नैनीताल कोटाबाग का केस- सगी दादी से दुष्कर्म का आरोपी दोष साबित नहीं होने से हुआ रिहा

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नैनीताल एसकेटी डॉट कॉम

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अदालत दोषी के खिलाफ सबूत मांगती है कहानी किस्से से वह कोई फैसला नहीं सुनाता है सबूत चाहे मिटा दिया हो अगर वह है अदालत की नजरों में नहीं आता है तो आरोपी को सजा नहीं दी जा सकती है ऐसा ही एक मामला दादी से दुष्कर्म के आरोपी पोते के साथ आया है जहां दुष्कर्म का कोई साक्षी अदालत में सबूत बनकर नहीं आ पाया तो दोस्ती को मुक्त कर दिया जाता है ऐसा ही एक फैसले में का कोटाबाग के ग्राम दोहनिया में सगी दादी से दुष्कर्म के आरोपी को प्रथम अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने दोषमुक्त करते हुए रिहा करने का सुनाया निर्णय।

जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, नैनीताल के पैनल अधिवक्ता प्रदीप लोहनी से प्राप्त जानकारी के अनुसार कोटाबाग के ग्राम दोहनिया निवासी ग्रामीण ने कालाढूंगी थाने में दिनांक 04 सितम्बर 2022 को रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि दिनांक 03 सितम्बर 2022 की रात्रि लगभग 9:45 – 10:00 बजे वह रामलीला की तालीम में गया था। जब वह रात्रि 10:00 – 10:15 पर घर पंहुचा तो उसके बच्चे बहुत घबराये हुए थे तथा उन्होंने रोते हुए बताया कि उसका भतीजा उसकी 80 वर्षीय माँ को उसके कमरे से उठाकर अपने कमरे में ले गया हैं और वह चिल्ला व कराह रही हैं।

मेरी पत्नी व बच्चों के चिल्लाने पर मेरे भतीजे के डर से कोई पड़ोसी नहीं आया। वादी के अनुसार जब उसने अपने भतीजे के कमरे में देखा तो उसकी बूढ़ी माँ कराह रही थी व उसके गुप्त स्थान से खून निकल रहा था। मामले में अभियोग पंजीकृत कर थाना कालाढूंगी पुलिस द्वारा अभियुक्त को दिनांक 04 सितम्बर 2022 को गिरफ्तार कर न्यायलय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया जो आज दिन तक जेल में ही निरुद्ध हैं।

विवेचना उपरान्त पुलिस थाना कालाढूंगी द्वारा अभियुक्त के विरुद्ध धारा 376 (2)च भा0 दं0 सं0 में आरोप पत्र माननीय न्यायलय में प्रेषित किया। दौराने विचारण अभियोजन अपने कथानक को साबित नहीं कर पाया। अभियुक्त की तरफ से जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, नैनीताल के पैनल अधिवक्ता प्रदीप लोहनी ने निशुल्क पैरवी की तथा अभियोजन की तरफ से अतिरिक्त जिला शासकीय अधिवका (फौजदारी) देव सिंह एडवोकेट ने अभियोजन का पक्ष रखा।

मामले के विचारण व दोनों पक्षो की बहस सुनने के पश्चात प्रथम अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश, हल्द्वानी कँवर अमरिंदर सिंह ने अभियुक्त को मामले में दोषी न पाते हुए दोषमुक्त करते हुए रिहा करने का निर्णय खुली अदालत में सुनाया।