मोदी जी मुक्त करो गुलामी की दास्तान -एक ऐसी रेल लाइन जो अभी भी अंग्रेजो के कब्जे में, भारत अभी भी देता है इतनी रॉयल्टी

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यवतलाम महाराष्ट्र एसकेटी

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भारत की यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी देश से गुलामी की प्रतीकों को हटाने के लिए प्रतिबंध रहते हैं इसी क्रम में होने भारती कुमाऊँ रेजीमेंट की दूसरी बटालियन सेकंड कुमाऊं को पूर्व के बरार नाम से हटाने का भी कार्य किया लेकिन भारतीय रेलवे की एक ऐसी रेल लाइन को अभी वह भारतीयों के नाम नहीं कर पाए जिसकी वजह से भारतीय रेल अभी भी इंग्लैंड की प्रतिनिधि कंपनी को हर साल रॉयल्टी देती है.

भारतीय रेल को रेल अंग्रेजों की देन कहा जाय बता इसमें इसमें कोई दो राय नहीं है. लेकिन उन्होंने भारत में रेलवे का निर्माण इसलिए किया ताकि वह आसानी से हिंदुस्तान से लूटे हुए सामान को बंदरगाहों तक पहुंचा सकें, जहां से उन्हें इंग्लैंड ले जाया जा सके. इसके साथ ही एक जगह से दूसरी जगह तक सुरक्षित और तेजी से पहुंचने के लिए भी अंग्रेजों ने रेलवे का निर्माण किया. लेकिन जब भारत आजाद हुआ तो उसके साथ अंग्रेजों का यह रेल भी भारतीय रेलवे बन गया. इसमें कई बदलाव भी हुए. समय-समय पर इसे बेहतर बनाने का काम किया गया. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि आजादी के इतने वर्षों बाद भी भारत में एक रेल लाइन ऐसी है जो आज भी अंग्रेजो के कब्जे में है. इस रेल लाइन के लिए हर साल अंग्रेजों को करोड़ों रुपए की रॉयल्टी दी जाती है. तो चलिए आपको उसी खास रेल लाइन के बारे में बताते हैं.

कहां है यह रेल लाइन

इस रेल लाइन को शकुंतला रेल ट्रैक कहा जाता है. यह महाराष्ट्र के यवतमाल से अचलपुर के बीच लगभग 190 किलोमीटर लंबा ट्रैक है. इस ट्रैक पर आज भी शकुंतला पैसेंजर चलती है, जो यहां के स्थानीय लोगों की लाइफ लाइन से कम नहीं है. भारत सरकार ने इस रेलवे ट्रैक को कई बार खरीदने की कोशिश की लेकिन आज तक नहीं खरीद पाई.

किसके कब्जे में है यह रेल ट्रैक

साल 1952 में जब भारतीय रेलवे का राष्ट्रीयकरण हुआ तो उसके बाद भी देश का एक रेलवे ट्रैक ऐसा बच गया जो इसमें शामिल नहीं हो पाया. दरअसल, यह रेलवे ट्रैक एक ब्रिटिश कंपनी के मालिकाना अधिकार में आता है. आज भी इस पर उसी का अधिकार है. इसीलिए ब्रिटेन की क्लिक निक्सन एंड कंपनी की भारतीय इकाई, सेंट्रल प्रोविजंस रेलवे कंपनी को हर साल करोड़ों रुपए की रॉयल्टी देती है.

70 साल तक भाप के इंजन से चलती रही

यह ट्रेन पिछले 70 सालों तक भाप के इंजन से चलती रही. लेकिन साल 1994 के बाद भाप के इंजन को बदलकर डीजल का इंजन कर दिया गया. इसके साथ ही इस ट्रेन की बोगियों की संख्या भी अब बढ़ाकर 7 कर दी गई है. अचलपुर से यवतमाल के बीच कुल 17 स्टेशन पड़ते हैं और यह ट्रेन हर स्टेशन पर रूकती है. 190 किलोमीटर का सफर तय करने में इस ट्रेन को लगभग 6 से 7 घंटे लगते हैं. हालांकि, कुछ कारणों से यह ट्रेन फिलहाल बंद पड़ी है. लेकिन टूरिस्ट इस रेलवे ट्रैक को देखने के लिए आज भी अचलपुर से यवतमाल तक आते हैं.