बड़ी खबर- यह टी.वी.चैनल और एंकर हुए सवालों के घेरे में खड़े, मीडिया जगत में आ गया भूचाल सा….
जब से इंडिया गठबंधन ने 14 मशहूर टी.वी. एंकरों के बॉयकॉट की घोषणा की है तब से पूरे मीडिया जगत में एक भूचाल-सा आ गया है। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है और ऐसा देश में पहली बार हुआ है। इन टी.वी. चैनलों के समर्थक और केंद्र सरकार विपक्ष के इस कदम को अलोकतांत्रिक बता रही है। उनका आरोप है कि विपक्ष सवालों से बच कर भाग रहा है। जबकि विपक्ष का कहना है कि भाजपा ने लंबे अरसे से एन.डी.टी.वी. चैनल का बहिष्कार किया हुआ था। जब तक कि उसे अडानी समूह ने खरीद नहीं लिया। इसके अलावा तमिलनाडु के अनेक ऐसे टी.वी. चैनल जो वहां के किसी राजनीतिक दल से नियंत्रित नहीं हैं और उनकी छवि भी दर्शकों में अच्छी है, उन सबका भी भाजपा ने बहिष्कार किया हुआ है।
सवाल उठता है कि इस तरह सार्वजनिक बहिष्कार करके विवाद खड़ा करने की बजाय अगर विपक्षी दल एक मूक सहमति बना कर इन एंकरों का बहिष्कार करते तो भी उनका उद्देश्य पूरा हो जाता और विवाद भी खड़ा नहीं होता। पर शायद विपक्ष ने यह विवाद खड़ा ही इसलिए किया है कि वो देश के ज्यादातर टी.वी. चैनलों की पक्षपातपूर्ण नीति को एक राजनीतिक मुद्दा बना कर जनता के बीच ले जाएं जिसमें वह सफल हुए हैं।
इस विवाद का परिणाम यह हुआ है कि ‘गोदी मीडिया’ कहे जाने वाले इन टीवी चैनलों के समर्पित दर्शकों के बीच इन एंकरों की लोकप्रियता और बढ़ी है। जिससे इन्हें टी.आर.पी. खोने का कोई जोखिम नहीं है। जहां तक बात उन दर्शकों की है जो वर्तमान सत्ता को नापसंद करते हैं, तो वह पहले से ही इन एंकरों के शो नहीं देखते थे, इसलिए उन पर इस विवाद का कोई नया असर नहीं पड़ेगा। पर इन टी.वी. चैनलों के मालिकों के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। अगर वे अपने इन टी.वी. एंकरों के साथ खड़े नहीं रहते या इन्हें बर्खास्त कर देते हैं तो इसका गलत संदेश उनसे जुड़े सभी मीडिया कर्मियों के बीच जाएगा, क्योंकि ये टी.वी. एंकर इस तरह के एकतरफा तेवर अपनी मजऱ्ी से तो नहीं अपना रहे। ज़ाहिरन इसमें उनके मालिकों की सहमति है।
इस पूरे विवाद में मैंने एक लंबा ट्वीट (जिसे अब एक्स कहते हैं) लिखा, जिसे 24 घंटे में 35 हजार से ज्यादा लोग देख चुके थे। इसमें मैंने लिखा, कि ये सब जो हो रहा है यह बहुत दुखद है। चूंकि मैं स्वयं एक पत्रकार हूं इसलिए मुझे इस बात से बहुत कोफ्त होती है कि आजकल सार्वजनिक विमर्श में प्राय: पत्रकारों की विश्वसनीयता पर बहुत अपमानजनक टिप्पणियां की जाती हैं। उसका कारण हमारे पेशे की विश्वसनीयता में आई भारी गिरावट है। सोचने वाली बात यह है कि आज से 30 वर्ष पहले जब मैंने भारत की राजनीति का सबसे ज्यादा चर्चित और बड़ा ‘जैन हवाला कांड’ उजागर किया था, जिसमें कई प्रमुख राजनीतिक दलों के बड़े-बड़े राजनेता और बड़े अफसर प्रभावित हुए थे, तब भारी राजनीतिक क्षति पहुंचने के बावजूद उन राजनेताओं ने मुझ से अपने संबंध नहीं बिगाड़े।
उनका कहना था कि तुमने किसी एक राजनीतिक दल का हित साधने के लिए या किसी राजनीतिक व आर्थिक लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से हम पर हमला नहीं बोला था। बल्कि तुमने तो निष्पक्षता और निडरता से पत्रकारिता के मानदंडों के अनुरूप अपना काम किया इसलिए हमें तुमसे कोई शिकायत नहीं है। उन सभी से आजतक मेरे सौहार्दपूर्ण संबंध हैं। इस देश में खोजी टी.वी. पत्रकारिता की शुरूआत मैंने 1986 में दूरदर्शन (तब निजी टी.वी. चैनल नहीं होते थे) पर ‘सच की परछाईं’ कार्यक्रम से की थी। ये अपने समय का सबसे दबंग कार्यक्रम माना जाता था। क्योंकि इस कार्यक्रम में मैं कैमरा टीम को लेकर देश के कोने-कोने में जाता था और तत्कालीन राजीव गांधी सरकार की नीतियों के क्रियान्वयन में जमीनी स्तर पर हो रही कमियों को उजागर करता था। इसके बाद 1989 में जब देश में पहली बार मैंने स्वतंत्र हिन्दी टी.वी. समाचारों की वीडियो पत्रिका ‘कालचक्र’ जारी की तो उसके भी हर अंक ने अपनी दबंग रिपोर्टों के कारण देश भर में खलबली मचाई।
सरकारें तो आती-जाती रहती हैं। हर केंद्र सरकार के पास अपनी उपलब्धियों का प्रचार करने के लिए दूरदर्शन, ऑल इंडिया रेडियो और पी.आई.बी. है। जबकि लोकतंत्र में स्वतंत्र मीडिया का काम जनता की आवाज बनना होता है। उन्हें सरकार से तीखे सवाल पूछने होते हैं और सरकार की योजनाओं में खामियों को उजागर करना होता है। अगर वे ऐसा नहीं करते तो वे पत्रकार नहीं माने जाएंगे। हां कोई भी रिपोर्ट या वार्ता में हर टी.वी. पत्रकार को कोशिश करनी चाहिए कि पूरी तरह निष्पक्षता बनी रहे। इसके साथ ही किसी भी टी.वी. एंकर को यह हक नहीं कि वह विपक्ष के नेताओं को अपमानित करे या उनसे अभद्र व्यवहार करे। टी.वी. की वार्ता में आने वाले सभी लोग उस एंकर के मेहमान होते हैं। इसलिए उनका पूरा
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