उत्तराखंड में यहाँ कल खेली जाएगी दही व मक्खन से होली, जानें क्यों मनाया जाता है Butter Festival ?
रंगों की त्यौहार यानी की होली का त्यौहार के बारे में तो सभी जानते हैं और बड़ी ही धूमधाम से इसे मनाते भी हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि उत्तराखंड में मक्खन और दही की होली भी मनाई जाती हैं। आइए जानते हैं क्यों और कैसे मनाया जाता है इसे ?
दयारा बुग्याल में कल खेली जाएगी मक्खन से होली
उत्तराखंड के बुग्याल यूं तो अपनी खूबसूरती और मखमली घास के मैदानों के कारण मशहूर हैं। लेकिन एक और खास उत्सव यहां मनाया जाता है जिसके कारण ये देश में ही नहीं अपितु विदेशों में भी प्रसिद्ध है।
मक्खन की होली जिसे बटर फेस्टिवल भी कहा जाता है खेली जाती। इस साल 17 अगस्त को इसे मनाया जाएगा। इस उत्सव को मनाने के लिए देशभर के साथ ही विदेशों से भी लोग यहां आते हैं।
क्या है Butter Festival या अढ़ूड़ी त्यौहार ?
Butter Festival या अढ़ूड़ी त्यौहार को उत्तरकाशी के दयारा बुग्याल में मनाया जाता है। इस त्यौहार में मक्खन, दही और छांछ से होली खेली जाती है। इस त्यौहार में महाराष्ट्र की तरह दही हांडी भी फोड़ी जाती है और मथुरा और वृंदावन की तरह दही की होली भी खेली जाती है। इस त्यौहार का आयोजन रैथल गांव के ग्रामीण प्रतिवर्ष भाद्रपद की संक्रांति को दायरा बुग्याल में करते हैं।
क्यों मनाया जाता है Butter Festival ?
पहाड़ों पर जीवन कृषि और पशु पालन पर काफी ज्यादा निर्भर करता है। बटर फेस्टिवल को उत्तरकाशी के कुछ गांव वाले ईश्वर का धन्यवाद करने के लिए मनाते हैं।
इस उत्सव में पहाड़ी गांवों के लोग अपने-अपने मवेशियों के दूध, मक्खन, दही और छांछ खुशी से एक-दूसरे को खिलाते हैं। इसके साथ ही धरती माता को अर्पित करते हैं। लोगों का मानना है कि इन पर्वों के माध्यम से ही मवेशी और लोग फल-फूल रहे हैं।
ईश्वर और प्रकृति देवता का किया जाता है धन्यवाद
बता दें कि उत्तरकाशी के कुछ गावों के लोग गर्मियों की शुरूआत में अपने मवेशियों के साथ दयारा बुग्याल में बनी अपनी छानियों में चले जाते हैं। पूरी गर्मियों वो इन्ही छानियों में अपने जानवरों के साथ रहते हैं। मानसून के साथ ही पहाड़ों पर ठंड का मौसम शुरू हो जाता है।
ठंड की दस्तक के साथ ही ग्रामीणों का निचले इलाकों में वापस लौटने का सिलसिला भी शुरू हो जाता है। बुग्याल में रहकर मवेशियों के दूध में बढ़ोतरी होती है। जिस से गांव वालों के घरों में संपन्नता आ जाती है। इसलिए गांव वाले हर साल प्रकृति देवता की पूजा कर उन्हें धन्यवाद देने के लिए इस उत्सव को मनाते हैं।
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