उत्तराखंड के कोटी बनाल भवनों को देख विज्ञान भी हैरान, इन घरों पर भूकंप भी बेअसर, हजारों सालों से हैं खड़े

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कोटी बनाल भवन (koti banal)

उत्तराखंड भूकंप की दृष्टि से बेहद ही संवेदनशील है। कई बार भूंकप के कारण यहां तबाही मच चुकी है। धरती की एक हल्की सी थरथराहट से बड़ी बड़ी इमारतें पलक झपकते ही धराशायी हो जाती हैं। वैज्ञानिकों ने उत्तराखंड में कभी भी बड़े भूकंप के आने की चेतावनी तक दे दी है।

वैज्ञानिकों का कहना है कि इस हिमालयी इलाके में कभी भी आठ या उससे ज्यादा रेक्टर का भूकंप आ सकता है। लेकिन क्या आप जानते हैं की उत्तराखंड के उत्तरकाशी के लोग 1000 साल पहले ही इस विनाशकारी भूकंप से लड़ने का तरीका खोज चुके थे। उत्तरकाशी के लोगों ने घरों को बनाने की एक ऐसी शैली खोज निकाली थी जिसे अपनाकर ये लोग भूकंप से लड़ते आ रहे हैं और खास तरीके से बनी ये इमारतें कई भूकंप झेलने के बाद भी ज्यों की त्यों खड़ी हैं।

खास है भवन निर्माण की उत्तराखंड की कोटी बनाल शैली

उत्तराखंड अपनी बेहतरीन शिल्पकला और खास निर्माण शैली के लिए देश ही नहीं अपितु विदेशों में भी प्रसिद्ध है। लेकिन यहां वास्तुकला का एक ऐसा बेजोड़ नमूना भी है जो न सिर्फ इन मकानों को शानदार बनाता है, बल्कि भूकंप जैसी विनाशकारी आपदा से भी इन्हें सालों से बचाता आ रहा है। उत्तरकाशी जिले के कुछ इलाकों में एक खास पारंपरिक भवन निर्माण शैली का इस्तेमाल करते हुए घर बनाए जाते हैं। इस निर्माण शैली को कोटी बनाल वास्तुकला कहा जाता है।

Koti Banal
कोटी बनाल भवन

कोटी बनाल वास्तुकला पर दुनिया की नजर तब गई जब साल 1991 में उत्तरकाशी में एक बड़ा भूंकप आया था। इस भूकंप के झटकों ने सीमेंट और ईंटों से बने मजबूत लगने वाले सारे घरों को जमींदोज़ कर दिया था। लेकिन यहां मौजूद सालों पुराने मकानों की पांच मंजिला इमारतें टस से मस नहीं हुई। इस घटना ने वैज्ञानिकों का ध्यान इन मकानों की निर्माण शौली की तरफ खींचा। जिसके बाद इन मकानों पर रिसर्च शुरु हो गई। इस रिसर्च में पता चला की ये मकान 900 से 1000 साल पुराने हैं। इस रिसर्च के बाद से ही उत्तरकाशी के इन मकानों की निर्माण शैली को कोटी बनाल नाम दिया गया।

Koti Banal
तीन मंजिला कोटी बनाल भवन

यमुना घाटी के एक गांव का नाम है कोटी बनाल

आपको बता दें कि कोटी बनाल यमुना घाटी के एक गांव का नाम है। जो अपने भूकंप प्रतिरोधी घरों के लिए काफी प्रसिद्ध है। दूर-दूर से लोग यहां इन भवनों को देखने के लिए आते हैं। पहाड़ के लोग सदियों पहले ही ऐसी तकनीक विकसित कर चुके थे जो आज के आधुनिक भूकंप रोधी मकानों से ना सिर्फ ज्यादा सुरक्षित हैं बल्कि ये vernacular Architecture की भी मिसाल हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इनको बनाने में आस-पास मिलने वाली चीजों का इस्तेमाल किया जाता है। जो काफी ईको -फ्रैंडली होती हैं।

Koti Banal
कोटी बनाल गांव

लकड़ी पत्थरों और मिट्टी से बनाए जाते हैं कोटी बनाल भवन

भवन निर्माण की इस शैली में मकान बनाने के लिए सबसे पहले ऊंचे लकड़ी के प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल किया जाता है। फिर कुछ कुछ गैप में पर लकड़ी के विमों को इस तरह एक-दूसरे में फंसाया जाता है कि वो कभी नहीं गिरते हैं। पहाड़ों कोटी बनाल शैली के ये घर दो से लेकर सात मंजिला हो सकते हैं। बता दें कि पत्थरों की चिनाई के लिए चूना, गुड़ और पिसी हुई उड़द की दाल का इस्तेमाल किया जाता है।

इसमें जो ग्राउंड फ्लोर होता है उसे खोई या खोली कहा जाता है। इसकी ऊंचाई ज्यादा नहीं होती ये जगह आमतौर पर जानवरों के रहने के लिए इस्तेमाल में लाई जाती है। फिर आता है फर्स्ट फ्लोर इसे मंजुआ कहते हैं। जबकि सेकंड फ्लोर को बौंद और थर्ड फ्लोर को बरौर कहा जात है। जो घर पांच मंजिल के होते हैं उन्हें पंचपुरा कहते हैं।

Koti Banal
भूकंपरोधी कोटी बनल भवन

उत्तराखंड के कोटी बनाल भवनों को देख विज्ञान भी हैरान

कोटी बनाल घरों की खास बात ये है कि इन घरों की छत ढलान वाली होती है। जो कि पत्थरों को तिकोने आकार में रखकर बनाई जाती है। ऐसी छतों के डिजाइन आपको अक्सर पहाड़ी घरों में देखने मिलेंगे। इनकी छत ढलानदार इसलिए बनाई जाती है ताकि स्नोफॉल होने पर छत पर गिरी हुई बर्फ जमे नहीं और खुदबखुद फिसल कर नीचे आ जाए। इन घरों को देख वैज्ञानिक भी हैरान हो गए थे। जब इन पर शोध किया गया तो कई तथ्य सामने आए। सबसे बड़ा तथ्य ये सामने आया कि इन घरों की मजबूती और भूकंप झेलने की क्षमता के पीछे भी एक विज्ञान छिपा हुआ है।

Koti Banal
पंचपुरा कोटी बनाल भवन

इसका जिक्र Disaster Mitigation and Management Centre के Executive Director डॉ. Piyoosh Rautela अपने एक रिसर्च पेपर में करते हैं। वो लिखते हैं कि जिस तरह लकड़ियों को अरेंज करके ये मकान बनाए जाते हैं वो इन्हें भूकंप के लिहाज से सबसे सुरक्षित बना देते हैं।

अब लकड़ी मजबूत होने के साथ साथ काफी हल्की भी होती है जिस वजह से भूकंप के दौरान पैदा होने वाला कंपन इन मकानों में उतना इफेक्ट नहीं डालता क्योंकि वो पूरे घर में समान रूप से वितरित (equally distribute) हो जाता है। लेकिन सीमेंट के मकानों में ऐसा होना पॉसिबल नहीं है। यही वजह है कि कोटी बनाल शैली में बने ये लकड़ी के मकान साल 1334, 1505 और 1991 जैसे खतरनाक भूकंप झेलने के बाद भी सही सलामत खड़े हैं।