lateral entry upsc : UPSC में लेटरल एंट्री क्या है? जिस पर मचा है सियासी बवाल, यहां समझिए
यूपीएससी (संघ लोक सेवा आयोग) ने हाल ही में लेटरल एंट्री के जरिए 45 पदों पर भर्ती के लिए एक अधिसूचना जारी की है. जिसके बाद मोदी सरकार विपक्ष के निशाने पर आ गई है. विपक्ष दवा कर रही है कि लेटरल एंट्री के जरिए OBC और ST/SC के आरक्षण के अधिकारों को कमजोर किया जा रहा है. आईये आसान भाषा में समझते हैं कि ये लेटरल एंट्री क्या है, जिसे लेकर देश में बवाल मचा हुआ है.
एंट्री क्या है लेटरल एंट्री ? ( What is lateral entry?)
लेटरल एंट्री को हिंदी में सीधी भर्ती कहा जाता है. यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत एक्सपर्ट्स को सिविल सेवाओं में बिना यूपीएससी परीक्षा के शामिल किया जाता है. भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) जैसे महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति के लिए ये प्रक्रिया खास तौर पर विवादास्पद रही है. बता दें देश में सबसे पहले साल 1966 में मोरारजी देसाई की अध्यक्षता में प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन किया गया था. उस समय आयोग ने सिविल सेवाओं के विशेष कौशल की जरुरत पर जोर दिया था. हालांकि इस आयोग की सिफारिशों में लेटरल एंट्री जैसी कोई बात नहीं कही गई थी.
लेटरल एंट्री कब शुरू की गई थी?
शुरु में केवल मुख्य आर्थिक सलाहकार का पद लेटरल एंट्री से भरा जाने लगा था. इसके बाद में मोरारजी देसाई मार्च 1977 से जुलाई 1979 तक प्रधानमंत्री रहे. उस समय भी लेटरल एंट्री पर कोई खास कदम नहीं बढ़ाया गया. साल 2005 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार पहली बार लेटरल एंट्री के जरिए नौकरशाही में शीर्ष पदों पर निजी क्षेत्र के लोगों को बैठाने की योजना लाई थी. उस वक्त इस योजना की अगुवाई कांग्रेस के वरिष्ठ नेता वीरप्पा मोइली कर रहे थी. दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने उनके इस प्रस्ताव का समर्थन किया था.
कार्मिक प्रबंधन में बताई थी सुधार के जरुरत
मोइली की अगुवाई में बने दूसरे प्रशासनिक आयोग ने सिफारिश की थी कि वरिष्ठ सरकारी पदों पर विशेष कौशल वालों की सीधी भर्ती की जाए. मोइली की अगुवाई में बने दूसरे प्रशासनिक आयोग ने सिफारिश की थी कि वरिष्ठ सरकारी पदों पर विशेष कौशल वालों की सीधी भर्ती की जाए. आयोग ने सिविल सेवा में कार्मिक प्रबंधन में सुधार करने के जरुरत बताई थी. आयोग का कहना था कि 14 सालों की सिविल सर्विस के बाद समीक्षा की जाए. 20 साल के बाद भी अफसर अगर अयोग्य निकलते हैं तो
उन अफसरों को बर्खास्त कर दिया जाए.
आयोग ने की थी ये सिफारिशें
इसमें सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों को तीन मौके मिलें. जबकि OBC को पांच और SC/ST को छह बार परीक्षा में बैठने की सिफारिश की थी. बता दें मुख्य आर्थिक सलाहकार की नियुक्ति मोरारजी देसाई कमीशन की सिफारिश के बाद से ही लेटरल एंट्री के जरिए की जाती रही है. पूर्व आर्थिक सलाहकार मोंटेक सिंह अहलूवालिया की नियुक्ति इसी के जरिए की गई थी. फिर यूपीए सरकार के कार्यकाल में आधार योजना की नींव रखने वाले नंदन नीलेकणि भी इसी के जरिए प्रशासन में शामिल हुए थे. यह व्यवस्था तदर्थ आधार पर थी.
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में हुई थी औपचारिक शुरुआत
बता दें जो योजना यूपीए सरकार लेकर आई थी उसकी औपचारिक शुरुआत सबसे पहले 2014 में पीएम मोदी की अगुवाई में बनी एनडीए सरकार में हुई थी. 2018 में जब केंद्र सरकार ने पहली बार संयुक्त सचिवों और निदेशकों के पदों के लिए निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के विशेषज्ञों से आवेदन मांगे थे. इसके तहत उस समय 37 लोगों की भर्ती की गई थी. जबकि 2019 में सात और 2021 में 30 लोगों की भर्ती की गई थी. आमतौर में लेटरल एंट्री का एक ही मतलब निकाला जाता है. यानी निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों की सीधे सरकारी सेवाओं में भर्ती.
प्रदर्शन के आधार पर दो साल के लिए बढ़ाया जा सकता है अनुबंध
वैसे तो केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों, स्वायत्त एजेंसियों, शैक्षणिक संस्थानों और विश्वविद्यालयों में काम करने वालों को छोड़कर निजी क्षेत्र के व्यवसाय में काम करने वाले समकक्ष स्तर के न्यूनतम 15 साल के अनुभव वाले लोग लेटेरल एंट्री के जरिए अफसरशाही में शामिल हो सकते हैं. इनकी न्यूनतम उम्र 45 वर्ष होनी चाहिए. इसके अलावा किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय या संस्थान से कम से कम ग्रेजुएशन की डिग्री होनी चाहिए. लेटरल एंट्री से चुने गए अधिकारियों को तीन साल के एक अनुबंध पर हस्ताक्षर करना होता है. उनके प्रदर्शन के आधार पर इस अनुबंध को दो साल के लिए बढ़ाया जा सकता है.
विपक्ष ने इन बातों पर मोदी सरकार को घेरा
17 अगस्त को इस बार जब लेटरल एंट्री के जरिए अफसरों को भर्ती के लिए नोटिफिकेशन जारी हुआ तो विपक्ष ने इसका जमकर विरोध किया. इस बार बार वित्त मंत्रालय, गृह मंत्रालय समेत, इस्पात मंत्रालय में ज्वाइंट और डिप्टी सेक्रेटरी के 10 पदों, कृषि और किसान कल्याण, नागरिक उड्डयन और सूचना प्रसारण मंत्रालय के निदेशक और उप निदेशक के 35 पदों के लिए आवेदन मांगे गए हैं. जिसकी अंतिम तिथि 17 सितंबर है.
क्या बोले राहुल गांधी?
राहुल गांधी ने कहा ‘नरेंद्र मोदी संघ लोक सेवा आयोग की जगह ‘राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ’ के ज़रिए लोकसेवकों की भर्ती कर संविधान पर हमला कर रहे हैं. केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में महत्वपूर्ण पदों पर लेटरल एंट्री के ज़रिए भर्ती कर खुलेआम SC, ST और OBC वर्ग का आरक्षण छीना जा रहा है. मैंने हमेशा कहा है कि टॉप ब्यूरोक्रेसी समेत देश के सभी शीर्ष पदों पर वंचितों का प्रतिनिधित्व नहीं है, उसे सुधारने के बजाय लेटरल एंट्री द्वारा उन्हें शीर्ष पदों से और दूर किया जा रहा है’.
‘यह UPSC की तैयारी कर रहे प्रतिभाशाली युवाओं के हक़ पर डाका और वंचितों के आरक्षण समेत सामाजिक न्याय की परिकल्पना पर चोट है. ‘चंद कॉरपोरेट्स’ के प्रतिनिधि निर्णायक सरकारी पदों पर बैठ कर क्या कारनामे करेंगे इसका ज्वलंत उदाहरण SEBI है, जहां निजी क्षेत्र से आने वाले को पहली बार चेयरपर्सन बनाया गया. प्रशासनिक ढांचे और सामाजिक न्याय दोनों को चोट पहुंचाने वाले इस देश विरोधी कदम का INDIA मजबूती से विरोध करेगा’.
मोदी सरकार पर लगाए आरक्षण छीनने का आरोप
विपक्ष का कहना है कि इन भर्तियों के जरिए केंद्र सरकार वास्तव में वरिष्ठ सरकारी पदों पर भाजपा और RSS के लोगों को बैठा रही है. विपक्ष का कहना है कि सीधी भर्ती संविधान पर सीधा हमला है. मोदी सरकार आरक्षण छीनने की साजिश है. सरकार OBC और SC/ST का हक छीन रही है. सीधी भर्ती के कारण अब निचले वर्ग को पदोन्नति नहीं मिलेगी.
केंद्र सरकार ने दी सफाई
विपक्ष के हमले के जवाब में केंद्र सरकार का कहना है कि कांग्रेस वास्तव में पाखंड कर रही है. जबकि लेटरल एंट्री का प्रस्ताव यूपी के कार्यकाल में ही लाया गया था. यह भर्ती पूरी तरह से निष्पक्ष और पारदर्शी है. इसका उद्देश्य केवल प्रशासन में सुधार करना है
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