#aayushmaan #yojna कोटिया की टीम, अरुणेंद्र का मैनेजमेंट, राज्य में साजिश का शिकार, केंद्र कर रहा सलाम

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उत्तराखंड को आयुष्मान योजना में बेहतर प्रदर्शन के लिए दो राष्ट्रीय अवार्ड मिले हैं। ये राष्ट्रीय पुरस्कार राज्य को आयुष्मान क्लेम सेटलमेंट और डेली क्विक ऑडिट सिस्टम के सफल कार्यान्वयन के क्षेत्र में बेहतर कार्य करने के लिए मिला है।

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मिल चुके हैं कई पुरस्कार
उत्तराखंड में आयुष्मान योजना के क्रियान्वयन को इससे पहले भी कई बार पुरस्कार मिल चुके हैं। यही नहीं राष्ट्रीय स्तर पर आयुष्मान योजना में बेहतर प्रदर्शन के लिए उत्तराखंड को हमेशा से उदाहरण के तौर पर लिया जाता रहा है चाहें वो नागरिकों के कार्ड बनाने की रफ्तार रही हो या फिर क्लेम की, उत्तराखंड ने हमेशा से बेहतर रिजल्ट दिया है। चार बार राष्ट्रीय स्तर पर सराहा भी गया।

हालांकि पिछले कुछ समय से उत्तराखंड में आयुष्मान योजना पटरी से उतरने लगी है। इसका बड़ा कारण आयुष्मान योजना की उत्तराखंड में शुरुआत करने वाले और उसे लंबे समय तक चलाने वाले डीके कोटिया और अरुणेंद्र चौहान जैसे अफसरों का इस योजना हट जाना माना जा रहा है।

पूरे देश ने माना लोहा
दरअसल जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट्स में से एक आयुष्मान योजना को उत्तराखंड में धरातल पर उतारने की पहल हुई तो रिटायर्ड आईएएस डीके कोटिया को कमान सौंपी गई। डीके कोटिया ने अपनी टीम तैयार की। इसी टीम में दूसरे नंबर पर आए अरुणेंद्र चौहान। वित्त सेवा के अफसर और जमीनी समझ रखने वाले अरुणेंद्र चौहान के साथ मिलकर डीके कोटिया ने राज्य में आयुष्मान योजना को लॉन्च करने के लिए रणनीति बनाई। जल्द ही इस टीम ने न सिर्फ समूचे उत्तराखंड में बल्कि पूरे देश में अपना लोहा मनवा दिया। अस्पतालों को पैनल में लाने से लेकर लोगों के कार्ड बनाने तक का काम मिशन मोड में किया गया। इसके साथ ही योजना के क्रियान्वयन पर लगातार नजर रखी गई। लोगों को हर हाल में लाभ मिले ये सुनिश्चित किया गया।

टीम बिखरी, योजना झटके खाने लगी
हालांकि समय के साथ ये टीम बिखरने लगी। अरुणेंद्र चौहान को अपर सचिव वित्त बनाकर साइडलाइन कर दिया गया। अरुणेंद्र चौहान के हटते ही योजना झटके खाने लगी। इसके बाद एक एक कर कुछ अन्य टीम मेंबर्स को भी साइड कर दिया गया। उधर डीके कोटिया अपनी टीम टूटने से परेशान हुए तो उन्होंने इस्तीफा देना ही उचित समझा। डीके कोटिया के जाने के बाद से ही आयुष्मान योजना पटरी से मानों उतरने सी लगी। रह रह कर शिकायतें आने लगी। प्राइवेट अस्पताल मनमानी पर उतर आए। पैनल में होने के बावजूद बहाने बनाकर इलाज कराने से मना करने लगे।

खुद स्वास्थ मंत्री धन सिंह रावत ने बयान दिया कि मरीजों को टालने वाले अस्पतालों पर कार्रवाई होगी।

टीम वर्क के बिना कैसे होगा काम ?
अब सवाल ये भी है कि धन सिंह रावत को क्या आयुष्मान योजना को इतने दिनों तक संभाल रही टीम के बारे में जानकारी नहीं या फिर उनसे कुछ छिपाया जा रहा है। सवाल ये भी है कि बिना टीम वर्क के आखिर कैसे इतनी बड़ी योजना को संभाला जाएगा। कहीं ऐसा न हो कि धीरे धीरे ये योजना पूरी तरह बेपटरी हो जाए।