आयुर्वेद विश्वविद्यालय में बड़ा घोटाला, कुलपति सहित तीन को जाएगा नोटिस

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आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलपति और तीन अधिकारियों पर करोड़ों के घोटाले के आरोप पर विजिलेंस नोटिस भेजने की तैयारी में है। बता दे जांच में पाया गया था कि शासन कि अनुमति के बिना ही विश्वविद्यालय ने विभिन्न पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन निकाले थे।

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विवि पर कई तरह की अनियमितता बरतने का है आरोप
भर्ती के लिए विश्वविद्यालय की तरफ से समितियों के गठन की विस्तृत सूचना शासन को ना देने के साथ ही पीआरडी के माध्यम से कई युवाओं की भर्ती कर ली गई थी। विवि में हुए इस घोटाले के आरोपी डॉ सुनील जोशी समेत तीन अधिकारियों को विजलेंस पूछताछ के लिए नोटिस जारी करेगी। साथ ही इन तीनो के खिलाफ विजिलेंस ने देहरादून सेक्टर में मुकदमा दर्ज किया है।


स्थापना के समय से ही आरोपों में घिरा है आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय
आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय का ये घोटाला करोड़ों रूपए का बताया जा रहा है। अधिकारियों पर कई तरह से अनियमितता बरतने का आरोप है। इसके साथ ही निर्माण में अनियमितताएं बरतने, गलत तरीके से भर्तियां करने समेत कई आरोप हैं। स्थापना के समय से ही आरोपों से घिरे इस विश्वविद्यालय में भ्रष्टाचार के कई मामले सामने आए थे। शुरुआत में एक विशेष समिति ने विवि की जांच की थी।


शासन ने विजिलेंस को 18 मई 2022 को सौंपी जांच
शासन ने विजिलेंस को पिछले साल 18 मई 2022 को जांच सौंपी थी। विजिलेंस ने वर्ष 2017 से 2022 तक विश्वविद्यालय में हुई हर गतिविधि की जांच शुरू की। शासन को बीते 16 फरवरी को रिपोर्ट सौंपी थी। शासन में इसका अवलोकन करने के बाद छह अप्रैल को मुकदमा दर्ज करने के आदेश जारी किए गए। विजिलेंस की टीम ने 13 अप्रैल को तत्कालीन अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया।


विश्वविद्यालय पर वित्तीय अनियमितताओं के ये है आरोप
विवि में हॉस्टल के निर्माण के लिए विश्वविद्यालय के कॉपर्स फंड से 8.75 करोड़ रुपये बिना किसी अनुमति के निकाल लिए गए थे।


अधिप्राप्ति नियमावली के विरुद्ध जाकर बाह्य सेवाओं पर 20.29 लाख रुपये की धनराशि अनियमित रूप से खर्च कर दी गई थी।
विवि निर्माण के लिए स्वीकृत बजट को खर्च करने की अनुमति शासन से नहीं ली गई। इसका विवेचना में आकलन किया जाएगा।
एक महिला डॉक्टर को रिटायरमेंट के बाद सत्र लाभ के अंत पर नियुक्ति दे दी गई। उन्हें 33.82 लाख का अतिरिक्त भुगतान किया गया था।
कॉलेजों से प्राप्त 298.30 लाख रुपये और 386.50 लाख रुपये सिक्योरिटी धनराशि को भी विश्वविद्यालय कोष में जमा नहीं कराया गया।
संबद्धता शुल्क न लेने पर 58.30 लाख रुपये का प्रतिक्रिया शुल्क भी विश्वविद्यालय कोष में जमा नहीं कराया गया था।
विजिलेंस जांच में सामने आया था कि इस पूरी धनराशि से लाखों रुपये ब्याज के रूप में विश्वविद्यालय को मिले थे। नहीं मिलने से वित्तीय हानि हुई।
अधिप्राप्ति नियमावली का उल्लंघन करते हुए विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने 28.08 लाख रुपये से विभिन्न सामग्री खरीद ली गई।
विश्वविद्यालय पर भर्ती और दाखिले संबंधी ये है आरोप
नियमों को ताक पर रखकर उपनल और पीआरडी के जरिये 180 भर्तियां कर ली गईं।
नीट की परीक्षा के बाद सफल छात्रों को बिना काउंसिल के ही प्राइवेट कॉलेजों में दाखिला दे दिया गया।
46 छात्रों को अनुचित लाभ दिया गया। इनका दाखिला यूजी और पीजी कोर्स में किया गया।
आरक्षण के नियमों के साथ छेड़छाड़ कर रोस्टर का भी ध्यान नहीं रखा गया और भर्तियां कर दी गईं