बड़बोलेपन के 5 वे शिकार बने लाला प्रेम चंद ,इससे पहले भाजपा के कई सूरमाओं की छीनी कुर्सी

ऐसे माननीयों की है उत्तराखंड में लंबी फेहरिस्त
देहरादून: सियासत में कभी तो बड़बोलेपन का फायदा होता है, लेकिन कभी यही बड़बोलेपन नेताओं को कुर्सी से भी हाथ धोने पर मजबूर कर देता है। उत्तराखंड में कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल का इस्तीफा इस बात का ताजा उदाहरण बन गया है। हां, वही प्रेमचंद अग्रवाल, जिनके विवादित बयान ने ना सिर्फ उन्हें राजनीतिक पटल पर बैकफुट पर ला खड़ा किया, बल्कि उन्हें अपना पद छोड़ने पर भी मजबूर कर दिया।
रविवार को प्रेमचंद अग्रवाल ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मुलाकात कर अपना इस्तीफा सौंप दिया था, जिसे सोमवार को राज्यपाल ने मंजूरी दे दी। एक विवादित बयान ने एक सीनियर मंत्री का पद छीन लिया, लेकिन क्या ये पहली बार हुआ है, जब उत्तराखंड की सियासत में किसी नेता को बड़बोलेपन की सजा मिली है?
संसद में हुए हालिया बजट सत्र के दौरान प्रेमचंद अग्रवाल ने एक ऐसा बयान दे डाला, जिससे प्रदेशभर में हंगामा मच गया। बयान के बाद लोगों का गुस्सा सातवें आसमान पर था। बीजेपी के अंदर ही इस मुद्दे पर उठापटक होने लगी, कुछ नेता उनके बचाव में थे, तो कुछ उनकी आलोचना कर रहे थे। हालांकि, बात इतनी बढ़ गई कि आखिरकार चार बार के विधायक प्रेमचंद अग्रवाल को इस्तीफा देने पर मजबूर होना पड़ा।
यहा बता दे कि इससे पहले गढ़वाल सांसद रहे तीरथ सिंह रावत को भी विवादित बयान के कारण अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी। साल 2017 में उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने भारी बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की और त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन चार साल बाद त्रिवेंद्र को हटाकर तीरथ सिंह रावत को सीएम बना दिया गया। हालांकि, तीरथ भी ज्यादा वक्त तक कुर्सी पर टिके नहीं रहे। एक कार्यक्रम में महिलाओं के फटी जींस पर टिप्पणी करने के बाद उनका बयान देशभर में विवादों का कारण बना और आखिरकार उन्हें भी इस्तीफा देना पड़ा। वहीं उत्तराखंड में अगर किसी नेता का नाम विवादों से जुड़ा है, तो वो हैं कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन। हरिद्वार जिले के खानपुर विधानसभा से विधायक रह चुके चैंपियन ने तो अपनी विवादित बयानों से ना सिर्फ अपनी बल्कि बीजेपी सरकार की भी फजीहत करवाई। बीजेपी ने उन्हें छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया था। अब चैंपियन हरिद्वार जेल में बंद हैं, जहां वह एक फायरिंग केस में आरोपी हैं। बात अगर पूर्ववर्ती नारायण दत्त तिवारी की सरकार में हरक सिंह रावत की करे तो वह उस समय सबसे ताकतवर मंत्री थे, लेकिन विवादित बयानों के कारण उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। राज्य गठन के बाद यह पहला मामला था जब किसी मंत्री को बयानबाजी के चलते इस्तीफा देना पड़ा। हरक का नाम भी उत्तराखंड के बड़बोले नेताओं में शुमार किया जाता है। इसी तरह
हरिद्वार के दिवंगत नेता अमरीश कुमार ने भी एक बार पहाड़ बनाम मैदान का मुद्दा उठाकर बड़ा आंदोलन खड़ा किया था, लेकिन यह आंदोलन उनके लिए नेगेटिव साबित हुआ। इसके बाद न तो वे कभी विधायकी का चुनाव जीत पाए और न ही सांसद बने। वहीं, रुद्रपुर के पूर्व विधायक राजकुमार ठुकराल को भी विवादित बयानों के कारण पार्टी से बाहर होना पड़ा। बीजेपी ने उन्हें छह साल के लिए निष्कासित कर दिया था।
उत्तराखंड की राजनीति में बड़बोलेपन की सजा का इतिहास लंबा है। कभी राजनीतिक बयानबाजी नेताओं को सुर्खियों में लाती है, लेकिन जब यही बयान गलत साबित होते हैं, तो उन्हें अपने पद से हाथ धोना पड़ता है। प्रेमचंद अग्रवाल का इस्तीफा भी इसी कड़ी का हिस्सा है, लेकिन इस बार यह सवाल उठता है कि क्या इस बार सियासत के ‘बड़बोलों’ को इस घटना से कोई सबक मिलेगा?
अब देखना यह है कि उत्तराखंड की राजनीति में आगे क्या नया मोड़ आता है, क्योंकि इन बयानों ने न केवल राजनीति को, बल्कि पार्टी के भीतर के समीकरणों को भी प्रभावित किया है।
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