6 से अधिक तीव्रता का भूकंप अगले पांच सालों में उत्तराखंड में मचा सकता है तबाही

Ad
Ad
ख़बर शेयर करें


उत्तराखंड में आजकल भूकंप आने का सिलसिला लगातार बढ़ता जा रहा है। बीते मंगलवार देर रात करीब 1.58 बजे पर भूकंप के जोरदार झटके लगे जिससे लोग दहशत में आ गए और उत्तराखंड में अफरातफरी मची गई। भूकंप का झटका इतना तेज था कि घरों में लगे पंखे और खिड़की के दरवाजे तक हिलने लगे। नैनीताल जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी के अनुसार भूकंप की तीव्रता रिक्टर स्केल पर 6.5 रही। इसका केंद्र नेपाल के कुलखेती में बताया जा रहा है।


वैज्ञानिकों के अनुसार हिमालयन बेल्ट में फाल्ट लाइन के चलते लगातार भूकंप आ रहे हैं और भविष्य में भी में इसकी आशंका बनी हुई है। इसी फाल्ट पर मौजूद उत्तराखंड में लंबे समय से बड़ी तीव्रता का भूकंप न आने से यहां बड़ा गैप बना हुआ है। ऐसा माना जा रहा है कि उत्तराखंड में अधिक तीव्रता के भूकंप आने का खतरा मंडरा रहा है। लंबे समय से बने गैप के कारण भविष्य में बड़े भूकंप की आशंका गहराने लगी है।
भूकंप को लेकर वैज्ञानिकों की माने तो उत्तराखंड में 6 से 7 तीव्रता तक का भूकंप अगले पांच से दस सालों में आ सकता है। भूकंपीय विज्ञान में भूकंप की संभावनाओं के लिए उपयोग की जाने वाली गणितीय समीकरणों का परिणाम प्रदेश में बड़े भूकंप के लिए 90 फीसद तक आंका गया है इसलिए यह खतरा बना हुआ है।


अमर उजाला के अनुसार उत्तराखंड में पहले आए बड़े तीव्रता के भूकंप की बात करें तो 1999 में चमोली में आए भूकंप का मैग्नीट्यूड 6.8, 1991 के उत्तरकाशी में 6.6, 1980 में धारचूला 6.1 मैग्नीट्यूड के भूकंप आ चुके हैं। जबकि नेपाल में बुधवार सुबह आए करीब 6 मैग्नीट्यूड के भूकंप को डैमेजिंग कहा जा रहा है। आईआईटी रुड़की के भूकंप अभियांत्रिकी विभाग के वैज्ञानिक प्रो. एमएल शर्मा के मुताबिक लगभग 30 साल के अंतराल में बड़े भूकंप की आशंका बढ़ जाती है।


गौरतलब है कि उत्तराखंड में चमोली और उत्तरकाशी में छह मैग्नीट्यूड से ज्यादा के भूकंप साल 2000 से पहले के हैं। इसके बाद कोई बड़ा भूकंप नहीं आया। भूकंप विज्ञान में भूकंप की आशंका के लिए गुटनबर्ग रिएक्टर कैलकुलेशन का उपयोग किया जाता है। समय-समय पर इस कैलकुलेशन से भूकंप की आशंका को प्रतिशत में निकाला जाता है। उन्होंने बताया कि राज्य में भूकंप की दृष्टि से कैलकुलेशन के परिणाम बात रहे हैं कि राज्य में 6 से 7 मैग्नीट्यूड तक का भूकंप आने का अनुमान 90 प्रतिशत है।


वैज्ञानिक प्रो. एमएल शर्मा के मुताबिक नेपाल में आए भूकंप का केंद्र जमीन से नीचे लगभग दस किलोमीटर था और छह मैग्नीट्यूड के आसपास था। इसके चलते इसे खतरनाक कहा जा सकता है। जबकि देहरादून और रुड़की के अनुसार दूरी के हिसाब से यहां इसकी तीव्रता कम रही है। अनुमान मुताबिक देहरादून रुड़की के आसपास इसकी तीव्रता घटकर पांच और दिल्ली में चार के आसपास मानी गई। इसके तहत स्थानीय स्तर पर इसके झटके बहुत कम महसूस किए गए हैं।


लगातार आ रहे भूकंप को लेकर वैज्ञानिक इस पर बात कर रहे है कि कुछ-कुठ अंतराल पर आ रहे छोटे-छोटे भूकप से भविष्य में आने वाले बड़े भूकंप से तो कोई संबंध नहीं है। लेकिन अब तक इस पर कोई ठोस अध्ययन सामने नहीं आ पाया। जबकि आईआईटी के वैज्ञानिक इस बात से पूरी तरह इन्कार कर रहे हैं कि छोटे भूकंप से निकलने वाली एनर्जी के कारण बड़े भूकंपों की आशंका खत्म हो जाती है। भूकंप की तीव्रता का एक अंक बढ़ने का मतलब है कि पहले से 30 गुना ज्यादा एनर्जी के झटके से रिलीज होना।

ऐसा माना जाता है कि जमीन के नीचे होने वाली भूगर्भीय हलचल में भूकंप का आना तब तक एक सामान्य प्राकृतिक घटना की ही तरह है जब तक कि उससे जान माल का नुकसान न हो। जब भूकंप की तीव्रता 6 से अधिक हो जाती है तो यह नुकसान करने लगता है। वैज्ञानिकों के अनुसार साल भर में 5 से कम तीव्रता के भूकंपों की संख्या सैकड़ों में है।