मिशन 2022 में भाजपा-कांग्रेस के कई दिग्गजों की राजनैतिक विरासत उतरेगी मैदान में

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हल्द्वानी एसकेटी डॉटकॉम

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मिशन 20 22 में आचार संहिता लागू होने में डेढ़ महीने का समय बचा हुआ है । प्रदेश में राजनीतिक रूप से मजबूत दिग्गज इस चुनाव में अपनी पारिवारिक राजनीतिक विरासत को मैदान में खड़ा करने का निर्णय ले रहे हैं। जैसे सरकारी नौकरी में मृतक आश्रित कोटा होता है वैसे ही राजनीति में भी यह कोटा लागू हुआ है। किसी भी राजनैतिक हस्ती के कार्यकाल के दौरान मृत्यु होने पर राजनीतिक पार्टियां किसी भी स्थिति में यह कोटा लागू करने को मजबूर रहती हैं पारिवारिक सहानुभूति का लाभ लेते हुए राजनीतिक दल किसी अन्य योग्य उम्मीदवार के बजाय उसके परिवार की ही किसी सदस्य को टिकट देकर तत्कालीन उपजी सहानुभूति का लाभ लेते आए हैं। वर्तमान की राजनीति में थराली से मुन्नी देवी पिथौरागढ़ से चंद्रा पंत ,सल्ट से महेश जी ना भी इसी कोटे के तहत जीत के विधानसभा में पहुंचे हैं।

इसी तरह से पहले बसपा में फिर उसके बाद कांग्रेसमें रहे सुबोध राकेश की पत्नी ममता राकेश भी वर्ष 2012 के बाद राकेश की मृत्यु के बाद विधायक बनी हालांकि उन्होंने वर्ष 2017 में दोबारा से जीतकर अपनी मजबूती का एहसास भी कराया। वही अब भाजपा व कांग्रेस के दिग्गज नेता मृतक आश्रित कोटे की तरह पारिवारिक कोटे को आगे बढ़ाकर वंशवाद की जड़ों को मजबूत कर आना चाहते हैं ।

वह अपनी राजनीतिक सेवा के बदले अपने रिटायरमेंट के तहत अपने परिवार को ही राजनीति में तवज्जो देने की मांग करते हुए अपने परिवार से एक व्यक्ति को टिकट देने की पैरवी कर रहे हैं इस कड़ी में अगर देखा जाए तो अभी भाजपा से कांग्रेस में आए यशपाल आर्य का नाम सबसे पहले पायदान पर होगा जब उन्होंने कांग्रेस से भाजपा में जाकर अपने बेटे के लिए टिकट मांगा और अपने बेटे को भाजपा के टिकट पर विधायक बनवा दिया इस बार भी वह कांग्रेस में वापसी कर चुके हैं और यह तय है कि उनके बेटे का नैनीताल से कांग्रेस का टिकट पक्का है ।

भाजपा में कई ऐसे दिग्गज हैं जो अपने रिटायरमेंट की कीमत पर अपने परिवार की वंशवाद की बेल को राजनीति में लहराते हुए देखना चाहते हैं जो कि किसी भी स्थिति में टिकट अपने परिवार से ही चाहने की गारंटी पर ही अपना रिटायरमेंट चाह रहे हैं ऐसे में मुख्य रूप से कई दिग्गज है जो कि इस बार अपने राजनीतिक विरासत को नई पीढ़ी को सौंपना चाहते हैं। इन में मुख्य रूप से भाजपा के पूर्व में विधान सभा अध्यक्ष रह चुके हरबंस कपूर, डॉ हरक सिंह रावत, बंशीधर भगत शामिल हैं भाजपा में उम्र का एक पैमाना भी माना जा रहा है जिसके तहत लोकसभा और विधानसभाओं के टिकट भी तय किए जाते हैं ।

ऐसे में हरबंस कपूर की जगह पर कैंट से उनके बेटे अमित कपूर तथा बार-बार चुनाव नहीं लड़ने की बात कहने वाले हरक सिंह रावत इस बार अपनी आकृति रावत गुसाई को लैंसडाउन से टिकट दिलवाना चाहते हैं वही बंशीधर भगत भी कालाढूंगी विधानसभा से अपने पुत्र विकास भगत की पैरवी कर रहे हैं।

इसके अलावा पारंपरिक रूप से अगर देखा जाए तो हरीश रावत की बेटी अनुपमा रावत लक्सर विधानसभा से तैयारी कर रही हैं। के अलावा कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष इस बार अपने पुत्र अभिषेक सिंह को भी चकराता के नजदीक देहरादून की किसी सीट से टिकट दिलाना चाह रहे हैं वही इसी कड़ी में ऋषिकेश से कांग्रेस के नेता रहे दिनेश धने भी अपने पुत्र कनक धने को अपनी राजनीति की बागडोर सौंपना चाहते हैं । काशीपुर से बुजुर्ग हो चुके हरभजन सिंह चीमा भी अपने पुत्र त्रिलोक सिंह चीमा को अपनी राजनीति का विरासत सौंपने का मन जग जाहिर कर चुके हैं ऐसे में यह तय है कि यह लोग अपनी राजनीतिक विरासत अपने परिवार को सपना चाहते हैं इसके अलावा हल्द्वानी से डॉ इंदिरा हरदेश के निधन के बाद उनके पुत्र सुमित हृदेश भी हल्द्वानी से दावेदारी कर रहे हैं।

इनके अलावा राजनीति की बेल भी उत्तराखंड में काफी फली फूली है अगर देखा जाए तो चकराता से प्रीतम सिंह भी अपने पिता गुलाब सिंह की राजनीति को आगे बढ़ाते हुए आज नेता प्रतिपक्ष तक पहुंचे हैं वही लैंसडाउन से दिलीप सिंह रावत कि पिता भारत सिंह रावत भी चार बार विधायक रहे हैं वह भी अपने पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।

राजनीतिक वंशवाद की बेल की बात की जाए तो कई और ऐसे नेता हैं जो अपने पुत्रों को इस चुनाव में अपनी जगह पर अथवा दूसरी सीटों पर टिकट के लिए जोर आजमाइश भी कर रहे हैं जिनमें मुख्य रूप से डीडीहाट से मंत्री बिशन सिंह चुफाल अपनी बेटी दीपिका चुफाल को ,नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह अपने बेटे अभिषेक सिंह तथा रणजीत रावत अपने बेटे विक्रम रावत को भी राजनीतिक विरासत के रूप में आगे बढ़ाना चाहते हैं। इस बार तो हमारी सर्वे एवं रिपोर्ट के अनुसार कांग्रेस हो या भाजपा अपनी राजनीतिक बेल को आगे बढ़ाने के लिए टिकटों का रुख अपने पारिवारिक सदस्यों की ओर करने में किसी भी तरह की कोर कसर नहीं छोड़ेंगे। सूत्र यह भी बता रहे हैं की लाल कुआं विधानसभा क्षेत्र में भी किसी बड़े नेता का पारिवारिक सदस्य दोनों राष्ट्रीय पार्टियों मैदान में आ सकते हैं।