आखिर ऐसा क्या हुआ जो भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी को बरसाने पड़े खुद पर कोड़े, जानिए हमारी इस रिपोर्ट में
कांग्रेस के दिन बहुराने को ‘भारत जोड़ो’ यात्रा लेकर निकले राहुल गांधी का एक वीडियो वायरल है। यात्रा के 57वें दिन, तेलंगाना में राहुल खुद पर कोड़े बरसाते नजर आए। वायरल हो रहे विजुअल्स में दिख रहा है कि राहुल किसी व्यक्ति से कोड़ा हाथ में लेते हैं और उससे खुद को मारने लगते हैं। इस दौरान आसपास खड़े लोग राहुल का उत्साह बढ़ाते हैं। राहुल के इस वीडियो को लेकर कोई और अंदाज न लगाएं। वह यहां के एक त्योहार का हिस्सा बन रहे हैं जो 300 साल से भी ज्यादा पुराना है। इस त्योहार को ‘बोनालु’ कहते हैं। मुख्य रूप से हैदराबाद और सिकंदराबाद में मनाया जाने वाला यह त्योहार महाकाली को समर्पित है। इस त्योहार का एक खास चेहरा हैं पोथराजू। राहुल कुछ देर के लिए इन्हीं पोथराजू की भूमिका में थे।
कौन हैं पोथराजू? खुद पर कोड़े क्यों बरसाते हैं?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, पोथराजू असल में देवी महाकाली के भाई हैं। पोथराजू के जिम्मे बोनम लेकर चल रही महिलाओं की सुरक्षा होती है। पोथराजू इस पूरे त्योहार के दौरान आकर्षण का केंद्र बने रहते हैं। वह भीड़ के आगे-आगे खुद पर और लोगों पर कोड़े बरसाते हुए, ढोल की थाप पर झूमते-नाचते चलते हैं। पोथराजू की तोंद होती है और डील-डौल रौबदार होना चाहिए। वह रंगे-पुते होते हैं और शरीर पर हल्दी और माथे पर चंदन का लेप लगाते हैं। पोथराजू एक तरह से इन सभी महिलाओं के भाई की भूमिका में होते हैं। पोथराजू बनने के लिए घंटों मेकअप करना पड़ता है।
क्या है बोनालु उत्सव?
बोनालु उत्सव देवी महाकाली को धन्यवाद देने के लिए मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 19वीं सदी की शुरुआत से बताई जाती है। 1813 में हैदराबाद और सिकंदराबाद में हैजा फैल गया था। हैजे के प्रकोप से ठीक पहले, हैदराबाद से सेना की एक टुकड़ी को उज्जैन भेजा गया था। जब सैनिकों को महामारी के बारे में पता चला तो उन्होंने उज्जैन के महाकाली मंदिर में देवी से मन्नत मांगी। अगर मां हैजा दूर कर देंगी तो वे शहर में मां की प्रतिमा स्थापित करेंगे। ऐसा विश्वास है कि महाकाली की कृपा से बीमारी चली गई। जब सैनिक शहर में लौटकर आए तो महाकाली की मूर्ति स्थापित की गई और फिर उन्हें बोनालु अर्पित किया गया। तब से यह परंपरा चली आ रही है।
2014 में तेलंगाना राज्य बनने के बाद बोनालु को राज्य उत्सव घोषित किया गया। मुख्य समारोह तीन जगहों- गोलकुंड किले के श्री जगदंबा मंदिर, सिकंदराबाद में श्री उज्जैनी महाकाली मंदिर और लाल दरवाजा में श्री सिंहवाहिनी महाकाली मंदिर और हरिबावली में श्री अक्कन्ना मदन्ना महाकाली मंदिर में आयोजित होते हैं। समापन अक्कन्ना मदन्ना मंदिर में जुलूस के साथ होता है।
देश में खुद पर कोड़े बरसाने वाली कईं घुमंतू जनजातियां भी
आपने कभी न कभी आसपास ऐसे लोगों को घूमते देखा होगा जो खुद पर कोड़े बरसाते हैं, रस्सियों पर चलते हैं। हंटर से खुद को मारने वाले ऐसे लोग आमतौर पर खेल-डोंबारी समुदाय से आते हैं। यह समुदाय मूल रूप से कोलहाटी नाम की घुमंतू जनजाति से ताल्लुक रखता है। अंकुर ट्रस्ट एनजीओ से जुड़ी वैशाली पाटिल के अनुसार, ‘इन जनजातियों में बच्चों यहां तक कि लड़कियों को भी रस्सियों पर चलना सिखाया जाता है।’ पश्चिमी महाराष्ट्र में रहने वाले पोतराज जनजाति समूह के लोग भी खुद पर कोड़े बरसाने के लिए जाने जाते हैं।
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