उत्तराखंड में पंचायतों पर संवैधानिक संकट, प्रशासकों का कार्यकाल खत्म, सरकार मौन

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उत्तराखंड से बड़ी खबर सामने आ रही है. पंचायतों के प्रशासकों का कार्यकाल बीते मंगलवार को ख़त्म हो गया. लेकिन उससे पहले सरकार की ओर से प्रशासकों का कार्यकाल नहीं बढ़ाया गया. सरकारी लापरवाही इस कदर हावी रही कि पंचायतों को लावारिस हाल में छोड़ दिया गया है.अब स्थिति यह है कि पंचायत बिना परसजसक के ही है.

इतिहास में पहली बार पैदा हुआ ऐसा संकट

गौर करने वाली बात यह है कि उत्तराखंड के गठन के बाद यह पहली बार हुआ है जब पंचायतों में इस तरह का संवैधानिक संकट खड़ा हुआ है. यहां तक कि जब उत्तराखंड उत्तर प्रदेश का हिस्सा था, तब भी ऐसा कभी नहीं हुआ. बिना प्रशासक के ये पंचायतें ठप पड़ी हैं. ऐसे में न तो पंचायतों में कोई निर्णय लिया जा सकताा और न ही कोई विकास कार्य शुरू हो सकता है.

चुनाव तक असमंजस में रहेंगी पंचायतें

सवाल यह उठ रहा है कि जब तक पंचायत चुनाव नहीं होते, तब तक इन पंचायतों का कामकाज कैसे चलेगा. सरकार की ओर से इस मुद्दे पर अब तक कोई स्पष्ट बयान नहीं आया है. बता दें वर्तमान में चारधाम यात्रा के चलते पंचयतों में चुनाव करवाना संभव नहीं है. चूंकि भारी संख्या में सरकारी अमला यात्रा के आवागमन में व्यस्त हैं. वहीं जून के अंत से शुरू होने वाला मानसून का दौर भी चुनाव कराने में बड़ी बाधा बन सकता है.

मौसम भी बन रहा चुनाव में बाधा

मानसून के बाद पहाड़ों में बर्फ़बारी शुरू हो जाएगी. ऐसे में मौसम की मार भी चुनाव करवाने में बड़ी बाधा है. अब देखना होगा कि सरकार इस संकट से निपटने के लिए कौन से विकल्प अपनाती है. क्या कार्यकाल विस्तार का नया आदेश आएगा या फिर धामी सरकार किसी और वैकल्पिक व्यवस्था पर काम करेगी