सालों से कर रहे सड़क की मांग, उत्तराखंड के 50 से ज्यादा गांवों ने किया चुनाव बहिष्कार का ऐलान
चुनाव बहिष्कार का मुद्दा लोकसभा चुनाव से पहले उत्तराखंड में गरमा रहा है। अल्मोड़ा से लेकर पौड़ी तक पहाड़ से लेकर मैदान तक कई गांव चुनाव बहिष्कार कर रहे हैं। चुनाव बहिष्कार के पीछे यूं तो कई मुद्दे हैं लेकिन सबसे ज्यादा जो मुद्दा उठ रहा है वो सड़क का है। जिसको लेकर प्रदेश के पचास से ज्यादा गांवों ने चुनाव बहिष्कार का ऐलान कर दिया है।
अल्मोड़ा के 15 गांवों ने किया चुनाव बहिष्कार
लोकतंत्र के महापर्व लोकसभा चुनाव के लिए उत्तराखंड में पहले चरण में 19 अप्रैल को मतदान होना है। लेकिन इस से पहले चुनाव बहिष्कार के स्वर सुनाई दे रहे हैं। अल्मोड़ा जिले के 15 गांवों ने चुनाव बहिष्कार का ऐलान किया है। पेयजल, सड़क जैसे मुद्दों को लेकर ग्रामीणों ने ये ऐलान किया है। पानी की किल्लत और सड़क ना होने के कारण ग्रामीण परेशान हैं।
अल्मोड़ा जिले के हटोला, पुनाइजर, कसाण, खुडयारी, बरगेटी, सुखाली और तलस्यारी के ग्रामीण चुनाव बहिष्कार करेंगे। इसके साथ ही दलमोटी, बलुटिया में चार किमी सड़क ना बनने के कारण चुनाव बहिष्कार की बात कही है। जबकि सोमेश्वर विधानसभा के अंतर्गत खाइकट्टा और क्वैराला गांव में पेयजल समस्या को लेकर चुनाव बहिष्कार की चेतावनी दी गई है। बात करें सल्ट की तो 11 ग्राम पंचायतों के ग्रामीणों ने 28 किमी लंबे झीपा-टनौला-डबरा तक मोटरमार्ग पर डामरीकरण ना होने के कारण मतदान ना करने की चेतावनी दी है।
पौड़ी गढ़वाल के 35 गांवों ने किया चुनाव बहिष्कार
लोकसभा चुनाव से पहले अपनी मांगों को लेकर पहाड़ से लेकर मैदान तक लोग चुनाव बहिष्कार कर रहे हैं। वन इंडिया हिंदी की एक रिपोर्ट के मुताबिक पौड़ी गढ़वाल जिले के 35 गांवों ने सड़क की मांग को लेकर चुनाव बहिष्कार का ऐलान किया है। ग्रामीणों का कहना है कि इतने सालों से उन्होंने वोट दिया लेकिन फिर भी विकास नहीं हुआ। इस बार को वोट ना देकर जन प्रतिनिधियों को जगाना चाहते हैं। लोगों का कहना है कि वो 44 साल से सड़क का इंतजार कर रहे हैं। बता दें कि इन 35 गांवों ने पार्क प्रभावित संघर्ष समिति के बैनर तले आंदोलन भी किया। लेकिन इनके बाद भी उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं हैं।
चमोली में भी यहां चुनाव बहिष्कार
चमोली में गांव बनाने की मांग करते हुए चमोली जिले के नगर पंचायत देवरोड़ा वार्ड के लोगों ने चुनाव बहिष्कार का ऐलान किया है। यहां तक लोगों ने जन प्रतिनिधियों को गांव के अंदर ना घुसने की चेतावनी दी है। लोगों का कहना है कि उन्होंने गांव के सभी रास्तों पर गांव नहीं तो वोट नहीं के बैनर लगाए गए हैं। जब तक उन्हें नगर पंचायत से हटाकर दोबारा ग्राम पंचायत में नहीं डाला जाता वो चुनाव बहिष्कार के साथ ही किसी भी जनप्रतिनिधि को गांव में नहीं घुसने देंगे।
रोड नहीं तो वोट नहीं
चमोली जिले के ही डुमक गांव के लोगों ने सड़क की मांग करते हुए चुनाव बहिष्कार का ऐलान किया है। बता दें कि ग्रामीण चार दशकों से गांव को जिला मुख्यालय से जोड़ने वाली एक महत्वपूर्ण सड़क के निर्माण के लिए आंदोलन कर रहे हैं। लेकिन आज तक उनकी मांग पूरी नहीं हो पाई है।
बता दें कि सड़क निर्माण की मांग को लेकर दशोली और पैनखंड क्षेत्र के लोग 1990 के दशक से दो बार चुनाव का बहिष्कार कर चुके हैं। सड़क ना होने से परेशान लोग किसी एक गांव के नहीं है बल्कि कर्णप्रयाग में किमोली-पारतोली गांव के लोगों को सड़क की डामरीकरण ना होने के कारण आक्रोश है। उन्होंने पोस्टर लगा दिए हैं कि उनके गांवों में कोई प्रतिनिधि नहीं आना चाहिए।
चंपावत व देहरादून में भी चुनाव बहिष्कार का ऐलान
चंपावत जिले के बाराकोट ब्लॉक के बंतोली गांव में सड़क का निर्माण नहीं होने से नाराज स्थानीय लोगों ने आगामी लोकसभा चुनाव में मतदान के बहिष्कार का ऐलान किया है। बता दें ग्रामीण लंबे समय से मरोड़ाखान बंतोली सड़क में डामरीकरण की मांग कर रहे है। लेकिन ग्रामीणों की मांग अभी तक पूरी नहीं हो पाई।
राजधानी देहरादून की डोईवाला विधानसभा की तीन पंचायतों ने चुनाव बहिष्कार का ऐलान किया है। ग्रामीणों ने रोड नहीं तो वोट नहीं का बैनर लगाकर चुनाव बहिष्कार का ऐलान कर दिया है। सड़क ना बनने के कारण लोगों में खासा आक्रोश है।
गोद लिए गए गांवों ने भी किया ऐलान
गांवों के विकास के लिए सांसदों द्वारा कुछ गांवों को गोद लिया जाता है। लेकिन सांसदों द्वारा गोद लिए गए गांवों ने भी चुनाव बहिष्कार का ऐलान किया है। अल्मोड़ा के सांसद अजय टम्टा ने चंपावत जिला मुख्यालय से करीब 28 किमी दूर स्थित गोशनी गांव को गोद लिया था। जबकि टिहरी सांसद माला राज्य लक्ष्मी शाह ने क्यारा गांव को गोद लिया था। दोनों ही गांव के ग्रामीणों ने बुनियादी सुविधाएं ना मिल पाने के कारण और सड़क ना बनने के कारण चुनाव बहिष्कार का ऐलान किया है
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