Chhath Puja Vrat Katha: तीसरे दिन संध्या अर्घ्य के बाद बेहद जरूरी है ये व्रत कथा पढ़ना, छठी मैया की बनी रहेगी कृपा!
छठ पूजा (Chhath Puja ) का महापर्व देश में बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है। खासतौर पर ये पर्व दिल्ली, बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है। इस त्यौहार पर लोग छठी मैया और भगवान सूर्यदेव की पूजा अर्चना करते है। हर साल कार्तिक मास के शुक्ल की चतुर्थी तिथि से छठ पूजा शुरू होती है और सप्तमी तिथि तक चलती है।
इस साल पांच नवंबर से इस पर्व की शुरूआत हो गई थी। तो वहीं इसका समापन आठ नवंबर को होगा। चार दिनों तक चलने वाली इस पूजा का आज तीसरा दिन है। तीसरे दिन यानी 7 नवंबर को डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पूजा होती है। मान्यता है कि तीसरे दिन अर्घ्य दिए जाने के बाद शाम को महिलाएं व्रत कथा(Chhath Puja Vrat Katha) पढ़ती है। माना जाता है कि व्रत लेने वाली महिलाओं को ये पाठ करना बेहद अहम होता है।
संध्या अर्घ्य का कब है समय (Sandhya Arghya time 2024)
पंचांग की माने तो आज सूर्योदय सुबह 6:37 am बजे तो वहीं सूर्यास्त शाम 5:26 pm होगा। इस दिन पानी में खड़े होकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।
छठ पूजा की व्रत कथा (Chhath puja ki katha hindi mein)
छठ पूजा की ये पौराणिक कथा राजा प्रियव्रत पर आधारित है। इस कथा में प्रियव्रत नाम से एक राजा था। राजा और उनकी पत्नी मालिनी की परेशानी का कारण था कि उनकी कोई संतान नहीं थी। संतान की प्राप्ति के लिए उन्होंने कई सारे उपाय किए। लेकिन कोई भी नतीजा नहीं निकला। जिसके बाद दोनों महर्षि कश्यप के पास गए और संतान प्राप्ति के लिए कोई उपाय बताने की बात कही।
महर्षि कश्यप ने राजा के यहां संतान प्राप्ति के लिए भव्य यज्ञ का आयोजन किया। साथ ही यज्ञ आहुति के लिए खीब बनवाने को भी कहा। जिसके बाद महर्षि कश्यप ने ये खीर राजा को उनकी पत्नी को खिलाने के लिए कहा। खीर खाने के बाद रानी गर्भवती हो गई।रानी को नौ महीने वाद बेटा तो हुआ लेकिन वो मृत पैदा हुआ। दुखी राजा और रानी अपने मृत पुत्र को श्मशान लेकर गए। पुत्र वियोग में दोनों ने आत्महत्या का भी प्रयास किया।
देवी षष्ठी ने दिया ये उपाय
जिसके बाद श्मशान में देवी प्रकट हुईं। देवी ने राजा को बताया कि वो ब्रह्मा की पुत्री देवसेना है। उन्हें षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। देवी ने राजा की चिंता की वजह पूछी। जिसके बाद राजा ने सारी बात बताई। षष्ठी देवी ने राजा से कहा कि अगर वो विधिपूर्वक उनकी पूजा करेंगे और दूसरो को भी उनकी पूजा करने के लिए प्रेरित करेंगे तो वो राजा को अवश्य पुत्र प्राप्ति का वरदान देंगी।
राजा को व्रत के बाद पुत्र की प्राप्ति
देवी की मानकर राजा ने कार्तिक मास के शुक्ल की षष्ठी तिथि को व्रत रख देवी मां की विधि-पूर्वक पूजा अर्चना की। साथ ही प्रजा को भी देवी की पूजा करने को कहा। देवी के आशीर्वाद से रानी एक बार फिर गर्भवती हुई। नौ महीने बाद रानी को पुत्र की प्राप्ति हुई। इस के बाद से ही कहा जाता है कि इस तिथि को छठ पूजा और व्रत की शुरुआत हुई। इसके अलावा भी छठ पर्व से जुड़ी कई कथाएं पुराणों में दी गई है।
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