नाबालिग के यौन उत्पीड़न मामले में कोर्ट ने क्यों किया 76 साल के बुजुर्ग को बरी, पीछे की कहानी दिलचस्प है
Crime News: मुकदमे के दौरान गवाहों से पूछताछ की गई. नाबालिग की मां ने गवाही में कहा कि सुबह 9 बजकर 45 मिनट पर अपनी सास के लिए उन्होंने अपनी बेटी से टिफिन पहुंचाने को कहा था, जो बिल्डिंग में अन्य फ्लोर पर रहती हैं. जब आरोपी लिफ्ट के अंदर घुसा तो उसने चलती लिफ्ट में ही नाबालिग को चूमा.
Fake FIR Case: मुंबई के स्पेशल कोर्ट ने एक 76 साल के शख्स को नाबालिग से यौन उत्पीड़न के आरोपों से 6 साल से भी ज्यादा वक्त के बाद बरी कर दिया है. अदालत ने पाया कि इस मामले में जो एफआईआर दर्ज हुई थी, वह किसी असली शिकायत के बजाय निजी दुश्मनी से प्रेरित हो सकती है.
दरअसल, पुलिस ने 10 अगस्त 2019 को 10 साल की एक बच्ची की मां की शिकायत पर एफआईआर दर्ज की थी, जिसमें कहा गया था कि आरोपी ने नाबालिग को जबरदस्ती चूमा था. बाद में, उस शख्स पर यौन उत्पीड़न से संबंधित आरोपों में आईपीसी की धारा 354 और 354 (ए) के अलावा प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड एक्ट (POCSO) की संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया.
आखिर क्या है मामला?
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, मुकदमे के दौरान गवाहों से पूछताछ की गई. नाबालिग की मां ने गवाही में कहा कि सुबह 9 बजकर 45 मिनट पर अपनी सास के लिए उन्होंने अपनी बेटी से टिफिन पहुंचाने को कहा था, जो बिल्डिंग में अन्य फ्लोर पर रहती हैं. जब आरोपी लिफ्ट के अंदर घुसा तो उसने चलती लिफ्ट में ही नाबालिग को चूमा. बाद में उसी रात नाबालिग ने घटना के बारे में जानकारी दी और आरोप को पहचाना. बाद में महिला आरोपी के घर पहुंची और उसको थप्पड़ मार दिया. उसी रात नाबालिग के माता-पिता पुलिस स्टेशन गए और आरोपी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई.
जबकि आरोपी ने दावा किया था कि उसे फंसाया गया है क्योंकि उसने लड़की को लिफ्ट के बटनों से खेलने पर डांटा था. उसने दावा किया था कि लड़की के माता-पिता ने बिना कोई कारण बताए उस पर हमला किया, जिससे उसके सिर, चेहरे और आंख पर चोटें आईं, जिसका उसी रात अस्पताल में इलाज चला.
आरोपी ने यह भी कहा था कि उसने पुलिस से संपर्क किया था, जिसने एक असंज्ञेय रिपोर्ट दर्ज की थी. उसने दावा किया कि जब पैरेंट्स को इस बारे में पता चला, तो वे एफआईआर दर्ज कराने थाने गए. उसने यह भी संदेह जताया कि अगर कोई घटना हुई थी, तो लड़की ने किसी को क्यों नहीं बताया, जबकि वह उस दिन स्कूल, ट्यूशन क्लास और अपने दादा-दादी के घर गई थी. लड़की की मां ने कहा था कि वह डरी हुई थी, इसलिए उसने शायद किसी को नहीं बताया.
कोर्ट ने क्या कहा?
स्पेशल जज एस ए मलिक ने 29 सितंबर को पारित अपने आदेश में कहा, ‘पीड़ित लड़की पीडब्लू-02 ने दिन भर अपने पिता, दादी और ट्यूशन टीचर समेत कई भरोसेमंद लोगों के संपर्क में रहने के बावजूद इस घटना का खुलासा करने में देरी की. पीडब्लू-01 (माँ) ने माना किया कि आरोपी के साथ टकराव के बाद ही एफआईआर दर्ज की गई थी, और पीडब्लू-02 की जिरह से एक अलग कहानी सामने आई कि उसे लिफ्ट से खेलने के लिए डांटा गया था, जिससे उसके माता-पिता नाराज़ हो गए थे.’ यह आदेश हाल ही में सार्वजनिक किया गया है.
जज ने कहा कि आरोपी ने उस डॉक्टर को अदालत के सामने पेश किया जिसने हमले के बाद उसकी जांच की थी. इससे उसके इस दावे को बल मिलता है कि नाबालिग के परिवार और उसके बीच हुए निजी विवाद के बाद एफआईआर एक जवाबी कार्रवाई के रूप में दर्ज की गई थी. अदालत ने यह भी कहा कि पीड़िता और उसकी मां की गवाही में कई विरोधाभास थे.
अदालत ने कहा, ‘स्कूल टीचर्स, पड़ोसियों, पिता या दादी जैसे स्वतंत्र गवाहों की किसी भी पुष्टि करने वाली गवाही के अभाव और ट्रॉमा के दावे को बल देने वाले डॉक्टरी या मनोवैज्ञानिक सबूत नहीं होने की वजह से अभियोजन पक्ष का दावा कमजोर पड़ रहा है.
अदालत ने आगे कहा, ‘कुल मिलाकर, ये सभी फैक्टर्स अभियोजन पक्ष के बयान पर गंभीर संदेह पैदा करते हैं और बचाव पक्ष के इस दावे का समर्थन करते हैं कि एफआईआर किसी वास्तविक शिकायत के बजाय निजी दुश्मनी थी.’
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