Supreme Court: भूमि अधिग्रहण मामलों में भूस्वामियों पर सुप्रीम कोर्ट ने की अहम टिप्पणी




सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भूमि अधिग्रहण के सभी मामलों में आर्थिक मुआवजे के अलावा संपत्ति मालिकों का पुनर्वास आवश्यक नहीं है। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि इन मामलों में संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आजीविका के अधिकार से वंचित करने का तर्क टिक नहीं सकता। सरकार के किसी भी लाभकारी कदम को केवल भूमि मालिकों के प्रति निष्पक्षता व समता के मानवीय दृष्टिकोण से निर्देशित किया जाना चाहिए।
जस्टिस जेबी पारदीवाला व जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने कहा, सिर्फ दुर्लभतम मामलों में ही सरकार विस्थापितों को मुआवजा देने के अलावा उनके पुनर्वास के लिए कोई योजना शुरू करने पर विचार कर सकती है। अदालत ने इसकी निंदा की कि कई बार राज्य सरकारें लोगों को खुश करने के लिए अनावश्यक योजनाएं शुरू कर देती हैं और अंततः मुश्किलों में पड़ जाती हैं। इससे अनावश्यक रूप से मुकदमे भी बढ़ते हैं। हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण के संपदा अधिकारी की ओर से दायर अपील पर दिए फैसले में पीठ ने कहा कि यह मुकदमा देश के सभी राज्यों के लिए आंख खोलने वाला है। जस्टिस पारदीवाला ने 87 पृष्ठों के फैसले में लिखा है, यदि किसी सार्वजनिक उद्देश्य के लिए भूमि की जरूरत होती है तो कानून सरकार को भूमि अधिग्रहण कानून या किसी अन्य राज्य अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार अधिग्रहण की अनुमति देता है। जब किसी सार्वजनिक उद्देश्य के लिए भूमि अधिग्रहण होता है तो जिस व्यक्ति की भूमि ली जाती है, वह कानून के सिद्धांतों के अनुसार उचित मुआवजे का हकदार होता है।अधिग्रहण से बेसहारा होने वाले का पुनर्वास
न्यायालय ने इस पर जोर दिया कि सामान्य तौर पर पुनर्वास केवल उन व्यक्तियों के लिए होना चाहिए जो भूमि अधिग्रहण के परिणामस्वरूप निवास या आजीविका के नुकसान के कारण बेसहारा हो गए हों। दूसरे शब्दों में, उन लोगों के लिए जिनका जीवन और आजीविका भूमि से आंतरिक रूप से जुड़ी हुई है। इस मामले में विवाद इससे संबंधित था कि क्या भूस्वामियों को हरियाणा सरकार की ओर से जारी 1992, 2016 की संशोधित योजना, जिसे 2018 में संशोधित किया गया था, के अनुसार भूखंड आवंटन का अधिकार होगा।
कानूनी अधिकार के रूप में दावा नहीं
प्रतिवादी-भूस्वामियों ने कहा कि वे 1992 की नीति के अनुसार भूखंड आवंटन के लिए जरूरी राशि देने को तैयार हैं। अपील का निपटारा करते हुए पीठ ने कहा, प्रतिवादी कानूनी अधिकार के रूप में दावा करने के हकदार नहीं हैं। उन्हें विस्थापितों के रूप में भूखंड 1992 की नीति में तय मूल्य पर ही दिए जाने चाहिए। वे अधिक से अधिक 2016 की नीति का लाभ लेने के हकदार हैं।
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