क्या जाएगी शम्भू की कुर्सी, जाति प्रमाण पत्र पर घिरते हुए भाजपा को करा जाएंगे बड़ा…

ऋषिकेश skt. कॉम
मेयर शम्भू पासवान पुत्र नागेश्वर का टिहरी के विस्थापितों में कहीं भी दस्तावेज नही मिल पा रहे है। खोजी पत्रकारों के दल अपने दलबदल के साथ सूंघ सूंघ कर उनके शपथ पत्रो को खंगाल रही है। उनके द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक जसनकारी जुटा रहे हैं लेकिन कही भी शम्भू का कोई सही रिकॉर्ड नही मिल पा रहा है। झूठ की परतें खुलती जा रही हैं। शम्भू पर भाजपा कोई फैसला नहीं लेती है तो भाजपा को बड़ा राजनैतिक नुकसान उठाना लड़ सकता है।
हाल ही में ऋषिकेश के मेयर चुने गए शम्भू पासवान का दावा है कि वह टिहरी बाँध के विस्थापित हैं और इस आधार पर ही उन्होंने जाति प्रमाण पत्र बनवाया। शम्भू ने अपने नामांकन पत्र में बताया कि बिहार के बेतिया से 1983 में कक्षा 8 पास किया।
नामांकन पत्र में उन्होंने अपनी उम्र 58 साल बताई। मतलब यह कि उनका जन्म वर्ष 1966 होगा। तो 17 वर्ष की उम्र में वह आठवीं पास कर पाए। खैर, पढ़ाई लिखाई की कोई उम्र नहीं होती, हालांकि थोड़ा और पढ़ लेते तो अच्छा ही होता।
तो इसके बाद क्या हुआ। नामांकन पत्र में शम्भू ने पत्नी ललिता की उम्र 55 और बेटी सुनीता की उम्र 37 साल बताई है। मतलब कि उनकी शादी कम से कम 38 वर्ष पहले 1986 में या उससे भी पहले हुई होगी। 19 या 20 साल का शम्भू और 16 या 17 साल की ललिता। मतलब कि बाल विवाह किये।
लेकिन यहाँ मसला कुछ और ही है। शम्भू भाई, शायद तुम्हें पता ही नहीं कि टिहरी में विस्थापन की कट ऑफ डेट 1985 है। जब तुमने 1983 में बिहार से आठवीं पास किया तो क्या तुम 1984 में टिहरी आए और 1985 में विस्थापन की पात्रता भी हासिल कर ली? किस आधार पर? ज्यादा से ज्यादा तुम किराएदार हो सकते थे, लेकिन किरायेदारों के सर्वे रजिस्टर में तो तुम्हारा नाम ही नहीं है, दुकानदार में तुम्हारा नाम नहीं, बेनाप तुम्हारे नाम नहीं, भूमिधर और नजूल तो छोड़ ही दीजिए।
मैंने सभी 10 वार्डो का डाटा चेक किया। ना कोई शम्भू पासवान विस्थापित है ना कोई नागेश्वर पासवान। यदि तुम बांध बनाने वाली किसी कंपनी में 1985 से पहले बाल मजदूरी करने आए भी, तब भी विस्थापित नहीं हो सकते। क्योंकि पुनर्वास नीति में बांध के कर्मचारी – मजदूर विस्थापन की पात्रता में नहीं आते। तो क्या तुमने ठेली फड़ लगाई या कबाड़ी का काम किया? तब भी नगर पालिका के किसी रजिस्टर में तुम्हारा नाम होना चाहिए कि नहीं।
1987 में बेटी सुनीता, 1990 में बेटे संतोष और 1992 में बेटे मंतोष का जन्म हुआ। कहां जन्म हुआ, टिहरी में? क्या जन्म प्रमाण पत्र टिहरी का है? क्या 1991 या 2001 की जनगणना में तुम्हारा नाम है? क्या तुम कभी टिहरी में वोटर रहे? क्या परिवार रजिस्टर में नाम रहा? क्या राशन कार्ड भी बनवाया? मतलब कि तुम टिहरी आए और लौटती गाड़ी से विस्थापन की पात्रता लेकर ऋषिकेश चले गए। यहां तो राजा सुदर्शन शाह के साथ 200 वर्ष और उससे भी पहले आए कुछ लोगों का आज तक ठीक से पुनर्वास नहीं हुआ।
चलो पुनर्वास हो भी गया तो यह बताओ कि पुनर्वास होते ही ऋषिकेश जाकर करोड़ों की दौलत कहां से आई ? दो होटल, तुम्हारे और पत्नी के नाम दो-तीन प्लाट, सब मिलाकर कोई तीन चार करोड़ की प्रॉपर्टी। लेकिन नामांकन पत्र में तुमने टिहरी से पुनर्वास के बदले मिले किसी जमीन, फ्लैट या दुकान का उल्लेख क्यों नहीं किया? कृषि जमीन तो बिहार के बेतिया में दिखाई है। 1985 से पहले यदि यूपी और उत्तराखंड में कोई कृषि या अन्य संपत्ति नहीं, जन्म प्रमाण पत्र और परिवार रजिस्टर भी नहीं, तब जाति प्रमाण पत्र उत्तराखंड तो छोड़िए यूपी से भी नहीं बन सकता। बना है तो फर्जी या गलत तरीके से।
और सुनो भाई शम्भू! तुम्हारे तीनों बच्चे 1985 के बाद जन्मे, क्या उनके भी जाति प्रमाण पत्र बना लिए। यदि बना लिए हैं, तो वहां भी फँसोगे तुम। देखो भाई! सत्ता की ताकत के बल पर तुम मेयर रहो या ना रहो, तुम्हारा जाति प्रमाण पत्र वैध रहे न रहे लेकिन तुमसे ज्यादा तुम्हारी पार्टी का नुकसान होना तय है। इसलिए पहले ही इस्तीफा दे दो और चुपचाप बिहार चले जाओ। इतना तो कमाया ही है कि बिहार में कहीं से विधानसभा चुनाव जीत जाओगे। कौन जाने, कभी वहां मंत्री बन जाओ। या सांसद बनकर दिल्ली में मंत्री बन जाओ। नेक सलाह है, याद करोगे… . … . .
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