Happy Birthday Nainital : जानें कैसे हुई थी नैनीताल की खोज ?

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नैनीताल का नाम सुनकर आप देश के किसी भी कोने में क्यों ना हो बर्फ से ढके पहाड़, शांत वादियां और झीलों के मनोरम दृश्य आपके सामने आ जाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आज देश-दुनिया में इतने मशहूर नैनीताल को कभी कोई जानता ही नहीं था। सालों तक नैनीताल को अंग्रेजों से छिपा कर रखा गया।

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एक जमाने में मिस्ट्री से कम नहीं था नैनीताल
आज पर्यटन नगरी नैनीताल आज 182वां जन्मदिन मना रहा है। 18 नवंबर 1841 को इसकी खोज पी.बैरन ने की थी। लेकिन क्या आप जानते हैं आज जो नैनीताल सैलानियों से खचाखच भरा रहता है वो एक जमाने में किसी मिस्ट्री से कम नहीं था। क्यों चौंक गए ना लेकिन ये बात बिल्कुल सही है। नैनीताल को कई सालों तक अंग्रेजों से छिपा के रखा गया सिर्फ स्थानीय लोग ही इस जगह के बारे में जानते थे। लेकिन धीरे-धीरे यूरोपीय यात्रियों के बीच इन हरी-भरी पहाड़ियों के बीच एक झील होने की बातें फैलने लगी। लेकिन किसी को पता नहीं था कि इस झील तक कैसे पहुंचा जाए।

कैसे हुई थी नैनीताल की खोज ?
पी.बैरन एक अंग्रेज व्यापारी थे। जिन्हें पहाड़ों को एक्सप्लोर करना काफी पसंद था। एक बार उनके दोस्त बैटन ने उन्हें पहाड़ में झील होने की बात बताई। जिसे सुनते ही बैरन ने ठान लिया की वो किसी भी तरह नैनीताल का रास्ता खोज निकालेगा।

इससे पहले भी कई यूरोपीय यात्री इस रहस्यमयी जगह तक पहुंचने का प्रयास कर चुके थे लेकिन कोई भी सफल नहीं हो पाया। क्योंकि यात्री स्थानीय लोगों से इस जगह के बारे में पूछते तो वो लोग ऐसी किसी जगह के होने से ही साफ इंकार कर देते। या फिर पैसे लेकर बीच में ही रास्ता भूल जाने की बात कह देते। जिसके बाद पी. बैरन ने स्थानीय गाइडों कि इस चाल से निपटने की एक योजना बनाई।

स्थानीय के सिर पर पत्थर रख नैनीताल पहुंचे थे नैनीताल
पी. बैरन लिखते हैं कि उन्होंने गाइड के सिर पर एक भारी पत्थर रख दिया और कहा कि मंजिल पर पहुंचने पर ही इसे उतारा जाएगा। इसके बाद उसके पास मंजिल तक जाने के अलावा कोई और चारा नहीं था। पहाड़ी लोग आमतौर पर बड़े सीधे होते हैं और आप बड़ी आसानी से उन्हें बेवकूफ बना सकते हैं।

अगर आप ऐसे गाइड के साथ नैनीताल जा रहे हों जो रास्ता नहीं जानने का बहाना बना रहा हो ये तरकीब बड़े काम की है। एक बड़ा पत्थर उसके सिर पर रख के कहिए कि इसे नैनीताल तक पहुँचाना है। क्योंकि वहां पत्थर नहीं है उसे ये भी बाताएं कि ये पत्थर गिरे या टूटे नहीं। आपको इस पत्थर की नैनीताल में बहुत जरुरत है।

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भारी बोझ को ढोने की चिंता में वह जरुर कह बैठेगा कि साहब वहाँ पत्थरों की क्या कमी है और ये बात भला नैनीताल देखे बिना कोई कैसे कह सकता है। ऐसे करने के बाद गाइड उन्हें नैनीताल तक ले गया। जैसे ही पी. बैरन नैनीताल पहुंचे तो वहां की खूबसूरती को देख वो मंत्रमुग्ध हो गए और उन्होंने यहीं रहने का फैसला किया।