#salt महासू देवता मंदिर में क्यों हर साल राष्ट्रपति भवन से आता है नमक ?, क्या है इसकी वजह

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HNOL MAHASU DEVTA महासू देवता
महासू देवता को महाशिव देवता भी कहा जाता है ये जौनसार क्षेत्र के लोकदेवता माने जाते हैं उत्तराखंड के साथ ही महासू हिमाचल प्रदेश में भी पूजे जाते हैं। उत्तराखंड के इस मंदिर की खास बात ये है कि यहां हर साल राष्ट्रपति भवन से नमक भेजा जाता है।

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कौन हैं महासू देवता ?
महासू देवता जिन्हें महाशिव देवता भी कहा जाता है इनकी पूजा देवभूमि उत्तराखंड के साथ ही हिमाचल प्रदेश में भी होती है। उत्तराखंड में महासू देवता का मंदिर उत्तरकाशी जिले में स्थित है। महासू देवता के बारे में एक किंवदंती काफी प्रचलित है कहा जाता है कि किसी जमाने में इस जौनसार बावर क्षेत्र में एक राक्षस किरमिक ने खूब आतंक मचाया हुआ था। किरमिक को हर बार आपसी समझौते से गांव वाले एक इंसान की बली देते लेकिन इस से यहां के लोग काफी परेशान हो गए थे। इसी गांव में हूणाभाट नाम का एक ब्राह्मण रहा करता था। जिसके सात पुत्र थे और उनमें से छहइस राक्षस किरमिक कि बलि बन चुके थे।

एक बार हूणाभाट की पत्नी नदी से पानी भर रही थी तभी वहां किरमिक राक्षस आ पहुंचा और हूणेभाट की पत्नी पर झपटने लगा। किसी तरह हूणाभाट की पत्नी किरमिक के चंगुल से बच निकली। लेकिन तभी हूणाभाट की पत्नी के आधे भरे बर्तन में से भविषयवाणी हुई- अगर तुम अपने पुत्र और इस क्षेत्र को किरमिक से आतंक से बचाना चाहती हो तो अपने पति को कश्मीर जाने को कहो। वहां के शक्तिशाली देव महासू ही किरमिक का वध कर सकते हैं।

कश्मीर से उत्तराखंड आए महासू देवता
हूणाभाट ने जब ये बात सुनी तो वो तुरंत ही कश्मीर के लिए निकल पड़ा। कश्मीर पहुंचकर उसने चारों महासू भाईयों को अपनी आपबीती बताई और उनसे गुजारिश की कि वो चारों जौनसार आकर किरमिक के आतंक से उन्हें मुक्ति दिलाएं।

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हूणाभाट की भक्ति देखकर महासू जौनसार आने को राजी हो गए। जिसके बाद हनोल में चार महासू भाईयों की उत्पत्ति हुई जो थे बासक, पिबासक, बौठा और चालदा। जिन्होंने किरमिक का वध कर सारे जौनसार बावर क्षेत्र को उस राक्षस के अत्याचारों से मुक्ति दिलाई। उसी के बाद से ही ये चारों महासू भाई जौनसार क्षेत्र में कुल देवता के रुप में पूजे जाने लगे।

मिहिरकुल ने कराया था शिव मंदिर का निर्माण
बौठा महासू हनोल में स्थित मुख्य मंदिर में पूजे जाते हैं। कहा जाता है हनोल में स्थित महासू के मुख्य मंदिर का निर्माण हूण राजवंश के पंडित मिहिरकुल हूण ने करवाया गया था। मिहिरकुल हूण के बारे में मंदसोर अभिलेख में लिखा हुआ है की ‘यशोधर्मन से युद्ध होने से पहले तक मिहिरकुल ने शिव के अलावा किसी और के सामने अपना सर नहीं झुकाया था’।

मिहिरकुल की शिव भक्ति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की जहां एक तरफ हर राजा अपने राज्य में छपने वाले सिक्कों में अपनी उपाधि या अपना नाम लिखवाते थे वहीं मिहिरकुल के राज्य में छपने वाले सिक्कों में जयतु वृष लिखा रहता था जिसका मतलब है जय नंदी।

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हनोल का ये महासू मंदीर हूण शैली में बना है और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के मुताबिक ये मंदिर 9 वीं से 10 वीं शताब्दी में बना है। बौठा महासू के अलावा बासक महासू मेंड्रथ में, पबासिक महासू ठडियार गांव में पूजे जाते हैं और इन सबके छोटे भाई चालदा महासू को घुम्मकड़ देवता कहा जाता है। चालदा महासू की पूजा हर साल अलग-अलग जगहों पर की जाती है। लोक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि चालदा महासू 12 साल उत्तरकाशी और 12 साल देहरादून में घूमते हैं।

मंदिर के अंदर छिपा है रहस्य
महासू देवता का मंदिर अपने अंदर कई रहस्य छिपाए हुए है कहा जाता है कि महासू देवता के इस मंदिर के गर्भगृह में एक अखंड ज्योति जलते रहती है, पर इसके गर्भगृह में जाने की अनुमति मंदिर के मुख्य पुजारी के अलावा किसी को भी नहीं है। ये भी कहा जाता है की मंदिर के अंदर जलाभिषेक करती एक पानी की धारा भी बहती है, जिसके ना आदि का पता है, ना ही अंत का और यह मंदिर के अंदर से बहते हुए ही अदृश्य हो जाती है।

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महासू देवता का राष्ट्रपति भवन से कनेक्शन
न्याय के देवता महासू की कीर्ति सिर्फ उत्तराखंड तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह दूर-दूर तक फैली है। न्याय के देवता और उनके न्यायालय का सीधा कनेक्शन दिल्ली के राष्ट्रपति भवन से भी है। महासू देवता के इस न्यायालय में दिल्ली के राष्ट्रपति भवन की ओर से हर साल न्याय के देवता महासू को नमक भेंट किया जाता है।

माना जाता है कि एक बार महासू देवता का डोरिया (प्रतीक चिह्न) टोंस नदी में गिर गया जो बहते-बहते यमुना नदी के साथ दिल्ली पहुंचा। वहां ये डोरिया किसी मछुआरे को मिला जिसने इसे डोरिए के राजा को दे दिया। राजा इस डोरीए का इस्तेमाल नमक रखने के लिए करने लगा। समय बीता राजा के साथ अनहोनियां होने लगी।

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जिसके बाद राज पुरोहितों ने राजा को इसका कारण महासू देवता का रुष्ट होना बताया। राजा ने तुरंत अपने कृत के लिए महासू देवता से माफी मांगी और इस दोष के निवारण तथा महासू देवता को खुश करने के लिए राजा के दरबार से हर साल महासू देवता को नमक भेंट किया जाने लगा। जो समय के साथ रीत बन गई और आज के आधुनिक दौर में भी राष्ट्रपति भवन इस रीत को निभा रहा है।

विशाल जागड़ा मेले का होता है आयोजन
महासू देवता के मंदिर में भाद्रपद के शुक्ल पक्ष में हरतालिका तीज के दिन बड़े धूमधाम से विशाल जागड़ा मेले का आयोजन किया जाता है। जागड़ा का शाब्दिक अर्थ होता है रात का जागरण। जागड़ा उत्सव के दिन न्याय के देवता महासू की विशेष पूजा की जाती है। इस दिन श्रद्धालु व्रत रख कर रात भर महासू देवता के न्यायालय में जागरण करते हैं और सुबह होते ही महासू देवता की प्रतिमा को देवडोली में बिठा कर लोकवाद्यों की मधुर ध्वनि के साथ यमुना और भद्रीगाड़ में स्नान के लिए ले जाया जाता है।

देवडोली को एक बार मंदिर से उठाने के बाद कहीं भी नहीं उतारा जाता। श्रद्धालु बारी-बारी कंधे बदलते हुए डोली को मंदिर से ले जाकर स्नान करवाते हैं और वापस मंदिर पहुंचने पर ही देव डोली कंधे से उतारी जाती है। मंदिर में फिर से स्थापित होने के बाद महासू देवता की पूजा की जाती है जिसके बाद व्रत भी समाप्त कर लिया जाता है।