सीमेंट से नहीं उड़द की दाल से बनाया जा रहा है डांडा नागराज मंदिर, जानें इसके पीछे की वजह

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उत्तरकाशी जिला सिर्फ प्रदेश में ही नहीं अपितु पूरे देश में अपनी संस्कृति के लिए मशहूर है। एक बार फिर उत्तरकाशी अपनी संस्कृति के कारण चर्चाओं का बिषय बन गया है। जिले के भंडारस्यूं क्षेत्र में डांडा नागराजा के मंदिर का निर्माण किया जा रहा है। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि इस मंदिर का निर्माण सीमेंट से नहीं बल्कि उड़द की दील से किया जा रहा है।


सीमेंट से नहीं उड़द की दाल से बनाया जा रहा है मंदिर
उत्तरकाशी में डांडा नागराज मंदिर का निर्माण किया जा रहा है। लेकिन आपको भी ये जानकर हैरानी होगी कि इसके निर्माण में सीमेंट या रेत-बजरी का उपयोग नहीं किया जा रहा है। जी हां इस मंदिर को बनाने के लिए उड़द की दाल का प्रयोग किया जा रहा है। जिसके लिए गांव वाले उड़द का दान कर रहे हैं।


देवडोली के आदेश पर उड़द की दाल का हो रहा प्रयोग
मंदिर के निर्माण में उड़द के दाल के प्रयोग के पीछे के कारण पर गांव वालों का कहना है कि देवता की देवडोली ने आदेश किया है कि उनके मंदिर निर्माण में सीमेंट और रेत बजरी का प्रयोग ना किया जाए। इसकी जगह उड़द का प्रयोग किया जाए। जिसके बाद ग्रामीण अपनी श्रद्धा से अपने-अपने घरों से उड़द की दाल पीस कर मंदिर समिति को दे रहे हैंं।


भवन शैली धरोहर के संरक्षण में एक मील का पत्थर होगा साबित
ग्रामीणों का कहना है कि नागराज देवता के आदेश से ये हमारी संस्कृति को बचाने का और आगे बढ़ाने का एक अनूठा प्रयास है। इसके साथ ही उनका कहना है कि ये तकनीक हमारी समृद्ध भवन शैली धरोहर के संरक्षण में एक मील का पत्थर साबित होगा।
इस मंदिर को बनाने के लिए इस पूरे इलाके के 10 से 11 गांव के ग्रामीण सहयोग कर रहे हैं। मंदिर का निर्माण हिमाचल के कारीगर और मंदिर के लिए पत्थरों को सहारनपुर के कारीगर तराश रहे हैं।


टिहरी रियासत में भवन निर्माण में उड़द की दाल का होता था प्रयोग
लोगों के मुताबिक भवन निर्माण में पहाड़ों में उड़द की दाल का प्रयोग टिहरी रियासत के समय किया जाता था। इसके साथ ही इस जिले की गंगा-यमुना घाटी अपनी भवन निर्माण शैली के लिए जानी जाती है। इस इलाके गांवों में भवन शैली में बनाए जाते हैं।

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