उत्तराखंड में कब और क्यों लागू की गई थी राजस्व पुलिस व्यवस्था, जानें यहां
हाईकोर्ट ने हाल ही में आदेश दिए हैं कि राज्य में राजस्व पुलिस व्यवस्था को समाप्त किया जाए और एक साल के भीतर ही प्रदेश में रेगुलर पुलिस व्यवस्था लागू किया जाए। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को एक साल के अंदर रिपोर्ट पेश करने को भी कहा है। जिसके बाद राजस्व पुलिस व्यवस्था चर्चाओं में है कि ये व्यवस्था है क्या और उत्तराखंड में इसे कब लागू किया गया ?
साल 1815 की कुमाऊं और गढ़वाल पर अंग्रेजों का अधिकार था। इसी दौरान इन्होंने ब्रिटिश कुमाऊं को नान रेगुलेटिंग डिस्ट्रिक्ट घोषित कर दिया। अब इस नोन रेगुलेटिंग डिस्ट्रिक्ट के लिए नए नियम कानून बनाए गए जो देश के बाकी हिस्सों से अलग थे। जैसे कुमाऊं कमिश्नर को सिविल मामलों में हाईकोर्ट के जज जितनी पावर दे दी गई और वो अपीलीय प्राधिकारी भी थे।
इसके साथ ही यहां कोई कानून लागू नहीं किया गया था। इसकी जगह राज्य में दया भाव पर आधारित व्यवस्था लागू थी। इसी लिए कुमाऊं कमिश्नर डब्लूय ट्रेल ने साल 1818 में पटवारी व्यवस्था लागू करने कि घोषणा की। इस घोषणा के बाद साल 1819 में राज्य में राजस्व पुलिस व्यवस्था की शुरुआत हो गई।
ऐसे चल पड़ी पटवारी व्यवस्था
ये व्यवस्था देखते ही देखते चल पड़ी और सफल भी रही। इसके सफल होने के पीछे कई वजहें थी। पहली कि पटवारी अपने पद के साथ-साथ गांव के एक सम्मानित सदस्य के रुप में कार्यरत था। काफी जगहों पर पटवारी अपने गांव के परिवारों के साथ उचित सामंजस्य बनाए रखता था। ग्रामीण स्थानों पर शादी-ब्याह के लिए भी पटवारी से एक बुजुर्ग की तरह राय ली जाती थी।
अब साल 1821 में राज्य में कुमाऊं कमिश्नर ने पांच पटवारी नियुक्त किए। सरकार इस व्यवस्था से इतनी खुश थी कि जब साल 1825 में कुमाऊं कमिश्नर ने तीन पटवारियों की मांग की तो सरकार ने कमिश्नर को आठ पटवारी उपलब्ध करा दिए। ऐसे करते करते तब कुमाऊं में कुल 63 पटवारी हो गए। बता दें कि इस दौर में पटवारी को हर महीने पांच रुपए तनख्वाह मिला करती थी।
ये होते थे पटवारी के काम
पटवारी का काम भू–राजस्व इकट्ठा करना और गांव की जमीन की नापजोख करना हुआ करता था। इतिहासकार प्रो. अजय रावत की मानें तो राजस्व पुलिस व्यवस्था में पटवारी को उप का अधिकार भी दिया गया था। व्यवस्था पहाड़ों में काफी सफल रही। जिसके बाद साल 1947 के बाद भी ज्यादातर इलाकों पर ये अब तक मान्य थी। आपको बता दें कि उत्तराखंड देश का एकमात्र ऐसा राज्य है जहां पर राजस्व पुलिस यानी कि पटवारी व्यवस्था लागू है
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