कौन हैं डॉ. यशवंत सिंह कठोच ?, जिन्हें मिला पद्मश्री पुरस्कार

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22 अप्रैल को उत्तराखंड के फेमस हिस्टोरीअन डॉ. यशवंत सिंह कठोच को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया।यशवंत सिंह कठोच को ये सम्मान शिक्षा, इतिहास और पुरातत्व के फिल्ड में अहम योगदान देने के लिए दिया गया। डॉ. यशवंत सिंह कठोच ने उत्तराखंड की इतिहास की परतें खंगाली हैं।


27 दिसंबर 1935 को पौड़ी के मासौं गांव में जन्मे यशवंत सिंह कठोच ने राजनीति शास्त्र में एमए की डिग्री हासिल की और फिर साल 1978 में इन्होंने हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विवि से गढ़वाल हिमालय के पुरातत्व पर शोध ग्रंथ प्रस्तुत किया। जिसके बाद विवि ने उन्हें डी.फिल की उपाधि से नवाजा।

33 सालों तक शिक्षक के रुप में सेवाएं देने के बाद डॉ. कठोच साल 1995 में प्रधानाचार्य पद से सेवानिवृत्त हो गए। राजनीति शास्त्र के शिक्षक होने के बाद भी डॉ कठोच की दिलचस्पी इतिहास और पुरातत्व में थी। रिटायर होने के बाद भी उन्होंने इतिहास के फील्ड में अपना काम जारी रखा। डॉ कठोच ने इतिहास और पुरातत्व पर नई रिसर्च की और ऑथेंटिक फेक्टस के साथ स्टूडेंट्स, प्रोफेसरों और रिसर्चर्स के लिए कई किताबें लिखी।

10 से ज्यादा किताबें लिख चुके हैं डॉ कठोच
डॉ. यशवंत सिंह कठोच अब तक 10 से ज्यादा किताबें लिख चुके हैं इसी के साथ अब तक वो 50 से ज्यादा रिसर्च पेपरस की रीडिंग भी कर चुके हैं। उनकी सबसे पहली शोध पुस्तक मध्य हिमालय का पुरात्तव थी इसके बाद उन्होंने उत्तराखंड की सैन्य परंपरा, संस्कृति के पद चिह्न, उत्तराखंड का नवीन इतिहास, एडकिंसन मध्य हिमालय का इतिहास एक अध्ययन जैसी कई किताबें लिखी।

पहाड़ों के प्रति सरकार शुरू से ही है ढीली
डॉ. कठोच के उत्तराखंड के लिए किए गए कार्य सराहनीय हैं। लेकिन उनका मानना ये है की उत्तराखंड के सांस्कृतिक पहलुओं को यहीं के लोग अनदेखा कर रहे हैं। मीडिया को दिए एक इंटरव्यू में डॉ. कठोच कहते हैं कि पहाड़ों के प्रति सरकार शुरू से ही ढीली रही है। प्रदेश के राजनेता भी उत्तराखंड के सांस्कृतिक पहलुओं को नहीं समझ रहे हैं।

वो आगे कहते हैं की क्षेत्रीय पुरातत्व इकाई कुमाऊं अच्छा कार्य कर रही है लेकिन क्षेत्रीय पुरातत्व गढ़वाल इकाई का कामकाज ज्यादा अच्छा नहीं है।उन्होंने आगे लोक संस्कृति के संरक्षण को लेकर कहा की देवभूमि धरोहरों की भूमि है किसी को इन धरोहरों से छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए।

डॉ. कठोच ने पौड़ी के बिनसर महादेव का उदाहरण देते हुआ बताया कि इस मंदिर की इसकी मरम्मत का काम बीकेटीसी कर रही है और कहीं ना कहीं उन्होंने इस मंदिर की पुरानी शौली को ही बदल दिया है। उनका मानना है की इस मरम्मत के काम में बीकेटीसी को पुरातत्व विभाग की मदद लेनी चाहिए थी। क्योंकि पुरातत्व विभाग इस मंदिर की शौली का महत्व ज्यादा अच्छे से समझता है