खड़िया कभी था वरदान, बागेश्वर के लिए खड़िया खनन कैसे बन गया अभिशाप ?, पढ़ें यहां

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बागेश्वर खड़िया खनन

बागेश्वर में खनन पर नैनीताल हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है। ये आदेश उत्तराखंड उच्च न्यायालय, नैनीताल के मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की खंडपीठ ने छह जनवरी 2025 को एक जनहित याचिका पर सुनाया है। खड़िया खनन के कारण बागेश्वर के कई गावों में घरों के धंसने, खेतों में दरारें आने और जलस्रोतों के सूखने की खबरें सामने आ रही हैं। सालों से ग्रामीण इसे बंद करने की मांग कर रहे हैं।

खड़िया कभी बागेश्वर के लिए था वरदान

खड़िया खनन बागेश्वर में सालों से चलता आ रहा है। बागेश्वर में करीब 200 खड़िया की खदाने हैं। इन खदानों से एक दिन में ही करीब एक करोड़ का कारोबार किया जाता है और एक साल में अरबों का कारोबार इस से होता है। लेकिन इस से स्थानीय लोगों को फायदा ना होकर नुकसान हो रहा है। ग्रामीणों को इस से नुकसान भी चौतरफा हो रहा है।

जहां एक ओर हर ओर खड़िया खनन के कारण लोगों की कृषि भूमि बर्बाद हो गई है। तो वहीं अब लोगों के घरों पर भी खतरा मंडराने लगा है। भूस्खलन के कारण लोग डर के साए में जीने को मजबूर हैं। कई परिवार इन स्थानों से पलायन कर चुके हैं। लेकिन जो गांवों में रह गए हैं वो मजबूर हैं खड़िए के खदानों से उठने वाले धुएं के गुबार के बीच जीने को।

खड़िया खनन बागेश्वर के लिए कैसे बन गया अभिशाप ?

खड़िया खनन के लिए बागेश्वर में शुरू में सिर्फ दो स्थानों के लिए ही अनुमति मिली थी। लेकिन धीरे-धीरे ये बढ़ता चला गया और आज एक छोटे से जिले में 200 स्थानों पर खड़िया खनन किया जा रहा है। बता दें कि बागेश्वर जिले के रीमा से लेकर कांडा तक बड़ी मात्रा में सोप स्टोन पाया जाता है। इन क्षेत्रों में ही खड़िया खनन किया जाता है। पहले जहां राजस्व को बढ़ाने के लिए खड़िया खनन किया गया था और इस से स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिला था। लेकिन धीरे-धीरे ये कारोबार ऐसे बढ़ा कि रोजगार देने की जगह स्थानीय लोगों को परेशानियों का अंबार मिल गया। हाल ही में हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी है। हाईकोर्ट ने दो न्यायमित्रों की तैनाती की थी। जिन्होंने अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सौंप दी है। ये रिपोर्ट हैरान कर देने वाली है।

बागेश्वर की जमीनी हकीकत है चौंकाने वाली

कोर्ट कमीश्नरों की इस रिपोर्ट को पढ़ने के बाद बागेश्वर के इन इलाकों की जमीनी हकीकत का पता चलता है। उच्च न्यायालय ने इस मामले में दो अधिवक्ताओं मयंक राजन जोशी और शारंग धूलिया को जमीनी हालात की जांच करने के लिए कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किया था। उनके मुताबिक बागेश्वर जिले में सिर्फ खड़िया का ही खनन नहीं हो रहा है बल्कि नियम, कायदा, कानून को भी खदानों के मालिक खोद रहे हैं। इस से भी बड़ी बात तो ये है कि अफसर, कर्मचारी कहीं तो मददगार हैं या फिर मूकदर्शक बने हुए हैं।

कोर्ट कमिश्नरों की जांच टीम ने पाया कि सभी खनन के क्षेत्रों में जमीन का धंसना एक गंभीर समस्या है। पहाड़ियों को नीचे से खोदा जा रहा है। उनमें किसी तरह की रिटेनिंग वाल आदि सुरक्षात्मक उपाय नहीं किए जा रहे हैं। अवैज्ञानिक तरीके से खनन का काम किया जा रहा है। खदानों की सीमाओं पर हरित पट्टी और रिटेनिंग वाल, खनन योजना में तो प्रस्तावित है पर धरातल पर गायब है। सुरक्षा प्रोटोकॉल जैसे बफर ज़ोन, ढलान पर्यवेक्षण और सुरक्षात्मक ढांचे भी कोर्ट कमिश्नरों के जांच दल ने नदारद पाए। जल निकास और जलप्रबंधन की भी कोई व्यवस्था खदानों में नहीं पाई गई।

धड़ल्ले से बागेश्वर में हो रहा खनन

खनन के कारण आधुनिक तरीके से बने मकानों में ही नहीं बल्कि मिट्टी, पत्थर, लकड़ी, पठाल के मकानों में भी दरारें देखने को मिली हैं। कई स्थानों पर लोगों से जंगल, पानी आदि का अधिकार भी छिन गया है। ग्रामीण खनन कार्य में शामिल नहीं हैं उनके लिए अपने खेतों, जंगल, चारागाहों तक पहुंचना मुश्किल हो गया है। कई स्थानों पर तो रास्ते या तो नष्ट कर दिए गए हैं या बदल दिए गए हैं। यहां पर अवैध खनन हो रहा है और सारे पर्यावरणीय और वैधानिक नियम-कायदों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। जंगलों में पेड़ों का अवैध कटान हो रहा है। जल स्रोतों को नष्ट किया जा रहा है।

खदानों में श्रम क़ानूनों या मजदूरों के अधिकारों का जैसे कोई अस्तित्व ही नहीं है। यहां तक कि बाल मजदूरी भी खदानों में कराई जा रही है। जहां वयस्क नहीं जा सकते हैं वहां बच्चों को भेज खड़िया खनन कराया जा रहा है। ग्रामीण इसके खिलाफ आवाज तो उठा रहे हैं लेकिन उनकी आवाज को दबाया जा रहा है।