कोविड महामारी के दौरान उत्तराखंड में हुआ महाघोटाला, बीजेपी नेता डकार गए करोड़ो !

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पूरे विश्व के साथ भारत ने भी कोविड महामारी का प्रकोप झेला। ये दौर कोई आज भी नहीं भूला है। इस दौरान केंद्र सरकार द्वारा गरीबों को फ्री में राशन बांटा गया था। उत्तराखंड में इसी राशन में भई घोटाला हो गया। जो कि अब सामने आया है।

उत्तराखंड में कोविड महामारी के दौरान हुआ महाघोटाला
कोविड महामारी के दौरान लॉकडाउन के कारण जब लोग बाहर नहीं जा पा रहे थे। गरीब मजदूरी नहीं कर पा रहे थे तो केंद्र सरकार द्वारा गरीबों को फ्री राशन देने की घोषणा की गई थी। लेकिन दुविधा ये थी कि जिनके राशन कार्ड नहीं बने थे उन्हे कैसे राशन कैसे मिलेगा।

इसको लेकर केंद्र सरकार के द्धारा राज्यों को निर्देश दिए गए कि श्रम विभाग से श्रमिकों को राशन उपलब्ध कराया जाए। लेकिन उत्तराखंड के श्रम विभाग में इसमें बड़ा घोटाला हुआ जो कि अब जाकर उजागर हुआ है।

भाजपा के नेता ने किया गरीबों के फ्री राशन में भी घोटाला
उत्तराखंड में भाजपा के कुछ नेताओं ने श्रम विभाग के द्धारा श्रमिकों को मिलने के वाले फ्री राशन में भी घोटाला कर अपनी जेब भर ली। कर्मकार कल्याण बोर्ड के द्धारा फैसला लिया गया कि ढाई लाख पंजीकृत मजदूरों के साथ 75 हजार अपंजीकृत मजदूरों को भी राशन किट बांटी जाएगी।

इन्हीं राशन किटों को बांटने में महा घोटाला हो गया। जो राशन किट बाजार भाव पर 650 रूपए में तैयार हो रही थी उन किटों को 950 रूपये में खरीदा गया। इस मामले का खुलासा तब हुआ है जब राशन विक्रेता ने नगर निगम पार्षद अमिता सिंह पर आरोप लगाए।

बीजेपी नेता डकार गए करोड़ो !
प्रदेश में हुआ ये घोटाला त्रिवेंद्र काल का है। बता दें कि राशन विक्रेता नीलम त्यागी द्वारा आरोप लगाने के बाद हुए खुलासे के बाद सामने आया कि राशन बांटने के नाम पर कोरोड़ों का घोटाला हुआ है।

लेकिन सवाल यहां ये उठता है कि करोड़ो के घोटाले तो क्या पार्षद अमिता सिंह ने अकेले अंजाम दिया था। या फिर कोई और बड़ा नेता भी उनके साथ शामिल था। इस पूरे घोटाले में कौन-कौन शामिल हैं ये तो जांच के बाद ही पचा चल पाएगा। लेकिन ये बात तो साफ है कि गरीबों के राशन के नाम पर करोडो़ रूपए घोटाले की भेंट चढ़ गए।

तो क्या घोटाले को छुपाने की हुई कोशिश ?
राजपुर से भाजपा विधायक खजान दास का इस पूरे मामले में कहना है कि मामले की जांच तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने ही दे दी गई थी। लेकिन जांच का क्या हुआ इसका पता चलना चाहिए। तभी चीजें साफ हो पाएंगी। जबकि राशन लेने की बात है तो उन्होने भी राशन लेकर श्रमिकों में बंटवाया था।

इस बयान के बाद सवाल उठता है कि अगर ये घोटाला सामने आ गया था और इसकी जांच भी सौंप दी गई थी तो फिर ये बात सामने क्यों नहीं आई ? इसके साथ ही सवाल ये भी उठता है कि अगर घोटाले की जांच पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत को सौंप दी गई थी तो जांच कहां तक पहुंची।

श्रमिकों को दिए गए राशन के पैसे का भुगतान कर दिया गया है
जब इस घोटाले को अंजाम दिया गया तब कर्मकार कल्याण बोर्ड के मंत्री हरक सिंह रावत थे। जब इस बारे में पूर्व श्रम मंत्री हरक सिंह रावत से फोन पर बात की गई तो उन्होंने कहा कि श्रमिकों को जो राशन दिया गया था, उसका पैसा दे दिया गया। जिसके लिए लखनऊ के कम्पनी के साथ अनुबंध किया गया था।

इसके साथ ही उन्होंने कहा है कि प्रदेश में जो अपंजिकृत श्रमिक थे उनको राशन बांटने के लिए लखनऊ कम्पनी ने कुछ अन्य लोगों के साथ करार कर राशन बंटवाया था। 75 हजार राशन किट अपंजिकृत श्रमिकों को वितरित होनी थी। लेकिन उनके संज्ञान में आया है कि 92 हजार किट बांटे जाने के बात कही गई।