ही खोला जाता है। साल के 364 दिन इस मंदिर के कपाट बंद रहते हैं।

इस समय बांधे अपने भाई की कलाई में राखी
साल 2023 में भद्रा का साया होने के कारण लोग असमंजय की स्थिति में हैं। सभी लोग ये सोच रहे हैं कि आखिर राखी 30 को बांधे या फिर 31 अगस्त को। पूर्णिमा तिथि 30 अगस्त को सुबह 10 बजकर 58 मिनट से शुरू होगी और 31 अगस्त को सुबह 07 बजकर 05 मिनट तक रहेगी।

ऐसे में रक्षाबंधन 2023 का मुहूर्त 30 अगस्त को रात 09 बजकर 01 मिनट से 31 अगस्त को सुबह 07 बजकर 05 मिनट तक रहेगा। 31 अगस्त को सावन पूर्णिमा सुबह 07 बजकर 05 मिनट तक है। इस समय भद्राकाल नहीं है। इस वजह से राखी का त्योहार 30 और 31 अगस्त दोनों दिन मनाया जा सकेगा।

ज्योतिषों के अनुसार 30 अगस्त को राखी बांधने का शुभ मुहूर्त रात 09 बजकर 01 मिनट के बाद रात 12 बजे तक रहेगा। 31 अगस्त को रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त सूर्योदय से लेकर सुबह 07 बजकर 05 मिनट तक है। इस बीच सभी बहनें अपने भाई की कलाई में राखी बांध सकती हैं।

क्यों नहीं बांधी जाती भद्रा में राखी
हिंदू मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि रावण की बहन शूर्पणखा ने अपने भाई रावण को भद्रा काल में राखी बांध दी थी। जिस वजह से रावण के पूरे कुल का सर्वनाश हो गया। इसलिए भद्राकाल में राखी नहीं बांधनी चाहिए। बताया यह भी जाता है कि भद्रा में राखी बांधने से भाई की उम्र कम होती है।

रक्षाबंधन का पर्व भाई बहन के बीच प्रेम का प्रतीक है। इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती हैं और भाई अपनी बहन की रक्षा का वचन लेते हैं। मान्यता है कि रक्षा सूत्र बांधने से भाइयों को सुख-समृद्धि और सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है।