पहले आर्मी में चलाई बंदूक अब कैंची चलाकर कर रहे स्वरोजगार, पढ़ें भूतपूर्व सैनिक की कहानी

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अक्सर कुछ लोगों की कहानी हमें इतना प्रभावित करती है कि हम तारीफ किए बिना नहीं रह पाते। कुछ ऐसा ही राजधानी देहरादून में भी देखने को मिला है। जहां एक फौजी ने नाई की दुकान खोल स्वरोजगार शुरू किया है। जिससे हर कोई प्रभावित हो रहा है।

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फौज में बंदूक चलाई अब कैंची को बनाया स्वावलंबन का हथियार
फौज में रहकर पहले बंदूक चलाई और अब कैंची को स्वावलंबन का हथियार बनाया है। जी हां ये कहानी है देहरादून के रहने वाले मोहन सिंह रावत की। इस कहानी को जिसने भी सुना बिना तारीफ किए वो रह नहीं पाया। देहरादून दौड़वाला निवासी मोहन सिंह रावत आर्मी में थे।


एक मार्च को वह रिटायर हो गए। जिसके बाद उन्होंने अपना स्वरोजगार शुरू किया। 17 मार्च को मोहन सिंह ने अपनी नाई की दुकान खोल ली। इस दुकान का नाम उन्होंने भूतपूर्व सैनिक नाई की दुकान रखा है। जो भी दुकान का नाम सुनता है वो यहां जाने से खुद को रोक नहीं पाता है। ये जानने के लिए कि दुकान के पीछे की कहानी क्या है।


दुकान पर लगा बोर्ड आजकल खींच रहा सबका ध्यान
मोहन सिंह की दुकान पर लगा बोर्च सबका ध्यान अपनी ओर खींच रहा है। मोहन सिंह की दुकान रगी चौक से करीब दो किमी आगे मोथरोवाला रोड पर है। मोहन मूल रूप से रुद्रप्रयाग जिले के बांसी भरदार (धारी देवी मंदिर के उस पार) गांव के रहने वाले हैं। जो अस्थायी रूप से दौड़वाला में रहते हैं। उनके दो बच्चे हैं। बेटा 12वीं तो बेटी 10वीं की पढ़ाई कर रहे हैं।


13 बार असफल होने के बाद 14वीं बार आर्मी में हुए भर्ती
रिटायर होकर नाई की दुकान खोलने वाले मोहन सिंह की आर्मी में भर्ती होने की कहानी भी बहुत दिलचस्प है। वो शुरू से फौजी बनना चाहते थे। यही वजह थी कि 12वीं पास करने के बाद वह वर्ष 1999 में फौज में जाने के लिए आवेदन करने लगे थे।


मोहन सिंह आर्मी में एक, दो या तीन बार नहीं ब्लकि 13 बार असफल हुए। जिसके बाद वो 14 वीं बार में असम राईफल में भर्ती हुए। आर्मी में रहते हुए ही उन्होंने बाल काटने का काम सीखा था। जिसे उन्होंने अब स्वरोजगार के रूप में अपनाया है।
कोई भी काम नहीं होता बड़ा या छोटा
मोहन सिंह के मुताबिक कोई भी काम बड़ा या छोटा नहीं होता है। उनका मानना है कि नौकरी के पीछे भागने के बजाए, जिसके हाथ में जो हुनर हो, उसी को व्यवसाय के रूप में अपनाना चाहिए।


इसके साथ ही उन्होंने कहा कि हमारे पूरे पहाड़ की पीड़ा है कि हम महानगरों और दूसरे देशों में जाकर बर्तन तो धो लेते हैं। लेकिन अपने यहां छोटे-मोटे काम करने में भी शर्माते हैं। उन्होंने कहा बस सोच का अंतर है और हमें इसे बदलने की जरूरत है।
बुजुर्गों के बाल घर पर ही जाकर काटते हैं
मोहन सिंह रावत असहाय बुजुर्गों के बाल घर पर ही जाकर काटते हैं। इसे वो अपने फौजी धर्म से जोड़ते हुए इसके लिए कोई अतिरिक्त पैसे भी नहीं लेते हैं। इसके साथ ही वो अपने हुनर से घुटनों और कमर दर्द में मालिश कर लोगों को राहत पहुंचाते हैं। मोहन इसके लिए भी किसी प्रकार का भी कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं लेते हैं।


फौजी कटिंग की है सबसे ज्यादा डिमांड
मोहन सिंह ने बताया कि सबसे ज्यादा डिमांड फौजी कटिंग की है। उनके पास सबसे अधिक रिटायर फौजी और बच्चे बाल कटाने आते हैं। जो कि फौजी कटिंग ही कराते हैं। उन्होंने कहा कि वह प्रतिदिन एक हजार से 15 सौ रुपये तक कमा लेते हैं। उन्होंने कहा कि उनकी दुकान पर आकर फौज के कई बड़े रिटायर अफसर आकर उनकी हौसला अफजाई कर चुके हैं। इससे उन्हें और हिम्मत मिली है।
पूर्व सीएम हरीश रावत ने भी
मोहन सिंह को किया सेल्यूट
पूर्व सीएम हरीश रावत भी मोहन सिंह की तारीफ कर चुके हैं। दो दिन पहले अचानक हरदा उनकी दुकान पर पहुंचे और उनका हौसला बढ़ाया। हरदा ने मोहन सिंह रावत को बकायदा सेल्यूट कर उनके काम की हौसला अफजाई की। इस दौरान रावत ने कहा कि मोहन बेरोजगार युवाओं को स्वरोजगार की राह दिखाई है। ऐसे युवाओं को मोहन से सीख लेते हुए अपने हुनर को स्वरोजगार में बदलना चाहिए।