Uttarkashi में तो ये होना ही था!, जिन जगहों पर थे होमस्टे वो था नदी का प्राकृतिक फ्लड प्लेन




Uttarkashi Cloudburst: एक बरसात और उत्तरकाशी के कई इलाके तहस नहस हो गए। सोशल मीडिया पर उत्तरकाशी बादल फटने की वीडियोज तेजी से वायरल हो रही है। जिसमें देखा जा सकता है कि किस तरह जान बचाने के लिए भागते लोगों के पीछे खीर गंगा मौत बनकर दौड़ रही है। कैसे उत्तरकाशी की तीन जगहों पर बादल फटने (Uttarkashi Cloudburst) से कुछ ही घंटों में उत्तरकाशी इस तबाही में डूब गया। चलिए विस्तार से पूरे मामले को जान लेते है।

उत्तरकाशी में बादल फटने से शुरू हुआ तबाही का मंजर Uttarkashi Cloudburst
5 अगस्त को दोपहर करीब 1:50 पर खीर गंगा में बादल फटने से तबाही का आलम शुरू हुआ। कुछ ही घंटों के भीतर उत्तरकाशी में दो और जगह बादल फटे, लेकिन पहला और सबसे बड़ी तबाही धराली में खीर गंगा के पास हुई।
यहां खीर गंगा के फ्लड प्लेन पर बसा पूरा धराली बाज़ार(Dharali Market) मलबे और पानी में बह गया। इन तस्वीरों में साफ़ दिखता है कि जहां अब तक खीर गंगा उल्टी दिशा में बह रही थी। वहीं अचानक आए पानी ने उसका रुख़ बदल दिया और उसने अपना पुराना फ्लड प्लेन(Uttarkashi flash floods) वापस ले लिया।

मलबे में तलाशी जा रही जिंदगियां
इस सैलाब में कई लोग लापता बताए जा रहे हैं। अब तक आफिशिलयी 4 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है। मौत के फाइनल आंकड़े आना अभी बाकी है। धराली में इन दिनों हारदूध मेला भी चल रहा था। जहां दूर-दराज़ से लोग पहुंचे थे। ऐसे में आशंका है कि आपदा से प्रभावित लोगों की संख्या और बढ़ सकती है।
दो नहीं तीन बादल जगहों पर फटे बादल
दूसरा हादसा हर्षिल के पास तेलगाड़ में हुआ। जहां पानी का जलस्तर अचानक इतना बढ़ गया कि हर्षिल हेलिपैड और सेना का कैंप तक मलबे में दफ़न हो गया। इस हादसे में कई जवान लापता बताए जा रहे हैं। तीसरा बादल फटने का मामला सुक्की के अवाना बुग्याल से सामने आया। जिस वजह से भागीरथी नदी में एक झील बन गई। इसके निचले इलाकों में खतरा बना हुआ है।

क्या है उत्तरकाशी में बादल फटने की वजह? Reason for Uttarkashi Cloudburst
वैज्ञानिकों की मानें तो उत्तरकाशी में बादल फटना की सबसे बड़ी वजह Mediterranean Sea से उठने वाले Western Disturbance का हिमालय से टकराना है। साल 2013 में केदारनाथ में भी इसी वजह से आपदा आई थी और अब उत्तरकाशी में भी सेम पैटर्न दिखाई दे रहा है। उत्तराकशी हमेशा से ही आपदाओं के लिहाज से काफी संवेदनशील रहा है फिर चाहे वो बादल फटना हो, बाढ़ हो या फिर भूकंप।

आपदा के लिहाज से काफी संवेदनशील है Uttarkashi
उत्तरकाशी में अब तक आई बाढ़े
बाढ़ की बात करें तो:-
- 6 अगस्त 1978 में कनोडिया गाड़ में आई बाढ़ ने भारी तबाही मचाई थी।
- 2013 में भागीरथी नदी के ऊफान से उत्तरकाशी में बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ।
- 2017-18 – खीर गंगा का जलस्तर बढ़ने से धराली में कई होटल, दुकानें और घर मलबे में दब गए।
उत्तरकाशी में आए भूकंप
बता दें की बीते 100 सालों में उत्तरकाशी में सैकड़ों भूकंप आ चुके हैं। भूकंप के लिहाज से उत्तरकाशी काफी संवेदनशील है ये जोन 5 में आता है। बात करें उन भूकंपों की जिन्में ज्यादा तबाही हुई है तो:-
- 1991 में यहां भूकंप की वजह से 768 लोगों की मौत हो गई थी।
- 1999 और 2009 में भी यहां 7.8 रेक्टेयर के भूंकप के झटके महसूस किए गए हैं।
जिन जगहों पर थे होमस्टे वो था नदी का प्राकृतिक फ्लड प्लेन
अब सवाल ये है की आखिर इतने संवेदनशील इलाके की पहले डेमोग्राफी कैसी थी। अब यहां के क्या हाल हैं? रिसर्चर और लेखक महिपाल नेगी की मानें तो एक ज़माने में ये इलाक़ा खीरगंगा का पुराना बगड़ और थाला था। गांव ऊंचाई पर बसता था।

नीचे के मैदान जहां आज होटल और होमस्टे हैं वो नदी का प्राकृतिक फ्लड प्लेन (natural flood plains of river) था। यहां घाट, घराट और मवेशियों के चरने की जगहें होती थीं। लेकिन अब इन्हीं फ्लड प्लेन में पक्की इमारतें खड़ी कर दी गई हैं। सिर्फ धराली ही नहीं, पूरे उत्तरकाशी में, और सच कहें तो पूरे उत्तराखंड का, यही हाल है।
पर्यटन की अंधी दौड़ में पहाड़ों में किए गए अनप्लांड कनस्ट्रक्शन
पर्यटन के दबाव और आधुनिकता की अंधी दौड़ में लोग पहाड़ों में अनप्लांड कनस्ट्रक्शन कर रहे हैं। ये आपदाओं को सीधा न्योता है। पर्यावरणविद और वैज्ञानिक भी सालों से यही बात कहते आ रहे हैं। धराली के परिपेक्ष में पर्यावरणविदों की मानें तो यहां की आबादी कैरींग कैपेसीटी से कही ज्यादा हो गई है। लेकिन शासन प्रशासन ने कभी इस बात पर ध्यान नहीं दिया। लोग नदी के फ्लड प्लेन में तक कनस्ट्रक्शन करते चले गए।
ग्लेशियर लेक का फटना नहीं है आपदा की वजह
शुरुआत में धराली में हुए हादसे को ग्लेशियर लेक का फटना माना जा रहा था। लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है शायद जंगलों के बीच कहीं पानी रुका था जो तेज़ ढलान की वजह से अचानक बह निकला। कई विशेषज्ञ बड़े अमाउंट में पेड़ों के कटान और ग्लोबल वार्मिंग को भी इसका ज़िम्मेदार मानते हैं।
हालांकि अभी तक आपदा की सही वजहों का पता नहीं लग पाया है। लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है की अगर ऐसा ही चलता रहा हो तो आने वाले वक्त में उत्तराखंड के कई जनपदों में ऐसी और तस्वीरें सामने आएंगी

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