उत्तराखंड में महिलाओं के आरक्षण को हाईकोर्ट में चुनौती, हाईकोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब
उत्तराखंड में महिलाओं के 30 फीसदी क्षैतिज आरक्षण को फिर से हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। मंगलवार को इस पर सुनवाई क बाद हाईकोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा है। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा है कि पीसीएस परीक्षा का परिणाम इस याचिका के अंतिम फैसले के अधीन होगा।
उत्तराखंड में सरकार की ओर से राज्य की महिलाओं को सरकारी नौकरी में 30 फीसदी क्षैतिज आरक्षण देने का विधेयक पास किया गया था। लेकिन सरकार को इस मामले में हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। सरकार की ओर से राज्य की महिलाओं को सरकारी नौकरी में 30 फीसदी क्षैतिज आरक्षण देने सबंधी अधिनियम को उत्तर प्रदेश निवासी आलिया ने हाईकोर्ट में चुनौती दी है।
चार जुलाई को होगी अगली सुनवाई
मंगलवार को इस मामले में सुनवाई हुई। जिसके बाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से छह हफ्तों में जबाव मांगा है। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा है कि पीसीएस परीक्षा का परिणाम इस याचिका के अंतिम फैसले के अधीन होगा। मामले में अगली सुनवाई चार जुलाई को होगी।
उत्तर प्रदेश निवासी आलिया ने दी आरक्षण को हाईकोर्ट में चुनौती
सरकार के इस फैसले को उत्तर प्रदेश निवासी आलिया ने हाईकोर्ट में चुनौती दी है। आलिया ने कहा है कि वह उत्तराखंड की स्थाई निवासी नहीं है और उत्तराखंड अपर पीसीएस परीक्षा 2021 में उत्तराखंड की अभ्यर्थियों से अधिक अंक लाने के बाद भी अनुत्तीर्ण हो गई।
साल 2006 के सरकार के उस फैसले पर हाईकोर्ट की ओर से 24 अगस्त 2022 को रोक लगा दी गई थी। जिसके बाद याचिकाकर्ता का पीसीएस की प्रारंभिक परीक्षा में चयन हुआ। लेकिन हाईकोर्ट की ओर से क्षैतिज आरक्षण में रोक के बाद भी राज्य सरकार ने 10 जनवरी 2023 को राज्य सरकार की ओर से राज्य की महिलाओं को 30 फीसदी क्षैतिज आरक्षण देने का विधेयक पारित किया गया। जिसके बाद याची को पीसीएस मुख्य परीक्षा के लिये अनुत्तीर्ण घोषित कर दिया गया।
अधिनियम है संविधान का उल्लघंन
हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता के अधिवक्ता डॉ. कार्तिकेय हरि गुप्ता ने बताया कि याचिका में न्यायालय के समक्ष दलील दी गई है कि उत्तराखंड राज्य के पास डोमिसाइल आधारित महिला आरक्षण प्रदान करने के लिए ऐसा कानून बनाने की कोई विधायी अधिकार नहीं है।
यह अधिनियम केवल हाईकोर्ट के आदेश के प्रभाव को समाप्त करने के लिए लाया गया है, जो कि वैधानिक नहीं है। भारत के संविधान में इसकी अनुमति नहीं है। यह अधिनियम भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन करता है।
सबसे पहले ख़बरें पाने के लिए -
👉 सच की तोप व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ें