उत्तराखंड में जोर पकड़ने लगी 5th शेड्यूल और ट्राइब स्टेटस की मांग, जानें क्या है ये ?

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देश के हिमालयी राज्यों में 5th शेड्यूल और ट्राइब स्टेटस लागू है। लेकिन उत्तराखंड के चकराता क्षेत्र में केवल ट्राइब स्टेटस का दर्जा मिला हुआ है। लेकिन अब उत्तराखंड में 5th शेड्यूल और ट्राइब स्टेटस लागू करने की मांग जोर पकड़ने लगी है। यानी उत्तराखंड के पूरे पहाड़ी क्षेत्र को जनजातीय क्षेत्र का दर्जा दिलाने की मांग उठ रही है। मांग अगर पूरी होती है तो उत्तराखंड में न तो सशक्त भू-कानून की जरूरत पड़ेगी और न ही मूल निवास 1950 लागू करने की मांग होगी।


देश के कई राज्यों में फिफ्थ शेड्यूल और ट्राइब स्टेटस का दर्जा मिला हुआ है। इसके फायदे असम, नगालैंड, मणिपुर, सिक्किम, त्रिपुरा, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, लद्दाख और हिमाचल के तीन जिलों को मिल रहा है। जिसमें लाहौल स्मिथ, किनौर और चंबा शामिल हैं। इसके साथ ही हिमाचल के सिरमौर जिले को भी जल्द फिफ्थ शेड्यूल, ट्राइब स्टेटस का दर्जा मिलने वाला है। देश के जिन राज्यों के क्षेत्र में फिफ्थ शेड्यूल या ट्राइब स्टेटस का दर्जा मिला होता है उन क्षेत्रों में स्थानीय निवासियों के पास कई अधिकार होते हैं।

ट्राइब शब्द का अर्थ आदिवासी से जुड़ा हुआ है और आदिवासी को आदि निवासी भी माना जाता है। लेकिन इसे दुर्भाग्य ही कह सकते हैं कि उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में निवास कर रहे गढ़वालियों और कुमाऊंनियों को आज तक आदि निवासी माना नहीं गया है। उत्तराखंड के केवल चकराता क्षेत्र को ट्राइब का दर्जा मिला है। लेकिन फिफ्थ शेड्यूल का दर्जा मिलना बाकी है। फिर भी उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों की तुलना में चकराता क्षेत्र के निवासियों के अधिकार काफी मजबूत है

उत्तराखंड में जोर पकड़ने लगी 5th शेड्यूल और ट्राइब स्टेटस की मांग
उत्तराखंड एकता मंच के बैनर तले उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र को फिफ्थ शेड्यूल और ट्राइब स्टेटस का दर्जा देने की मांग जोर पकड़ने लगी है। फिफ्थ शेड्यूल और ट्राइब स्टेटस का दर्जा मिलने पर खुद ही मूल निवास और भू-कानून जैसी मांगे लागू हो जाएंगी। बता दें कि जिस क्षेत्र को फिफ्थ शेड्यूल और ड्राइव का दर्जा मिला होता है उसे क्षेत्र में कोई भी बाहरी व्यक्ति जमीन नहीं खरीद सकता है। अगर किसी के द्वारा जमीन खरीदी गई है तो ट्राइब स्टेटस का दर्जा मिलने के बाद बाहरी व्यक्ति के द्वारा खरीदी गई जमीन केवल स्थानीय निवासी को ही बेची जा सकती है।

मूल निवास 1950 भी फिफ्थ शेड्यूल और ड्राइब स्टेटस के लोगों को मिलना शुरु हो जाएगा। उदाहरण के तौर पर उत्तराखंड में जौनसार-भाबर क्षेत्र के तहत जौनसारी जनजाति के तहत स्थानीय लोगों को ड्राइव स्टेटस का दर्जा मिला हुआ है। इसके साथ ही उत्तराखंड में भोटिया, थारू और बोक्सा जनजाति भी इसके अंतर्गत आती है।

जौनसार-भाबर क्षेत्र को मिला है ड्राइव स्टेटस का दर्जा
आपको बता दें कि जौनसार-भाबर क्षेत्र में 1950 के तहत मूल निवास प्रमाण पत्र अभी भी दिए जा रहे हैं। इसके साथ ही 4% का आरक्षण राज्य की शैक्षणिक संस्थाओं और राज्य सरकार के द्वारा मिलने वाली नौकरियों में आरक्षण प्रदान किया जा रहा है। तो वहीं 7.5% आरक्षण केंद्रीय शिक्षण संस्थानों में एडमिशन के साथ ही केंद्रीय नौकरियों में भी मिल रहा है।

यहां तक की जौनसार-भाबर क्षेत्र में कोई भी बाहरी व्यक्ति जमीन नहीं खरीद सकता है। जल, जंगल और जमीन पर पूरा हक स्थानीय लोगों के हैं। क्षेत्र में अगर नदी से खनन का पट्टा भी मिलता है तो वो स्थानीय स्तर पर मिलता है। बाहरी व्यक्ति जमीन नहीं नहीं खरीद सकता है।

1972 तक उत्तराखंड को मिला था जनजातीय क्षेत्र का दर्जा
उत्तराखंड एकता मंच का दावा है कि 1972 तक उत्तराखंड का जो पर्वतीय इलाका है उसे जनजातीय का दर्जा मिला हुआ था। लेकिन सरकार के द्वारा उसे वापस ले लिया गया। उत्तराखंड एकता मंच का कहना है कि वो केवल ये मांग कर रहे हैं कि उत्तराखंड के पर्वतीय इलाके को जो जनजाति का दर्जा 1972 तक मिला हुआ था उसे वापस लौटाया जाए। इस बात के प्रमाण उनके पास बाकायदा आदेश के रूप में भी है। उत्तराखंड को अगर जनजातीय क्षेत्र का दर्जा मिलता है तो जल जंगल जमीन पर उत्तराखंडियों के हक वापस मिल जाएंगे।