हल्द्वानी- पत्रकार पर POCSO केस में हस्तक्षेप के आरोप का मामला! जानिए क्या है सच्चाई?

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हल्द्वानी

इन दिनों एक मामला सोशल मीडिया और स्थानीय मीडिया में काफी चर्चा में है। आरोप है कि एक पत्रकार ने 2024 में दर्ज एक POCSO और धारा 376 (बलात्कार) के मामले में कथित तौर पर हस्तक्षेप किया मामले से जुड़े पक्षों के अनुसार, वर्ष 2024 में दर्ज इस प्रकरण में दो आरोपी जेल गए थे, जिनमें से एक हिमांशु पाठक नामक व्यक्ति भी शामिल था। हिमांशु पाठक का दावा है कि उसे झूठे आरोप में फंसाया गया है। उसने इस संबंध में कमिश्नर कार्यालय में एक प्रार्थना पत्र देकर अपनी बात रखी थी, जिसमें यह भी उल्लेख किया गया कि उसके पास कुछ ऑडियो सबूत हैं जो पुलिस अधिकारियों के साथ लेनदेन से जुड़े हैं हालांकि, सूत्रों के अनुसार जब ये ऑडियो रिकॉर्डिंग कमिश्नर के समक्ष सुनी गई, तो उसमें किसी प्रकार की पुलिस अधिकारी के साथ लेनदेन या दबाव जैसी कोई बात सामने नहीं आई।

अब कई सवाल खड़े हो रहे हैं—

अगर हिमांशु पाठक के पास वास्तव में ऐसे सबूत थे, तो उन्होंने जांच अधिकारी को पहले क्यों नहीं दिए?

अगर उन्हें झूठा फंसाया गया था, तो उन्होंने न्यायालय या अपने अधिवक्ता को वह सबूत क्यों नहीं सौंपे?

इतना ही नहीं, हिमांशु पाठक ने पीड़िता से विवाह करने का दावा भी किया था, जिससे पूरा मामला और जटिल हो गया।

पत्रकार का कहना है कि वह केवल मदद के उद्देश्य से पीड़िता और आरोपी, दोनों पक्षों को समझाने का प्रयास कर रहे थे। पत्रकार के मुताबिक, “पीड़िता और हिमांशु पाठक दोनों ही मेरे घर के पास रहते हैं। मैंने सिर्फ यह कहा था कि जब तक लड़की बालिग नहीं हो जाती, शादी का फैसला स्थगित रखें।पत्रकार ने यह भी कहा कि उन्हें जानबूझकर बदनाम करने की कोशिश की जा रही है और पूरे प्रकरण में राजनीतिक हस्तक्षेप भी हो सकता है। वहीं, कुछ लोगों का मानना है कि हिमांशु पाठक ने अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए अब यह मुद्दा उठाया है, जबकि एक साल तक वह चुप रहे।

अब जांच में उठे मुख्य सवाल:

हिमांशु पाठक एक साल तक खामोश क्यों रहे?

अगर उनके पास सबूत थे, तो उन्होंने जांच अधिकारी या अदालत को क्यों नहीं सौंपे?

यदि उन्होंने पुलिस से इस बारे में शिकायत की थी, तो जांच अधिकारी ने पत्रकार का नाम चार्जशीट में क्यों नहीं डाला?

क्या अधिवक्ता को पूरी जानकारी थी या नहीं?

अगर बाद में समझौता हुआ, तो वह किन आधारों पर हुआ और किसने कराया?

पत्रकार ने कहा है कि उन्हें न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है और वे न्यायालय के माध्यम से ही अपनी बेगुनाही साबित करेंगे। उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ लोग उन्हें बदनाम करने के लिए सोशल मीडिया पर अभियान चला रहे हैं।

अधिकारियों का कहना है कि अगर इस मामले में किसी प्रकार की साजिश या दबाव के सबूत मिलते हैं तो स्वतंत्र जांच कराई जा सकती है।

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