101 साल बाद फिर डूबा देहरादून! क्या देहरादून और धराली आपदा का है कनेक्शन?





उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में करीब 100 साल बाद तबाही का ऐसा मंजर देखने को मिला, जिसे देखकर कोई भी सिहर उठेगा। नदियों के रोद्र रुप ने अपने रास्ते पर हुई बसावट को इस तरह तहस-नहस किया कि शायद ही दोबारा कोई नदी के करीब जाने की गुस्ताखी कर सके। बता दें करीब 100 पहले देहरादून में इसी तरह की आपदा आई थी। जिसमें सब कुछ तहस नहस हो गया था।
101 साल बाद फिर डूबा देहरादून
राजधानी देहरादून की जिसे स्मार्ट सिटी बनाने के सपने दिखाए जाते हैं लेकिन आज ये राजधानी प्राकृतिक रुप से इतनी कमजोर हो चुकी है कि अपनी ही नदियों का बोझ नहीं उठा पा रही है। हालात ये हैं कि जो नदी ,बारिश, पानी कभी देहरादून के लिए कुदरत की मेहरबानी हुआ करती थी। अब वो कुदरत का कहर लगने लगा है।
15 और 16 सितंबर कि दरमयानी रात देहरादून के सहस्त्रधारा के ऊपरी इलाके में बादल फटने के बाद ऐसा कहर बरपा कि लोग हैरान रह गए। दून में एक तरफ़ बादल फटा, तो दूसरी तरफ़ छोटी मानी जाने वाली नदियां और नाले अपने पुराने स्वरुप में लौट आए। ये वो धाराएं हैं, जिनके बारे में किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि ये इतनी तबाही मचा सकती हैं। इन्हीं धाराओं और नदियों ने dehradun का नक्शा बदल दिया।
देहरादून में आई आपदा में गई 13 लोगों की जान
सहस्त्रधारा में कई लोग बह गए, घर और होटल तबाह हो गए। नदी ने अपने किनारे बनाई गई संरचनाओं को खुद में ही समाहित कर लिया। मालदेवता से लेकर टपकेश्वर और प्रेमनगर तक हर जगह तबाही के निशान है। जिले की 10 नदियां उफान पर आ गई। अलग अलग जगहों पर 13 पुल टूट गए, 62 सड़कें बह गई और प्रशासन ने अब तक 13 लोगों की मौत की पुष्टि कर दी है। कई लापता हैं, कई घायल हैं और कई लोगों का घर-बार सब छिन चुका है।
रिस्पना में मिलता था सोना
अब सोचने वाली बात ये है कि आम तौर पर समान्य जल या लगभग सूखी ये नदियां अचानक इतनी खतरनाक कैसे हो गई। असल में, ये इंसानी लालच का नतीजा है। आसन, सुसवा टोंस रिस्पना जैसी देहरादून की नदियां जिनके किनारे कभी खेत और उपजाऊ ज़मीन थी। आपको जानकर हैरानी होगी कि रिस्पना में कभी सोना मिला करता था। अब इन नदियों के ठीक मुहाने पर होटल और होमस्टे खड़े हैं, यहां तक की कई सरकारी इमारतें नदियों की जमीन पर खड़ी कर दी गई हैं। कुछ नदियां नाले में तबदील हो गई हैं।
क्या नदियां ले रही अपना रास्ता वापस?
इन नदियों की एक और खासियत है की ये बरसात के अलावा जमीन के नीचे बहती हैं और उनके प्रवाह क्षेत्र के बीच का हिस्सा सूखा दिखाई देता है। जिसमें रेत और बड़े बड़े पत्थर हैं। नदियों की इस डेमोग्राफी को समझे बिना ही लोगों ने इनके मुहाने पर घर बना लिए। टैक्सी स्टैंड बना लिए। दुनाकें बना ली यहां तक की होटल्स तक खड़े कर दिए। लेकिन नदियां कभी अपना रास्ता नहीं भूलती और आज इन सभी नदियों ने अपना रास्ता वापस लिया है।
देहरादून और धराली आपदा का कनेक्शन?
ऐसा ही कुछ धराली आपदा के वक्त भी देखने को मिला था। जहां खीर गंगा के मुहाने पर बसा पूरा धराली गांव मलबे में समा गया। पुरखों ने इसे लेकर हमेशा से कुछ अनकहे नियम तय किये हुए थे। जैसे नदी किनारे बसावट नहीं होनी चाहिए और इसी लिए पुराने गांव नदी से काफी दूर होते हैं। लेकिन अब लोग विकास की दौड़ में इतने अंधे हो गए हैं की नियमों को भी अनदेखा कर दिया गया। जिसका नतीजा आज हमारे सामने हैं।
1924 में सहस्त्रधारा में मची थी तबाही
सहस्त्रधारा कभी गंधक के पानी के लिए मशहूर थी, लेकिन आज सहस्त्रधारा कंक्रीट के जंगल में तबदील हो चुकी है। इसी वजह से सहस्त्रधारा में सबसे ज्यादा नुकसान भी हुआ है। साल 1924 के 101 साल बाद अब 2025 में सहस्त्रधारा में इतनी बारिश हुई कि सहस्त्रधारा मलबे से ढक गया। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल कि मानें तो नदी के दोनों किनारों से 100-100 मीटर तक कोई निर्माण नहीं होना चाहिए, लेकिन अक्सर विकास ने नाम पर इन नियमों को ताक पर रख दिया जाता है। देहरादून की बात करें तो देहरादून एक वाटर बम पर बैठा हुआ है जो किसी भी वक्त फट सकता है। अब सवाल ये कि क्या देहरादून राजधानी बनने का दंश झेल रहा है? स्मार्ट सिटी के नाम पर जो विकास दिखाया जा रहा है, क्या वो सच में विकास है या तबाही का नक्शा?
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