Kainchi Dham : क्या है नीम करौली बाबा की असली पहचान ?, जिन्हें लोग मानते हैं हनुमान जी का अवतार

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नीम करौली बाबा के भक्त देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी हैं। उनके आगे एप्पल के मालिक भी सर झुकाते हैं। यूं तो नीम करौली बाबा किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं नीम करौली बाबा कहलाने से पहले उनकी पहचना क्या थी और बाबा कैसे इतने प्रसिद्ध हो गए ?


फिरोजाबाद जिले के अकबरपुर गांव में सन 1900 के आसपास एक धनी ब्राह्मण परिवार में एक हनुमान भक्त बालक का जन्म हुआ। जिसका नाम लक्ष्मण नारायण शर्मा रखा गया। लक्ष्मण नारायण शर्मा बचपन से ही श्री हनुमान की भक्ति में लीन हो गए। मानों जन्म लेते ही उन्होंने किलकारी की जगह राम नाम ही पुकारा हो। जैसे ही लक्ष्मण नारायण शर्मा थोड़ा बड़े हुए तो उनके माता-पिता ने उनका विवाह करा दिया। लेकिन हनुमान में जिसका मन रम गया हो उसका मन कहीं और कैसे लग सकता था। विवाह के बाद लक्ष्मण नारायण शर्मा ने अपना घर छोड़ दिया।

17 साल की उम्र में हो गई थी आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति
मात्र 17 साल की उम्र में उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति भी हो गई। लेकिन अपने पिता के काफी अनुरोध पर वो वापस घर लौट आए। जिसके बाद उनके दो बेटे और एक बेटी हुई। लेकिन हनुमान की भक्ति में बंधे व्यक्ति को कब तक गृहस्थ जीवन में जबरन बांधा जा सकता था। अपने हनुमान और मानव कल्याण की सेवा के लिए लक्ष्मण नारायण शर्मा ने एक बार फिर गृह त्याग दिया।

लक्ष्मण नारायण शर्मा किसी एक घर को अपना नहीं मानते थे। वो कहते थे कि सारा ब्रह्मांड ही हमारा घर है और यहां रहने वाले हमारा परिवार शायद उनके गृह त्याग का ये भी एक कारण रहा हो। गृह त्याग करने तक लक्ष्मण नारायण शर्मा, बाबा लक्ष्मण दास के नाम से जाने जाते थे।

कैसे बने बाबा लक्ष्मण दास से नीम करोली बाबा ?
लक्ष्मण नारायण शर्मा से तो वो बाबा लक्ष्मण दास बने लेकिन अब आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि बाबा कैसे नीम करोली बाबा बने उन्हें ये नाम किसने दिया। तो इस बारे में नीम करोली बाबा के शिष्य रिचर्ड अल्बर्ट जिन्हें बाबा ने राम दास नाम दिया था वो एक कहानी बताते हैं। राम दास बताते हैं कि बाबा लक्ष्मण दास एक बार बिना टिकट के ट्रेन में चढ़ गए। जिसके बाद टीटीई ने बाबा लक्ष्मण दास को फर्रुखाबाद जिले के नीम करोली गांव में ट्रेन से उतार दिया।

ट्रेन फिर चलनी चाही लेकिन ट्रेन आगे नहीं बढ़ी। काफी समय बाद भी और कई कोशिशों के बाद भी ट्रेन टस से मस न हुई। ऐसा लग रहा था मानों वो टीटीई द्वारा बाबा को जबरन ट्रेन से उतरवाने के कारण रुष्ट हो गई हो। कई असफल प्रयासों के बाद किसी ने टीटीई को सलाह दी कि आपने जिस साधु को ट्रेन से उतारा उन्हें वापस बैठा लें। फिर बाबा लक्ष्मण दास से ट्रेन में बैठने के लिए काफी अनुरोध किया गया। लेकिन उन्होंने ट्रेन में आने के लिए दो शर्तें रख दीं।

ऐसे हुआ था नीम करौली गांव में चमत्कार
पहली शर्त बाब ने ये रखी कि रेलवे कंपनी नीम करौली गांव में एक स्टेशन बनाए। मानों जैसे बाबा को नीम करौली गांव के लोगों की परेशानी का आभास पहले ही हो गया हो। क्योंकि उस समय नीम करौली गांव में कोई स्टेशन नहीं था और गांव वालों को कई मील पैदल चल के पास के स्टेशन जाना पड़ता था। दूसरी शर्त ये थी कि रेलवे कंपनी अब से ट्रेन में सफर कर रहे साधुओं के साथ अच्छा व्यवहार करे।

अधिकारियों के सहमत होने के बाद बाबा लक्ष्मण दास मज़ाक करते हुए ट्रेन में चढ़े और कहा कि भला मेरे ट्रेन में चढ़ने से ट्रेन कैसे चल पड़ेगी? लेकिन उनके ट्रेन में कदम रखते ही चमत्कार हो गया ट्रेन का इंजन स्टार्ट हो गया। लेकिन फिर भी ट्रेन आगे नहीं बढ़ी जिसके बाद बाबा ने चालक को आगे बढ़ने का आशीर्वाद दिया। बाबा के आशीर्वाद देते ही ट्रेन चल पड़ी। बाद में रेलवे ने अपने वादे के मुताबिक नीम करौली में स्टेशन का निर्माण कराया।

ऐसे पड़ा बाबा का नाम नीम करौली बाबा
बाबा लक्ष्मण दास ने नीम करौली में अपना कुछ वक्त भी गुज़ारा। बाबा वहां लोगों के दुखों का समाधान करते और अपनी साधना, तपस्या में लीन रहते। जिसके चलते वहां के लोगों ने उन्हें नया नाम दे दिया जो था नीम करौली बाबा और कुछ इस तरह बाबा लक्ष्मण दास बन गए नीम या नींब करोली बाबा।

नीम करौली बाबा ने पूरे उत्तर भारत का भ्रमण भी किया। जहां उन्हें हर जगह अलग-अलग नामों से पुकारा जाने लगा। जैसे – हांडी वाला बाबा, तिकोनिया वाला बाबा, गुजरात में उन्हें तलैया बाबा ने नाम से जाना जाने लगा और उत्तरप्रदेश में नीम करोली बाबा व चमत्कारी बाबा के नाम से प्रसिद्ध हो गए। उत्तराखंड में उन्हें नीम करौली बाबा के नाम से ही जाना जाता है। यहां प्रसिद्धा कैंची धाम के साथ ही बाबा के चार धाम हैं