पहाड़ की बेटी Chhonzin Angmo बनीं Mount Everest को फतेह करने वाली पहली नेत्रहीन भारतीय महिला


First visually impaired Indian woman Chhonzin Angmo Mount Everest: वो कहते है ना जिसके इरादे बुलंद हों उसके आगे न अंधेरा टिकता है और ना ही ऊंचाई। छोंजिन अंगमो(Chhonzin Angmo) इसकी जीती-जागती मिसाल हैं। उन्होंने सिर्फ पहाड़ नहीं चढ़े बल्कि अपने हौसले से पूरे देश का सिर ऊंचा कर दिया। ऐसा ही कुछ पहाड़ की बेटी ने कर दिखाया है।
29 साल की छोंजिन अंगमो माउंट एवरेस्ट(Mount Everest) को फतेह करने वाली पहली नेत्रहीन भारतीय महिला बन गई(First visually impaired Indian woman) है। हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले के चांगो गांव की रहन वाली छोंजिन नेत्रहीन है। जब वो आठ साल की थी तो उनकी दवा से एलर्जी के कारण आंखों की रोशनी चली गई थी। लेकिन इसके बावजूद उन्होंने अपने जीवन में कभी हार नहीं मानी।

Chhonzin Angmo बनीं Mount Everest को फतेह करने वाली पहली नेत्रहीन भारतीय महिला
Chhonzin Angmo पांच भाई-बहन है। वो दूसरे नंबर पर हैं। उनके परिवार ने बताया कि जब वो थर्ड क्लास में थी तब उन्हें एक दवा से एलर्जी हो गई थी। जिसके कारण उनकी आंखों की रोशनी चली गई। परिवार को इस बात की जानकारी तब लगी जब छोंजिन की टीचर ने बताया कि उन्हें लिखने में काफी मुश्किल हो रही है।
जिसके बाद परिवार उन्हें अस्पताल ले गए। इलाज के बाद भी उन्हें कोई राहत नहीं मिली। समय के साथ उनकी आंखों की रोशनी पूरी तरह से चली गई। इलाज के लिए परिवार देहरादून, चंडीगढ़ आदि जगहें भटके लेकिन फिर भी कोई समाधान नहीं निकला।
छोंजिन अंगमो की पहाड़ चढ़ने में दिलचस्पी
छोंजिन अंगमो ने अपने अंधेरे को अपने अंदर की रोशनी से भर दिया। पढ़ाई के लिए वो लद्दाख के महाबोधि स्कूल में गईं। फिर दिल्ली यूनिवर्सिटी के मिरांडा हाउस से ग्रेजुएशन किया। लेकिन असली मोड़ तब आया जब उन्हें पहाड़ों से प्यार हुआ।
2016 में उन्होंने मनाली के पर्वतारोहण संस्थान से बेसिक क्लाइम्बिंग कोर्स किया। 5,289 मीटर की ऊंचाई पर चढ़ना आसान नहीं होता और वो भी तब जब आप देख नहीं सकते। लेकिन अंगमो ने कर दिखाया। फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। सियाचिन, लद्दाख की अनजानी चोटियां एक-एक कर वो सब फतह करती गईं।
छोंजिन अंगमो की रोल मॉडल
इस सफर में उन्हें सबसे बड़ी प्रेरणा मिली स्कालजंग रिगजिन से। जिन्होंने बिना ऑक्सीजन सपोर्ट माउंट एवरेस्ट फतह किया था। तभी अंगमो ने भी तय कर लिया कि अब एवरेस्ट ही अगला पड़ाव होगा।
अंगमो की प्रेरणा सिर्फ पहाड़ नहीं थे उनकी आदर्श थीं हेलेन केलर। नेत्रहीन और बधिर होने के बावजूद जिन्होंने पूरी दुनिया को जीने की प्रेरणा दी। साथ ही उनके पापा, जब दुनिया ताने मार रही थी वो उनके साथ हमेशा खड़े रहे।
छोंजिन अंगमो की सफलताएं
अंगमो इससे पहले भी कई ऊंचाई वाली चोटियों जैसे सियाचिन कुमार पोस्ट (15632 फीट) और लद्दाख की एक अज्ञात चोटी (19717 फीट) को फतेह कर चुकी हैं।
आज छोंजिन अंगमो को ‘सर्वश्रेष्ठ दिव्यांगजन’ का राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है। लेकिन इससे कहीं ज्यादा बड़ी बात ये है कि उन्होंने लाखों लोगों को हिम्मत दी है। उन्होंने ये दिखाया है कि मुश्किलें कितनी भी बड़ी क्यों न हों। अगर हौसला मजबूत हो, तो रास्ता खुद बनता जाता है।
माउंट एवेरेस्ट पर चढ़ाई करने वाले देश के अन्य नेत्रहीन व्यक्ति
- अमेरिका के एरिक वेहेनमेयर – 2001
- ऑस्ट्रिया के एंडी होल्जर – 2017
- चीन के झांग होंग -2021
- अमेरिका के लॉनी बेडवेल -2023
- साल 2025-छोंजिन अंगमो – 2025 (माउंट एवेरेस्ट चढ़ने वाली भारत की पहली और दुनिया की पांचवीं नेत्रहीन)
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