स्मार्ट सिटी के कामों में गड़बड़झाला, पेमेंट पहले, काम अधूरा, ऑडिट रिपोर्ट में हुआ खुलासा

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देहरादून में स्मार्ट सिटी के काम को शुरू हुए छह साल से अधिक हो गया है. लेकिन अभी तक देहरादून स्मार्ट नहीं हो पाया है. हाल ही में ऑडिट रिपोर्ट में खुलासा हुआ है की स्मार्ट सिटी की बड़ी योजनाओं का काम अभी अधूरा है बावजूद इसके प्रोजेक्ट मैनेजमेंट कंसल्टेंट कंपनी को स्मार्ट सिटी लिमीडेड की ओर से भुगतान पहले ही कर सरकारी पैसों का बंदरबांट किया गया है.

ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार स्मार्ट सिटी लिमिटेड ने 22 प्रोजेक्ट का काम पूरा करने के लिए पहले जून 2018 से अगस्त 2021 तक के लिए और इसके बाद में सितंबर 2021 से सितंबर 2023 तक के लिए दो अलग-अलग कंपनियों के साथ कॉन्ट्रैक्ट किया था। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पहली कंपनी को स्मार्ट सिटी की ओर से 17 करोड़ 62 लाख रुपए का भुगतान किया गया है. वहीं दूसरी कंपनी को 11 करोड़ 20 लाख रुपए का भुगतान किया गया है।

ऑडिट रिपोर्ट में हुए बड़े खुलासे
ऑडिट रिपोर्ट में योजनाओं की ठीक से मॉनीटरिंग नहीं होने, कई बड़ी योजनाओं का काम अधूरा होने के बाद भी भुगतान पूरा करने, लापरवाही पर जुर्माना ना लगाने जैसे सवाल किए गए हैं. इसके साथ ही एक निजी स्कूल की दीवार बनाने में 4 करोड़ रुपए से अधिक खर्च करने का मामला सामने आया है.

निजी स्कूल की दीवार बनाने में खर्चे करोड़ों रुपए
रिपोर्ट में बताया गया है कि स्मार्ट रोड परियोजना के तहत चकराता रोड पर एक निजी स्कूल की दीवार को स्थांतरित करने के लिए कार्य के दायरे से बाहर चार करोड़ 92 लाख रुपए खर्च किए गए हैं. जबकि पूर्व में बनी दीवार को अतिक्रमण मान कर तोड़ा गया था.

PWD विभाग की थी दिवार : CEO
मामले को लेकर स्मार्ट सिटी की ceo सोनिका का कहना है कि स्कूल की जमीन pwd की थी. जिसे जनता की सहूलियत के लिए तोड़ा गया था. इसके साथ ही ऑडिट ज्यादातर आपत्तियां कंपनी को लेकर है. स्मार्ट सिटी लिमिटेड की ओर से हर एक आपत्ति का विस्तार से जवाब दिए जा रहा है.

ये हैं ऑडिट रिपोर्ट के मुख्य बिन्दु
स्मार्ट सिटी लिमिटेड ने जिस कंपनी की dpr को लेकर पूर्व में सवाल उठाए थे बाद में उसे ही चाइल्ड फ्रेंडली सिटी प्रोजेक्ट का काम सौंप दिया।
स्मार्ट सिटी लिमिटेड ने देरी वाले प्रोजेक्ट को लेकर कंपनियों के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की इसके साथ ही कंपनी पर जुर्माना भी नहीं लगाया।
कंपनी को बिना सहायक दस्तावेजों के लाखों रुपये का भुगतान करने को लेकर सवाल उठाए हैं।
कंपनी के स्टाफ को 34 लाख रुपये का भुगतान किया गया, जबकि वह उपस्थिति रजिस्टर के अनुसार उपस्थित ही नहीं थे।
इलेक्ट्रिक बस प्रोजेक्ट के लिए कंपनी को ग्यारह लाख से ज्यादा का अतिरिक्त भुगतान किया गया है